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मुगलों के आने के बाद कितनी बदली श्रीराम की नगरी, अकबर ने क्यों चलवाईं राम-सीता की तस्वीर वाली मुहरें?

Bharat Ek Soch: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में होने वाले प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर घर-घर में उत्साह है।

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Jan 7, 2024 21:11
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भारत एक सोच

Bharat Ek Soch: इन दिनों गांव में किसी पेड़ के नीचे अलाव तापते लोगों से लेकर बड़े शहरों में हाईराइज अपार्टमेंट के ड्राॅइंग रूम में हीटर के जरिए ठंड में राहत महसूस करते लोगों के बीच बातचीत का सामान्य विषय श्रीराम और अयोध्या है। सोशल मीडिया पर भी लोग शेयर करने लगे हैं कि वो इस तारीख, उस तारीख को अयोध्या में श्रीरामलला के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं, लेकिन सामान्य भारतीय जनमानस के लिए राम क्या रहे हैं।

क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है? भारत में धर्म और धार्मिक परंपराओं की नए सिरे से व्याख्या करने वाले आचार्य रजनीश कहा कहते थे कि गांवों में लोगों बिना किसी मतलब, बिना किसी लेन-देन और बिना किसी जान-पहचान के भी एक दूसरे से ‘जय रामजी की’ कर लेते हैं। वो कहते हैं कि जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को जय रामजी की कहता है तो इसका मतलब हुआ कि वो दूसरे व्यक्ति के भीतर के राम की जय कर रहा है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरा शख्स निजी जिंदगी में क्या है, उसका पेशा क्या है? उसकी सामाजिक-आर्थिक हैसियत क्या है?

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भारतीय परंपरा के भीतर से निकला राम तत्व

ये भारतीय परंपरा के भीतर से निकला राम तत्व है। जो नि:स्वार्थ भाव से सबको जोड़ता रहा है, वो भी बिना किसी भेदभाव के। क्या भारतीय परंपरा में हजारों साल से चले आ रहे इस अद्भुत राम तत्व को भी हमारा समाज उसी शिद्दत से स्वीकार करेगा। भौतिक आडंबरों से इतर हर जीव-निर्जीव में राम को महसूस करेगा, ये एक बड़ा सवाल है। पूरी दुनिया के लिए श्रीराम एक ऐसे नायक, एक ऐसे आदर्श पुरुष हैं, एक ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिनका संघर्ष एक आम आदमी की तरह रहा। जिनके जीवन में सुख कम और दुख ज्यादा है, लेकिन वो हमेशा सत्य का रास्ता चुनते हैं। संघर्ष का रास्ता चुनते हैं। शॉर्टकट के चक्कर में नहीं पड़ते हैं।

इसलिए मनुष्य का देह धारण करने वाले श्रीराम लोगों के लिए भगवान बन जाते हैं। उन्हें जो जिस रूप में देखता है, अपने बीच का पाता है। वो सबके हो जाते हैं, सब उनके हो जाते हैं। अयोध्या अध्याय के पिछले के एपिसोड हम आपको बता चुके हैं कि श्रीराम की नगरी अयोध्या समय के प्रवाह के साथ किन-किन पड़ावों से गुजरते हुए आगे बढ़ती रही।

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सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि इस्लाम को मानने वाले अमीर खुसरो जैसे राजदरबारी, साहित्यकार, कलाकार, संगीतज्ञ का अयोध्या की तहजीब ने मन मोह लिया और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को आगे कर सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का काम शुरू हुआ। आज के ‘अयोध्या अध्याय’ में हम आपको बताएंगे कि मुगलों के आने के बाद अयोध्या में किस तरह की हलचल शुरू हुई।

बात अयोध्या के कल, आज और कल की हो रही है तो इतिहास के पन्नों को थोड़ा और पलटना ठीक रहेगा। बात 13वीं शताब्दी की है। तुगलक वंश के एक समकालीन लेखक हुआ करते थे- जियाउद्दीन बरनी। उनकी एक किताब है तारीख-ए-फिरोजशाही। इसमें लिखा गया है कि मुहम्मद बिन तुगलक गंगा किनारे एक शहर बसाना चाहता था– जिसका नाम स्वर्गद्वारी रखा।

एक मुस्लिम शासक को स्वर्गद्वारी नाम किस सोच के साथ पसंद आया, इस पर इतिहासकार अलग-अलग दलील देते हैं, लेकिन एक बात साफ है कि 14वीं शताब्दी में भी अयोध्या की भारत के नक्शे पर बहुत ही चमकदार पहचान बनी हुई थी। फिरोजशाह तुगलक के भी दो बार अयोध्या आने का जिक्र मिलता है। साम्राज्य के विस्तार की ख्वाहिश लिए बाबर भारत आया।

