Rupee Global Currency: विश्वभर के कारोबार में अब भारतीय रुपया भी जल्द अपनी जगह बनाएगा और डॉलर व पाउंड जैसी करेंसी को टक्कर देगा। RBI द्वारा नियुक्त पैनल ने सीमा पार लेनदेन के लिए रुपये के उपयोग को बढ़ाने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत किया है। एशियन क्लियरिंग यूनियन के सदस्य भी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए स्थानीय मुद्राओं में व्यापार का निपटान करना चाह रहे हैं। तो भारत के लिए क्या लाभ हैं?
दरअसल, RBI ने जो पैनल बनाया था, अब उसने अपने सुझाव दिए हैं। पैनल की तरफ से जो सुझाव दिए गए, उनमें सीमा पार व्यापारिक लेनदेन के लिए आरटीजीएस का इस्तेमाल करना और रुपए को अंतरराष्ट्रीय मुदाकोष (IMF) के स्पेशल आहरण अधिकार (SDR) ग्रुप में शामिल करना शामिल है। ग्रुप में पहले से ही डॉलर, यूरो, जापानी येन, पाउंट स्टर्लिंग और चीनी रॅन्मिन्बी शामिल है।
करेंसी अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है?
अंतर्राष्ट्रीयकरण का अर्थ है गैर-निवासियों द्वारा वस्तुओं, सेवाओं या वित्तीय संपत्तियों की खरीद सहित सीमा पार लेनदेन के लिए करेंसी का उपयोग करना। एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा का उपयोग निजी प्लेयर द्वारा व्यापार को निपटाने के लिए या सरकारों द्वारा मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करने और भुगतान संतुलन के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है।
इसका उपयोग निजी प्लेयर द्वारा आरक्षित मुद्रा या पूंजीगत संपत्ति के रूप में भी किया जा सकता है। यह प्रक्रिया अर्थव्यवस्था के आकार और व्यापार के पैमाने के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। वर्तमान में, अमेरिकी डॉलर, यूरो, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड दुनिया में प्रमुख आरक्षित मुद्राएं हैं।
भारत को क्या होगा फायदा?
सीमा पार लेनदेन में रुपये के उपयोग से देश के निर्यातकों और आयातकों को लेनदेन लागत कम करने और विनिमय दर जोखिमों को सीमित करने में मदद मिलती है।
यह वैश्विक वित्तीय बाजारों तक बेहतर पहुंच के कारण पूंजी की लागत को कम करने में भी मदद करता है और विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने की आवश्यकता को कम करता है।
अंतर्राष्ट्रीयकरण सरकार को विदेशी मुद्रा उपकरण जारी करने के बजाय अंतरराष्ट्रीय बाजारों में घरेलू मुद्रा ऋण जारी करके अपने बजट घाटे का एक हिस्सा वित्तपोषित करने की अनुमति दे सकता है। यह सरकार को विदेशों से निजी पूंजी प्रवाह द्वारा अपने चालू खाते के घाटे का एक हिस्सा वित्त पोषित करने की अनुमति भी दे सकता है।
क्या है चुनौतियां?
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये की दैनिक औसत हिस्सेदारी सिर्फ 1.6 फीसदी के आसपास है और वहीं, वैश्विक व्यापार में भारतीय हिस्सेदारी लगभग 2 फीसदी है। लेकिन यहां यह अच्छी बात है कि भारत द्वारा करीब 20 देशों के साथ रुपये में सीमित लेनदेन की प्रक्रिया चालू की है।