Kathal Review (अश्विनी कुमार): अचार का चटकारा, खाने का स्वाद बढ़ा देता है। और फिर अचार कटहल हो, तो पूछिए नहीं…. वैसे पूछ भी सकते हैं, क्योंकि शहरों में कटहल का अचार खाने की आदत है नहीं, बाकी तो कटहल को शाकाहारियों का नॉनवेज कहते ही हैं। कटहल की ये जरा हटकर खूबियां बताने के पीछे हमारा मकसद है, कि नेटफ्लिक्स की ‘कटहल’, ओटीटी की क्राइम, सेक्स और गालियों से भरपूर कंटेंट की भीड़ में बहुत हटकर फिल्म है, जो एमएलए साहब के गुमशुदा कटहलों को तलाशते-तलाशते, जातियों में पिसती इंसानियत, सत्ता के आगे नतमस्तक होते पुलिस तंत्र, गरीबों की घुटती आवाज़… सब कुछ इस कहटल में मसाले जैसा छिपा है, जिसका स्वाद ना तनिक ज्यादा, ना तनिक कम… ये बिल्कुल स्वादिष्ट कहटल है।
कटहल की कहानी
कहानी ऐसी है, जैसी आप सोच भी नहीं सकते…. जैसे असल जिंदगी में आपने यूपी के एक नेता जी की भैस खोजती पुलिस के किस्से अखबारों में पड़े हैं, कटहल उससे भी दो कदम आगे जाती है। कहानी है यूपी के एक गांव मोगा की, जहां की पुलिस इंस्पेक्टर महिमा बसोर, छोटी जात की है, उसे प्यार है अपने ही थाने में काम करने वाले ऊंची जात के सौरभ से। लेकिन इस प्रेम कहानी में मुश्किल है कि सौरभ के पिता जी, जो अपने ऊंची जात के बेटे का, छोटी जात की एक लड़की से रिश्ते के खिलाफ है, भले ही वो कितनी काबिल हो, समझदार हो, सुंदर हो। खैर ये कहानी इनकी नहीं है, कहानी दो 15-15 किलो के कटहल की है, जो एक खास ब्रीड के हैं, अंकल हॉन्ग ब्रीड के जैकफ्रूट्स यानि कि कटहल, मोगा के एमएलए पटेरिया जी के घर के बाग से गायब हो गए हैं। अब ये कटहल, जिससे बने अचार, विधायक जी के मंत्री बनने की सीढ़ी हो सकते हैं… उसे पाने के लिए नेता जी, मोगा की पूरी पुलिस फोर्स को खोजने में लगा देते हैं, भले ही इलाके से गायब हुई 42 लड़कियों के बारे में किसी को कुछ भी पता ना हो।
कटहल की खूबी ये है कि ये समझाती नहीं, सिखाती नहीं, क्लास नहीं लगाती… बस अचार जैसी है, कि खाने के साथ खाइएगा, तो स्वाद बढ़ेगा। बाप बेटे की जोड़ी – अशोक मिश्रा और यशोवर्धन मिश्रा ने इस कहानी को, जितनी खूबसूरती से पिरोया है, जहां हर किरदार को ये पनपने का मौका देता है, उसकी कहानी को सजाता है और फिर भी एक परफेक्ट स्पीड से आगे बढ़ता है। यशोवर्धन ने कटहल के स्वाद के साथ नब्ज़ भी पकड़ी है, जो इसे एक सेकेंड के लिए भी फिसलने नहीं देती। राम संपत का म्यूज़िक, इस कटहल को और भी चटाखेदार बनाता है।
एक्टर्स ने की है जबरदस्त एक्टिंग
कटहल की सबसे खास बात हैं इसके एक्टर्स। जी, एक्टर्स, कोई स्टार नहीं। सान्या मल्होत्रा, जो लेडी इंस्पेक्टर है, दबंग भी है… लेकिन एक्शन बाज नहीं, बल्कि इमोशन्स से भरी, अपनी परेशानियों के साथ। हवलदार सौरभ बने अनंत जोशी, बिल्कुल सच के करीब का किरदार निभाते। मोबा के पत्रकार अनुज बने राजपाल यादव, जो ब्रेकिंग न्यूज के लिए कुछ भी ब्रेक करने पर आमादा है, लेकिन ट्रेडिंग होने के लिए सच का साथ देने से पीछे नहीं हटता। एमएलए पटेरिया के किरदार में विजय राज, जो इतने जबरदस्त एक्टर हैं कि कटहल खोने की दर्द भी उनके चेहरे पर झलकता है, तो सच्चा लगता है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट बने विजेंद्र काला भी शानदार लगते हैं। और खोये से बनी जलेबी बनाने वाले सेठ जी के स्पेशल किरदार में रघुबीर यादव, अपने छोटे से रोल में भी दमदार।
कटहल देखिए, क्योंकि ये एंटरटेन करती है, फैमिली फिल्म है, ओटीटी पर आई है, बेहतरीन कहानी और सिचुएशन कॉमेडी से सजी फिल्म है, जो समझाती है कि हालात कितने भी अजीब क्यों ना हों, मुस्कुरा लेना चाहिए और क्लाइमेक्स में आपको खुश कर जाती है।