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Maharashtra Election में वादों की बहार है…आगे किसकी सरकार है? देखें न्यूज 24 की स्पेशल रिपोर्ट

आइए आपको भारतीय अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खोखला करने वाले रेवड़ी कल्चर का लेफ्ट, राइट और सेंटर समझाते हैं।

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Nov 17, 2024 21:27
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Maharashtra and Jharkhand Assembly Election 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है। इस साल की शुरुआत में एक देश, एक चुनाव की बातें बहुत जोर-शोर से हुईं, लेकिन, देश के किसी-न-किसी हिस्से में चुनाव प्रचार का शोर लगातार जारी है। एक राज्य में चुनाव खत्म और दूसरे में शुरू। लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव, उसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड। इसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव की घंटी बजनी तय मानी जा रही है। ये भी संभव है कि बिहार विधानसभा के चुनाव भी समय से पहले करा दिए जाएं। लेकिन, हर चुनाव में एक चीज बहुत कॉमन है-वो है चुनावी वादे।

एक हाथ वोट दो और दूसरे हाथ मुफ्त की रेवड़ियां लो

चुनाव प्रचार में राजनीतिक दल जिस तरह लुभावने वादे कर रहे हैं-उससे ऐसा लग रहा है कि एक ऐसी व्यवस्था चल रही है, जिसमें एक हाथ वोट दो और दूसरे हाथ मुफ्त की रेवड़ियां लो। महाराष्ट्र में महायुति ने महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने का वादा किया तो महाविकास अघाड़ी ने तीन हजार रुपये देने का। महायुति ने किसानों को साल में 15 हजार रुपये देने की बात की तो महाविकास अघाड़ी ने तीन लाख तक कर्ज माफी का वादा किया। कोई सरकारी नौकरियों का वादा कर रहा है तो बेरोजगारी भत्ता देने के नाम पर लोगों से वोट मांग रहा है।

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राजनीतिक पार्टियों ने कितने वादे किए और उनमें से कितने पूरे हुए

झारखंड में भी इसी तरह के वादे किए गए हैं। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनाव में भी वादों की बहार दिखी। लोगों का वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक दल तरह-तरह के लुभावने वादे करते हैं। बगैर ये सोचे कि उन चुनावी वादों से देश की आर्थिक सेहत पर कितना असर पड़ेगा। बगैर ये सोचे कि चुनावी वादों को पूरा करने के लिए रुपये कहां से आएंगे। बगैर ये सोचे कि अगर वादे पूरे नहीं हुए तो लोगों पर क्या गुजरेगी ? जरा दिमाग पर जोर डालिए कि पिछले दो दशकों में आपसे चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने कितने वादे किए और उनमें से कितने पूरे हुए। कभी इसे फ्रीबीज का नाम दिया जाता है, कभी रेवड़ी कल्चर का।

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भारतीय अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खोखला करने वाला रेवड़ी कल्चर

लोक कल्याणकारी योजनाएं और फ्रीबीज में अंतर करना भी बहुत मुश्किल होता जा रहा है। हमारे सिस्टम में दिनों-दिन फ्रीबीज कल्चर इतना मजबूत होता जा रहा है कि कर्ज के बोझ तले राज्य सरकारों का दम फूल रहा है। लेकिन, कोई भी राजनीतिक दल फ्रीबीज के खिलाफ आवाज उठाने या इससे हटकर नई राजनीतिक लकीर खींचने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। ऐसे में आज आपको भारतीय अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खोखला करने वाले रेवड़ी कल्चर का लेफ्ट, राइट, सेंटर से परिचय कराते हैं।

राजनीतिक पार्टियां वादों के बदले चाहती है आपका वोट

कहा जाता है कि दुनिया में कोई भी चीफ मुफ्त नहीं होती, उसकी एक कीमत होती है। वो कीमत आपसे कैसे वसूली जाती है, उसका तरीका और समय0 अलग हो सकता है। चुनावों में अगर कोई राजनीतिक पार्टी हर महीने महिलाओं को एक तय रकम देने का वादा करती है। पढ़े-लिखे बेरोजगारों के लिए बेरोजगारी भत्ते का वादा करती है, मुफ्त बिजली, मुफ्त दवाई, मुफ्त पढ़ाई की सुविधा देने का वादा करती है तो बदले में आपका वोट चाहती है। आपके वोट से प्रचंड बहुमत से अपनी सरकार चाहती है। ऐसे में सबसे पहले समझते हैं कि महाराष्ट्र के सियासी अखाड़े में वोट के बदले सियासी पार्टियां लोगों को क्या-क्या लुभावने ऑफर दे रही हैं?

महाराष्ट्र में दोबारा सरकार बनी तो क्या देंगी महायुति और महाविकास अघाड़ी?

अगर महायुति की महाराष्ट्र में दोबारा सरकार बन जाती है तो वादे के हिसाब से एक महिला को उसके वोट के बदले हर महीने 21 सौ रुपये मिलेंगे। पांच साल में एक महिला को एक लाख 26 हजार रुपये मिलेंगे। इसी तरह अगर महिला का पति किसान हुआ तो उसे भी पांच साल में 75 हजार रुपये मिलेंगे। अगर बेटा पढ़ा लिखा है, तो सरकारी नौकरी के चांस भी हैं। वहीं, अगर महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो वादा पूरा किया गया तो एक महिला को बिना किसी मेहनत के पांच साल में एक लाख 80 हजार रुपये मिलेंगे। अगर उसका पति किसान हुआ तो 3 लाख रुपये तक का कर्ज माफी का वादा है। अगर बेटे को नौकरी नहीं मिली तो बेरोजगारी भत्ता का वादा है।

