---विज्ञापन---

Hindu succession act 2005: क्या शादी के बाद भी होता है बेटियों का पिता की प्रॉपर्टी पर हक? जानें क्या कहता है कानून

Hindu succession act 2005: देश की सर्वोच्च अदालत ने माना है कि बेटियों का अपने पिता की संपत्ति पर सहदायिक अधिकार होगा, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रभावी होने से पहले उनकी मृत्यु हो चुकी हो। एक हिंदू महिला के संपत्ति के अधिकारों को दो अलग-अलग समय चरणों में समझा जा सकता […]

Edited By : Nitin Arora | Updated: May 4, 2023 12:32
Share :
PROPERTY

Hindu succession act 2005: देश की सर्वोच्च अदालत ने माना है कि बेटियों का अपने पिता की संपत्ति पर सहदायिक अधिकार होगा, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रभावी होने से पहले उनकी मृत्यु हो चुकी हो। एक हिंदू महिला के संपत्ति के अधिकारों को दो अलग-अलग समय चरणों में समझा जा सकता है। एक 2005 से पहले और फिर इसके बाद में। यह आपको समझने में मदद करेगा कि 2005 से पहले और इस वर्ष के बाद एक हिंदू बेटी के संपत्ति अधिकार क्या थे।

2005 से पहले बेटी का संपत्ति अधिकार

पहले यहां यह भी साफ कर दें कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदुओं के अलावा जैनियों, सिखों और बौद्धों पर भी लागू होता है। अब बात यह कि 2005 से पहले क्या होता था। दरअसल, तब कानून ने परिवार में पुरुषों को सहदायिक के रूप में मान्यता दी थी, वही परिवार में पैदा हुई बेटियों के नाम संपत्ति करने का कोई मतलब नहीं था। 2005 से पहले, परिवार में सभी बेटियां केवल एक HUF की सदस्य थीं, सहदायिक नहीं थीं।

---विज्ञापन---

हिंदू कानून 1956 के तहत सहदायिक कौन था?

हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत, कोपार्सनर शब्द एक व्यक्ति को दर्शाता है, जो एक HUF में अपने जन्म से अपनी पैतृक संपत्ति में कानूनी अधिकार ग्रहण करता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, HUF में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति जन्म से सहदायिक बन जाता है। HUF की संपत्ति में सहदायिकों और सदस्यों के अधिकार अलग-अलग हैं। सहदायिकों को संपत्ति के बंटवारे की मांग करने और शेयर प्राप्त करने का अधिकार है।

इसमें कहा गया थि शादी के बाद, बेटी पिता के एचयूएफ की सदस्य नहीं रहेगी और अगर संपत्ति का विभाजन हो जाता है, तो वह संपत्ति में हिस्सेदारी की हकदार नहीं होगी।

---विज्ञापन---

2005 के बाद संपत्ति में बेटी का अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6, जो एचयूएफ संपत्ति में सहदायिक के अधिकार से संबंधित है, को 2005 में संशोधित किया गया था। इस संशोधन के साथ, बेटियों को बेटों के बराबर रखा गया था, जहां तक एचयूएफ संपत्ति में सहदायिकी अधिकारों का संबंध है। नतीजतन, बेटी को सहदायिकी से जुड़े सभी अधिकार मिलते हैं, जिसमें संपत्ति के विभाजन के लिए पूछने और एचयूएफ का कर्ता बनने का अधिकार भी शामिल है। संशोधन 9 सितंबर, 2005 को प्रभावी हुआ। लेकिन यहां शादी के बाद के हक को लेकर अब भी दुविधा बनी हुई थी।

विवाहित बेटी के अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के तहत शादी के बाद, बेटी अपने माता-पिता की एचयूएफ की सदस्य नहीं रहेगी, लेकिन सहदायिक बनी रहेगी। इसलिए, वह एचयूएफ संपत्ति के विभाजन के लिए पूछने और एचयूएफ की कर्ता बनने की हकदार है, यदि वह अपने पिता के एचयूएफ की सबसे बड़ी कोपार्सनर है।

इसके अलावा यहां तक कि एक विवाहित बेटी के मामले में, जिसकी मृत्यु हो गई है, उसके बच्चे उन शेयरों के हकदार हैं जो उसे प्राप्त होते। यदि विभाजन के दिन उसकी कोई भी संतान जीवित नहीं है, तो पोते-पोतियां उन शेयरों के हकदार होंगे जो बेटी को विभाजन पर प्राप्त होते।

HISTORY

Edited By

Nitin Arora

First published on: May 04, 2023 12:32 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें