खेलों पर सट्टा तो बहुत पहले से लगता रहा है, लेकिन आजकल इसका नया और लीगल वर्जन आ गया है। अब फैंटेसी ऐप्स (Fanstasy App) के जरिए काफी हद तक यह काम किया जाता है। चूंकि ये ऐप्स ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म की लीगल कैटेगरी में आते हैं, इसलिए इसे सट्टा नहीं माना जाता। ऐसे कई ऐप्स यूजर को लाइव मैच के दौरान अपनी टीम बनाने और उसके प्रदर्शन के आधार पर पॉइंट्स कमाने का मौका देते हैं। इसमें जीत के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। चलिए इस पूरे खेल को बारीकी से समझने की कोशिश करते हैं।
हार-जीत का खेल
कई फैंटेसी ऐप्स को सेलेब्रिटीज सपोर्ट करते हैं, जिनकी वजह से उनका इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर ड्रीम11 के विज्ञापन में दिग्गज क्रिकेटर्स को देखा जा सकता है, जो लोगों से टीम बनाने की अपील करते हैं। कई बार लोग जीतते भी हैं, लेकिन हारने वालों की तुलना में यह संख्या बेहद कम है। इन ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म को इस तरह तैयार किया गया है कि एक बार इससे जुड़ने वाला बार-बार दांव लगाने के लिए विवश हो जाता है। इसे एक तरह का नशा कहा जा सकता है।
बना रहता है रोमांच
फैंटेसी स्पोर्ट्स के जरिए यूजर रियल-लाइफ गेम्स से कनेक्ट कर सकते हैं। जब कोई लाइव मैच होता है, तब यूजर्स अपनी पसंद के खिलाड़ियों की टीम बनाते हैं। इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें पॉइंट्स मिलते हैं। इससे यूजर्स को ऐसा अनुभव होता है कि जैसे उसकी बनाई टीम ही मैच खेल रही है। ऐसे में उसका रोमांच बना रहता है और वो हारने के बाद दोबारा जीत की कोशिश को मजबूर हो जाता है। यानी यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। सट्टेबाजी या जुए में भी आमतौर पर यही होता है।
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— Jaiky Yadav (@JaikyYadav16) April 10, 2025
ऐसा है बिजनेस मॉडल
फैंटेसी ऐप्स का बिजनेस मॉडल कुछ इस तरह का है कि इन्हें तैयार करने वाली कंपनियों को मोटी कमाई होती है। हालांकि, सबसे ज्यादा कमाई किसी की होती है, तो वो सरकार है। इसे उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिये पांच खिलाड़ियों ने 100-100 रुपये यानी कुल 500 रुपये का दांव लगाया। इस पर सरकार सबसे पहले 28% GST वसूलेगी, जो हुआ करीब 140 रुपये। अब बचे हुए 360 रुपये में से फैंटेसी ऐप का मालिक भी अपनी फीस लेगा, जो आमतौर पर 15% से 20% तक होती है। 20% के लिहाज से उसकी जेब में 72 रुपये चले जाएंगे। कायदे में बचा हुआ अमाउंट यानी 288 रुपये जीतने वाले खिलाड़ी को मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा होगा नहीं। क्योंकि उसमें से 30% TDS काटा जाएगा, जो लगभग 86.4 रुपये होता है। इस तरह, सबकुछ काटने के बाद कुल राशि बचेगी 201.6 रुपये। इसमें से जीतने वाले खिलाड़ी द्वारा लगाए गए 100 रुपये के दांव को माइनस कर दें, तो विजेता का नेट फायदा होगा 101.6 रुपये।
भर रहा सरकारी खजाना
इस गणित से यह समझ आता है कि ऑनलाइन गेमिंग के इस खेल में सरकार को सबसे ज्यादा कमाई होती है। GST और टीडीएस को मिलाकर 500 रुपये के दांव पर उसकी झोली में सबसे ज्यादा 226.4 रुपये आएंगे। जबकि ऐप के मालिक को 72 और विजेता को 100 रुपये का फायदा होगा। अब 100 रुपये लगाकर लगभग उतना ही कमाना फायदे का सौदा जरूर लगता है, लेकिन जीत की कोई गारंटी नहीं होती। कई ऐसे मामले हैं जहां लोग जीत की आस में बहुत कुछ गंवा चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक, यूजर के जीतने की संभावना मात्र 0.0000667% होती है। यहां तक कि यदि कोई व्यक्ति 3-4 टीमें भी बनाता है, तो भी जीत की संभावना बेहद कम रहती है।
कितना बड़ा है बाजार?
फैंटेसी स्पोर्ट्स का बाजार लगातार बड़ा होता जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टीम इंडिया के प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मैच पर करीब 200 करोड़ रुपये का दांव इन प्लेटफॉर्म्स पर लगाया जाता है। यदि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट्स को जोड़ लें तो यह आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाता है। 2022 में फैंटेसी गेमिंग ऐप्स का कुल रेवेन्यू 6,800 करोड़ रुपये था और 2027 तक इसके 25,240 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े पैमाने पर लोग इसका हिस्सा बन रहे हैं। फैंटेसी स्पोर्ट्स खेलने वालों की संख्या 2016 में 20 लाख थी, 2018 में बढ़कर 5 करोड़ हुई। 2020 में यह आंकड़ा 10 करोड़ को पार कर गया, 2022 में 18 करोड़ यूजर हुए और 2027 तक यह संख्या 50 करोड़ से आगे पहुंच सकती है।