महाराष्ट्र पर सात लाख करोड़ रुपये से ऊपर का कर्ज है

ये तो सिर्फ ट्रेलर है–जरा हिसाब लगाइए कि दूसरे वादों को भी जोड़ दिया जाए तो एक वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक दल कितना बड़ा दांव चलते हैं। लोक कल्याणकारी राज्य की ड्यूटी के नाम पर सरकारी खजाने पर बोझ कितना डाला जा रहा है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, मार्च 2024 तक देश के सभी राज्यों पर कुल कर्ज 75 लाख करोड़ रुपये से अधिक का है। जिसमें महाराष्ट्र पर सात लाख करोड़ रुपये से ऊपर का कर्ज है।

देश की आर्थिक सेहत के लिए हानिकारक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया। केंद्र सरकारी की कई ऐसी योजनाएं चल रही हैं, जिनमें लोगों को सरकार से मुफ्त सहूलियत मिल रही है। इसमें मुफ्त अनाज से मुफ्त इलाज जैसी कई सुविधाएं हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री मुफ्त रेवड़ी कल्चर को देश की आर्थिक सेहत के लिए हानिकारक बताते रहे हैं ।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिया ये जवाब

लोकसभा चुनाव के दौरान इंटरव्यू में जब देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से फ्रीबीज कल्चर के बारे में सवाल किया गया तो उनका जवाब था कि फ्रीबीज पर चर्चा जरूर होनी चाहिए और इसे खत्म करने की जिम्मेदारी सबकी है। चुनावी वादा पूरा करते-करते कई राज्य सरकारों का खजाना खाली है और कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। भारत के जिस राज्य पर सबसे ज्यादा कर्ज है, उसका नाम है तमिलनाडु।

रेवड़ी कल्चर की शुरुआत 1960 में हुई

माना जाता है कि भारत में रेवड़ी कल्चर की शुरुआत 1960 के दशक में तमिलनाडु में के.कामराज के स्कूलों में मिड डे मिल योजना से हुई जो सी.अन्नादुरई के सस्ते चावल के चुनावी वादे के साथ आगे बढ़ते हुए जे. जयललिता के दौर में मंगलसूत्र और टीवी तक पहुंची। आम आदमी पार्टी ने इसे सुपरसोनिक रफ्तार दी। ऐसे में आजाद भारत में रेवड़ी कल्चर के फलने-फूलने की कहानी को भी समझना जरूरी है।

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देश के नक्शे पर समय के साथ कई राजनीतिक मॉडल आए

ये भारतीय लोकतंत्र में रेवड़ी कल्चर का ही कमाल है कि देश के नक्शे पर समय के साथ कई राजनीतिक मॉडल आए। कुछ अभी भी सत्ता में हैं और कुछ हाशिए पर पहुंच गए। इनमें दिल्ली का केजरीवाल मॉडल, तेलंगाना का केसीआर मॉडल, आंध्र का जगनमोहन रेड्डी मॉडल, राजस्थान का अशोक गहलोत मॉडल, छत्तीसगढ़ का भूपेश बघेल मॉडल, मध्य प्रदेश का शिवराज मॉडल ने कभी जमकर सुर्खियां और वोट बटोरा।

हमारे हुक्मरानों और राजनीतिक दलों को ईमानदारी से सोचने की जरूरत

अब सवाल उठता है कि क्या देश के लोग भी अपने वोट के बदले सरकार से मुफ्त की रेवड़ियां चाहते हैं ? क्या हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था इतनी चरमराई हुई है कि लोगों को ऊंट के मुंह में जीरा जैसी सरकारी मदद भी बहुत बड़ी लग रही है, आखिर ऐसा क्यों ? इस पर हमारे हुक्मरानों और राजनीतिक दलों को ईमानदारी से सोचने की जरूरत है। ऐसे में भारत के साथ उन देशों के आर्थिक मॉडल और पॉलिटिक्स को भी समझने की जरूरत है। जहां लोगों को कई तरह की मुफ्त सुविधाएं दी जाती हैं। जिसे फ्रीबीज या मुफ्त की रेवड़ी की कैटेगरी में रख सकते हैं ।

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में भी फ्रीबीज की गूंज महसूस की गई

दुनिया के कई देशों में फ्रीबीज के दम पर चुनाव लड़ने और जीतने की संस्कृति तेजी से आगे बढ़ रही है। इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में भी फ्रीबीज की गूंज महसूस की गई। राजनीतिक दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती चुनाव जीत कर सत्ता हासिल करने की है। विचारधारा की लकीर दिनों-दिन गायब होती जा रही है, ऐसे में भारत में जिस तरह की राजनीतिक संस्कृति आगे बढ़ रही है, उसमें इसी तरह के भाव सुनाई दे रहे हैं- ‘तुम मुझे वोट दो’, ‘मैं तुम्हें मुफ्त बिजली दूंगा’, ‘तुम मुझे वोट दो’, ‘मैं तुम्हें मुफ्त राशन दूंगा’। तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हारे खाते में कैश डालता रहूंगा।

रेवड़ी कल्चर पर मंथन की जरूरत

भले ही राज्य बदलने के साथ योजनाओं के नाम बदल जाते हों। लेकिन, उनका मूल चरित्र यही है कि किसी भी तरह से लोगों को राहत और मदद का एहसास कराकर उनका वोट हासिल करना। इस रेवड़ी कल्चर से भारत को कब और कैसे आजादी मिलेगी। इस पर एक बहुत ईमानदार मंथन की जरूरत है।

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Edited By

Anurradha Prasad

First published on: Nov 17, 2024 09:09 PM

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