चीन में सरकार की नाराजगी का मतलब है शामत। फिर चाहे वह कोई भी क्यों न हो। चीन के कई अरबपति इसे महसूस कर चुके हैं। अलीबाबा के फाउंडर जैक मा को भी कुछ वक्त पहले इसका अहसास हुआ था, जब उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए थे। अब बिजनेस टायकून ली का-शिंग को लेकर भी ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है। दरअसल, ली का-शिंग (Li Ka-shing) कुछ ऐसा कर बैठे हैं, जिससे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का पारा चढ़ गया है।
दो देशों के बीच फंसे
पनामा नहर(Panama Canal) पिछले कुछ समय से डोनाल्ड ट्रंप और चीन के बीच विवाद की वजह बनी हुई है। ट्रंप इस पर अपना कब्जा चाहते हैं और चीन किसी भी सूरत में यहां अमेरिका की मौजूदगी नहीं देखना चाहता। ट्रंप का आरोप है कि चीन इसे नियंत्रित कर रहा है, जबकि पनामा ने इस दावे को खारिज कर दिया है। दो देशों के इस झगड़े के बीच में ली का-शिंग फंस गए हैं। दरअसल, शिंग की कंपनी CK Hutchison ने नहर के दोनों छोरों पर स्थित पोर्ट्स को ब्लैकरॉक को बेचने का ऐलान किया है। ब्लैकरॉक अमेरिका की मल्टीनेशनल इनवेस्टमेंट कंपनी है और दुनिया की सबसे बड़ी एसेट मैनेजर के रूप में पहचानी जाती है।
जांच में जुटीं एजेंसियां
इस डील से ली का-शिंग की कंपनी को बड़ा फायदा होने वाला है। उसके खाते में 19 अरब डॉलर से अधिक आएंगे। इस डील की खबर ने शी जिनपिंग का पारा चढ़ा दिया है। चीनी अधिकारियों ने सौदे की जांच शुरू कर दी है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि अधिकारी क्या कदम उठा सकते हैं, क्योंकि बेचे जा रहे बंदरगाह चीन और हांगकांग से बाहर हैं, लेकिन जिनपिंग की नाराजगी अरबपति कारोबारी ली का-शिंग और उनकी कंपनी के लिए मुश्किल जरूर पैदा कर सकती है। चीन में इस सौदे को ली के अमेरिकी दबाव के आगे घुटने टेकने के तौर पर लिया जा रहा है।
इसलिए महत्वपूर्ण है नहर
ली का-शिंग हांगकांग के बिजनेस टायकून हैं। सीके हचिसन की एक इकाई पनामा नहर के निकट स्थित पांच बंदरगाहों में से दो को नियंत्रित करती है। शिंग की कंपनी ने 1998 में पनामा से इन दोनों पोर्ट्स का नियंत्रण हासिल किया था। 51 मील लंबी यह नहर महत्वपूर्ण जलमार्ग है और वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग 3% परिवहन यहीं से होता है। यह अमेरिकी सैन्य जहाजों की आवाजाही के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसलिए चीन के लिए इसके मायने समझे जा सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार पनामा नहर का नियंत्रण वापस लेने की धमकी दे चुके हैं।
ट्रंप की धमकियों से झुके?
डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के बाद सीके हचिसन ने हाल ही में घोषणा की थी कि कंपनी 23 देशों में अपनी हिस्सेदारी वाले 43 बंदरगाह बेचेगी और केवल चीन-हांगकांग की एसेट अपने पास रखेगी। चीनी सरकार ने इसे अमेरिकी दबाव के आगे घुटने टेकना करार दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि ली का-शिंग ने चीन लोगों के साथ विश्वासघात किया है। सरकार का कहना है कि CK Hutchison ने लाभ कमाने के लिए राष्ट्रीय हितों की अवहेलना की है। ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स के अनुसार, हांगकांग के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति ली की संपत्ति मार्च की शुरुआत में इस डील की घोषणा के तुरंत बाद 1.3 अरब डॉलर बढ़ गई थी। वह कुल 30.5 अरब डॉलर के मालिक हैं।
हर तरफ है नाराजगी
हांगकांग में चीन के शीर्ष कार्यालय ने भी इस समझौते पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। हांगकांग के नेता जॉन ली ने कहा है कि इस समझौते के बारे में समाज में व्यापक चर्चाएं उन चिंताओं को दर्शाती हैं जिन पर गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस डील से कानून और नियमों के अनुसार निपटा जाएगा। ब्लूमबर्ग न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ मार्केट रेगुलेशन सहित कई चीनी एजेंसियां इस डील की जांच में जुट गई हैं। एजेंसियां यह पता लगा रही हैं कि किसी नियम का उल्लंघन तो नहीं किया गया। डील को फाइनल करने के लिए सीके हचिसन को ब्लैकरॉक के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम के साथ एक निर्णायक समझौते पर हस्ताक्षर करना है, जिसकी संभावित तारीख 2 अप्रैल है। यह भी संभव है कि चीनी दबाव में CK Hutchison डील से पीछे हट जाए।
गायब हुए कई अरबपति
चीन में सरकार के खिलाफ कुछ बोलने या उसकी नीतियों पर सवाल खड़ा करने पर कड़ी कार्रवाई की जाती है। अलीबाबा के फाउंडर जैक मा ने कुछ साल पहले चीन सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए थे। इसके बाद वह अचानक गायब हो गए। उनके खिलाफ जांच बैठा दी गई। हालांकि, वह कुछ समय बाद वापस लौट आए, लेकिन उनका रुतबा पहले जैसा नहीं रहा। इसके बाद चीन के इन्वेस्टमेंट बैंकर बाओ फैन (Bao Fan)के लापता होने की जानकारी सामने आई। इसी तरह रेन झिकियांग अचानक गायब हो गए थे और बाद में उन्हें 18 साल की सजा सुनाई गई। साल 2015 में समूह फोसुन इंटरनेशनल के अध्यक्ष अरबपति गुओ गुआंगचांग भी गायब हो गए थे। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ली का-शिंग चीनी सरकार की नाराजगी मोल लेकर आगे नहीं बढ़ सकते। उन्हें या तो सरकार से डील की सहमति लेनी होगी या फिर कदम वापस खींचने होंगे। अन्यथा एक नहर उनकी बर्बादी की कहानी भी लिख सकती है।
कब आई थी अस्तित्व में?
पनामा नहर का निर्माण अमेरिकी सहयोग से 1914 में हुआ था। पनामा पहले कोलंबिया के कब्जे में था और अमेरिका की मदद से आजाद हुआ था, इसलिए अमेरिका के प्रति उसका झुकाव अधिक रहा। यही वजह रही कि करीब दो दशकों तक इस नहर को अमेरिका द्वारा संचालित किया जाता रहा। हालांकि, 1999 में अमेरिका ने नहर का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया। अब डोनाल्ड ट्रंप इस पर नियंत्रण वापस पाना चाहते हैं। उनका आरोप है कि चीन इसे नियंत्रित कर रहा है।
यह भी पढ़ें – Crypto कंपनियों पर मेहरबान Donald Trump, जांच में अब दिलचस्पी नहीं दिखा रहीं एजेंसियां