बाबरनामा में उसके युद्ध अभियान और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अनुभवों का विस्तार से जिक्र है। बाबरनामा में यहां तक लिखा है कि भारत में लोग पका कटहल किस तरह से खाते हैं। ये स्वाद में खजूर से किस तरह अलग है। इतिहासकार लाला सीताराम भूप ने अपनी किताब अयोध्या का इतिहास में लिखा है कि 1528 ईस्वी में मुगल शासक बाबर ने अयोध्या से कुछ दूरी पर पूर्व की ओर तंबू ताना। बाबर के साथ उसका सेनापति मीर बाकी ताशकंदी भी था। अयोध्या के पास बाबर 7 दिनों तक रुका, लेकिन इस बात पर इतिहासकार एक मत नहीं है कि बाबर अयोध्या आया या नहीं।

अकबर के दौर में मुहरों पर राम-सीता की तस्वीरें लगाई गईं

मुगल शासक अकबर के दौर में एक अहम सूबा था अवध। जिसकी राजधानी थी अयोध्या। भारतीय जनमानस के बीच खासकर उत्तर भारत में घर-घर रामरचित मानस की चौपाइयां सुनाई देने लगीं। सामाजिक-धार्मिक जीवन में भगवान राम का महत्व बढ़ा। वैसे-वैसे अयोध्या भी एक हिंदू तीर्थ के तौर पर महत्वपूर्ण होती गई। मुगल बादशाह अकबर की समझ में भी एक बात अच्छी तरह आ चुकी थी कि भारत पर अगर शासन करना है तो लोगों के मन में बसे आराध्यों को मानना होगा। इसलिए अकबर के दौर में मुहरों पर राम-सीता की तस्वीरें लगाई गईं। मुगलों के लिए अयोध्या एक सूबा और हिंदुओं के लिए पवित्र तीर्थ स्थान बना रहा।

क्या अयोध्या में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी?  

अयोध्या के वैभव और रामराज्य की चर्चा आम हो गई। लोगों के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र नई प्राण शक्ति बनने लगा। मतलब, गोस्वामी तुलसीदास ने राम के चरित्र को आम आदमी के बीच उनकी बोली में पहुंचा दिया। उसी दौर में रामायण का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ। समय के प्रवाह के साथ अयोध्या मिली-जुली संस्कृति के साथ आगे बढ़ती रही। भारत में औरंगजेब की मौत के बाद मुगल तेजी से कमजोर पड़ने लगे, 1731 में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने अवध को काबू करने की जिम्मेदारी अपने शिया दीवान-वज़ीर सआदत खां को सौंपी। इसके बाद अवध की कमान मुगल बादशाहों के हाथों से फिसलकर नवाबों-वजीरों के हाथों में आ गई। धीरे-धीरे अयोध्या में नई बहस आकार लेने लगी। मसलन, अयोध्या में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी?

अवध के नवाब हनुमान जी के उपासकों में थे

अयोध्या में कदम-कदम पर मंदिर बने, मस्जिदें भी। मंदिर से घंटियों की आवाज और मस्जिद से अजान दोनों सुबह-शाम साथ-साथ निकलने लगी। अवध के नवाब खुद हनुमान जी के उपासकों में थे। कुछ कट्टरपंथियों को हिंदू-मुस्लिमों में भाईचारा हजम नहीं हो रहा था। इस दौर में सुन्नी फकीर शाह गुलाम हुसैन समेत कुछ मुसलमानों ने अफवाह उड़ा दी कि हनुमागढ़ी में जहां मंदिर है, वहां औरंगजेब ने एक मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनाया गया। शाह गुलाम हुसैन ने ऐलान किया कि उसी जगह 28 जुलाई, 1855 को नमाज पढ़ेंगे। इसके बाद पूरे इलाके में तनाव फैल गया।

मंदिर के शंख और घंटियों की आवाज मस्जिदों तक पहुंचती थीं

अंग्रेजों के आने से पहले ही अयोध्या में झगड़े की नींव पड़ चुकी थी। कई बार तलवारों की नोंक पर फैसला करने की कोशिश हुई। अयोध्या की जमीन खून से लाल हुई, लेकिन झगड़ा ज्यों का त्यों बना रहा। अयोध्या एक ऐसी नगरी बन चुकी थी- जिसमें मंदिर के शंख और घंटियों की आवाज मस्जिदों तक पहुंचती थीं । मस्जिदों से निकलने वाली अजान मंदिरों तक। देश का हिंदू समुदाय जहां अयोध्या को तीर्थों का तीर्थ की तरह देख रहा था। अपने अराध्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मस्थली के तौर पर तो बाबरी मस्जिद एक अलग इतिहास बनाने की कोशिश करती दिख रही थी। ऐसे में अयोध्या भारत में रहने वाले लोगों के बीच दो सोच का रणक्षेत्र बन चुकी थी, जिसे सुलझाना अंग्रेजों के लिए भी बहुत मुश्किल था। आज के एपिसोड में बस इतना ही अगली किस्त में बात करेंगे कि अयोध्या के झगड़े को अंग्रेजों ने किस तरह से देखा?

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Edited By

Anurradha Prasad

First published on: Jan 07, 2024 09:01 PM

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