Insurance Sector FDI: बजट में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को लेकर हुई घोषणा के बाद माना जा रहा है कि भारत की बीमा इंडस्ट्री तेजी से दौड़ सकेगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा को 75% से बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि यह बढ़ी हुई सीमा उन कंपनियों के लिए उपलब्ध होगी, जो भारत में पूरा प्रीमियम निवेश करेंगी। विदेशी निवेश से जुड़ीं मौजूदा शर्तों की समीक्षा की जाएगी और उन्हें सरल बनाया जाएगा।
सेक्टर में हुई मामूली ग्रोथ
पिछले दशकों में भारत में इंश्योरेंस पेनिट्रेशन में मामूली वृद्धि देखने को मिली है। मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी McKinsey & Company ने पिछले साल नवंबर 2024 में भारत की बीमा इंडस्ट्री को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में यह दर्शाने की कोशिश की गई थी कि बीमा इंडस्ट्री में पर्याप्त ग्रोथ नहीं हुई है। इसके लिए प्रोडक्ट इनोवेशन, डिस्ट्रीब्यूशन एफिशिएंसी और रिन्यूअल मैनेजमेंट में गैप का जिम्मेदार बताया गया था।
अभी क्या है स्थिति?
इंश्योरेंस पेनिट्रेशन और डेंसिटी दो ऐसे मापदंड हैं, जिनका इस्तेमाल अक्सर किसी देश में बीमा क्षेत्र के विकास के स्तर का आकलन करने के लिए किया जाता है। इंश्योरेंस पेनिट्रेशन को जीडीपी में बीमा प्रीमियम के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है, जबकि बीमा डेंसिटी की गणना प्रीमियम और जनसंख्या (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) के अनुपात के रूप में की जाती है। इसे Per Capita प्रीमियम भी कहते हैं। भारत में, इंश्योरेंस पेनिट्रेशन 2.7 प्रतिशत से बढ़कर 3.7 प्रतिशत हो गया है। वहीं, इंश्योरेंस डेंसिटी 2001 से 2024 के बीच 11.5 डॉलर से बढ़कर 95 डॉलर हो गई है। इसके विपरीत, इंश्योरेंस पेनिट्रेशन और डेंसिटी का वैश्विक औसत 2024 में क्रमशः 7 प्रतिशत और 889 डॉलर है।
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कोरोना के समय आया उछाल
संभावनाओं के विपरीत भारत में इंश्योरेंस पेनिट्रेशन में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। 2001 में, इंश्योरेंस पेनिट्रेशन 2.71 प्रतिशत था, जो 2019 में बढ़कर 3.76 प्रतिशत हो गया। 2019 के दौरान एशिया में अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में इंश्योरेंस पेनिट्रेशन काफी कम रहा। इस दौरान, मलेशिया में यह 4.72 प्रतिशत, थाईलैंड में 4.99 प्रतिशत और चीन में 4.30 प्रतिशत था। हालांकि, कोरोना महामारी के कारण अगले दो वर्षों में इसमें उछाल देखने को मिला। लेकिन 2022-23 और 2023-24 की अवधि में यह फिर नीचे आ गया।
वैश्विक औसत से है कम
वहीं, पिछले कुछ वर्षों में बीमा डेंसिटी में धीरे-धीरे वृद्धि देखी गई है, लेकिन यह वैश्विक औसत से काफी कम है। वित्तीय वर्ष 2023 में भारत की इंश्योरेंस डेंसिटी 95 डॉलर तक पहुंच गई, जबकि वैश्विक औसत 889 डॉलर रहा। यह असमानता भारत के बीमा बाजार में वृद्धि की काफी संभावना को उजागर करती है।
FDI से ऐसे मिला फायदा
साल 2000 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की शुरुआत के बाद से भारत के बीमा क्षेत्र ने सितंबर 2024 तक 82,847 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया। इसने विकास को गति देने, ऑपरेशन को सुव्यवस्थित करने और ग्राहक पहुंच का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 31 मार्च, 2024 तक कुल 41 बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश आ गया था।
अब और सुधरेगी स्थिति
सरकार बीमा इंडस्ट्री की क्षमता को पूरी तरह से अनलॉक करना चाहती है, जिसके अगले पांच वर्षों में 7.1 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है। मौजूदा FDI कैप को खत्म करने से स्थिर विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। कंपनियों के पास अपने विकास के लिए अधिक पैसा होगा और परिणामस्वरूप देश भर में इंश्योरेंस पेनिट्रेशन में सुधार का रास्ता खुलेगा।
बेहतर होंगे प्रोडक्ट
एक्सपर्ट्स का कहना है कि 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति से दीर्घकालिक पूंजी उपलब्धता सुनिश्चित होगी। इससे बीमा कंपनियां लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को अपना सकेंगी और अपने डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को और मजबूत बना सकेंगी। FDI लिमिट बढ़ने से दिग्गज विदेशी बीमा कंपनियां भारत के प्रति आकर्षित होंगी, जिससे यहां रोजगार के नए अवसर खुलेंगे। इसके अलावा, ग्राहकों को पहले से ज्यादा बेहतर बीमा उत्पाद मिल सकेंगे। क्योंकि जब प्रतियोगिता बढ़ेगी, तो कंपनियां ज्यादा बेहतर पेशकश पर फोकस करेंगी। इसके अलावा, बीमा उत्पाद सस्ते भी हो सकते हैं।
कई देशों में है ये व्यवस्था
कनाडा, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और चीन सहित कई देश बीमा में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति देते हैं। ऐसे में भारत की निवेश नीतियों को वैश्विक मानकों के साथ जोड़ने से विदेशी बीमा कंपनियों के लिए भारत एक आकर्षक डेस्टिनेशन बन सकता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, बीमा क्षेत्र में 100% FDI, ग्राहक से लेकर कंपनियों तक सभी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।