Attention loan borrowers: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 30 सितंबर को अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की पिछली बैठक के दौरान मई के बाद से लगातार चौथी बार रेपो दरों में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की थी। इस फैसले का उद्देश्य लिक्विडिटी को कम करना और मुद्रास्फीति को कम करना था। हालांकि, मुद्रास्फीति अभी भी 6 प्रतिशत के अपने सही बैंड से नीचे आने में विफल रही है।
जैसा कि पिछले 10 महीनों से भारत में खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के सुखद क्षेत्र से ऊपर बनी हुई है। विश्लेषकों का मानना है कि भविष्य में रेपो रेट में और बढ़ोतरी की उम्मीद है।
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रेपो रेट बढ़ा तो क्यो होगा?
ऐसे में लोन और महंगे हो सकते हैं, जिससे आम लोगों को और परेशानी होगी। देख जाए तो आए दिन बैंक लोन की ब्याज दरें बढ़ाते रहते हैं। दरअसल यह इसलिए क्योंकि रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर बैंक आरबीआई से कर्ज लेते हैं। ऐसे में अगर रेपो रेट को बढ़ाया जाता है, तो बैंकों पर ब्याज दर बढ़ाने का दबाव बढ़ जाता है।
इस प्रकार, सभी की निगाहें अब MPC की अगली बैठक पर टिकी हैं, जो दिसंबर में होने की उम्मीद है। चार बढ़ोतरी के बाद, आरबीआई ने मई में अपनी पहली अनिर्धारित मध्य-बैठक वृद्धि के बाद से अब कुल 190 आधार अंकों की दरों में वृद्धि की है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने 30 सितंबर को एमपीसी के फैसले के बाद अपने संबोधन में कहा था, ‘भू-राजनीतिक तनावों और वैश्विक वित्तीय बाजार की घबराहट से उत्पन्न होने वाली अनिश्चितताओं के साथ मुद्रास्फीति की गति पर बादल छाए हुए हैं।’
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