Ram Katha Sita Haran Ravana Vadh Places: अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा आज से 7 दिन बाद 22 जनवरी को होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने 14 साल का ‘वनवास’ कहां बिताया? माता सीता का हरण कहां हुआ था? रावण वध कहां हुआ था? वे कौन-कौन सी जगहें हैं, जहां श्रीराम के चरण पड़े? नहीं तो आइए हम बताते हैं और आपको रूट भी दिखाते हैं?
12 साल चित्रकूट में बिताए
हिन्दू पौराणिक धर्मग्रंथों में वर्णित है कि श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने 14 साल के ‘वनवास’ के दौरान 12 साल चित्रकूट में बिताए थे। चित्रकूट उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में है और श्रीराम से जुड़ा सबसे बड़ा धाम है। इसके बाद 2 साल का वक्त सीता हरण, उनकी तलाश और रावण वध में लगा। जब चित्रकूट से तीनों पंचवटी पहुंचे तो वहां कुटिया से माता सीता का हरण हो गया। उनकी तलाश करते-करते श्रीराम लंका तक पहुंचे और नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला पर रावण वध किया। आइए जानते हैं, उन जगहों के बारे में जहां-जहां 12 साल के दौरान श्रीराम ने धरे पग…
500 वर्षों के तप की परिणति।
The Sacred Garbhagriha of Prabhu Shri Ramlalla Sarkar is ready in all its glory to welcome the aaradhya of millions of Ram Bhakts across the world. pic.twitter.com/WWJjWc41va
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तमसा नदी, सिंगरौर और कुराई
वनवास के लिए निकले राम, सीता, लक्ष्मण सबसे पहले अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर तमसा नदी पर पहुंचे। उसे पार करके गोमती पदी पर पहुंचे। नदी पार करके प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर निषादराज गुह के राज्य श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जिसे आज ‘सिंगरौर’ कहा जाता है। सिंगरौर में गंगा पार करके कुरई पहुंचे। यहां से प्रयागराज (इलाहाबाद) पहुंचे, जहां गंगा-यमुना का संगम है। यहां से यमुना नदी को पार करके तीनों चित्रकूट पहुंचे। यहां 12 साल बिताने के दौरान उन्होंने सिद्धा पहाड़ पर रहकर जंगल में आंतक फैलाने वाले निशाचरों का खात्मा किया। चित्रकूट में ही सेना लेकर भरत श्रीराम से मिलने आए थे।
चित्रकूट, अत्रि आश्रम, दंडकराण्य
चित्रकूट के दूसरे हिस्से मध्य प्रदेश के सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था, जहां राम-सीता और लक्ष्मण ने कुछ समय बिताया। अत्रि ऋषि और उनकी पत्नी अनुसूइया ने उनकी सेवा की। चित्रकूट में बहने वाली मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, पहाड़ियों, गुफाओं को पार करके तीनों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में पहुंचे, जिन्हें दंडकारण्य कहा जाता है। इसी दंडकारण्य का दूसरा पार्ट हिस्सा है आंध्र प्रदेश का एक शहर गोदावरी नदी के तट पर भद्राचलम, जहां भद्रगिरि पर्वत पर श्रीराम रहे। हरण करके सीता को ले जाते समय दंडकारण्य में ही जटायु से रावण का टकराव हुआ था। इसी जगह दुनिया में जटायु का इकलौता मंदिर है।
नासिक, अगस्त्य मुनि आश्रम, पंचवटी
दण्डकारण्य से निकल राम-सीत और लक्ष्मण महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी में अगस्त्य मुनि के आश्रम में पहुंचे। नासिक से 56 किलोमीटर दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान है, जहां शूर्पणखा से मिलना, मारीच, खर-दूषण वध और सीता हरण के बाद जटायु वध हुआ। सर्वतीर्थ से निकलकर सीता को तलाशते हुए राम-लक्ष्मण ने तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों को पार किया और इसके आस-पास के इलाकों में सीता को तलाशा। रास्ते में जटायु और कबंध से मिलने के बाद दोनों ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे, जिसके पास बहने वाली पम्पा नदी के किनारे शबरी का आश्रम था, जो आज भी केरल में है। प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ इसी जगह पर बना है।
ऋष्यमूक पर्वत, हनुमान-सुग्रीव से भेंट
शबरी के आश्रम से निकलकर मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करके दोनों ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे। यहां हनुमान और सुग्रीव से दोनों मिले। सीता के गहने देखे। बालि वध किया। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में आज भी देखा जा सकता है। हनुमान और सुग्रीव की सेना लेकर राम-लक्ष्मण तमिलनाड़ु के कोडीकरई में पहुंचे, जहां समुद्र किनारे रामेश्वरम में पड़ाव किया। आज भी रामेश्वरम प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहां जो शिवलिंग है, वह श्रीराम ने ही स्थापित किया था।
धनुषकोडी, रामसेतु और लंका गमन
रामेश्वरम में समुद्र किनारे श्रीराम ने वह जगह तलाशी, जहां से लंका तक पहुंचा जा सकता था। इसके बाद नल-नील की मदद से श्रीलंका तक रामसेतु बनवाया, जो 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है। आज भी इस पुल के कुछ अवेशष बचे हैं, जिसे भारत का आखिरी छोर कहा जाता है, जो धनुषकोडी कहलाता है। आज यह जगह तमिलनाडु में पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर बसा एक गांव है। यहां रामसेतु का शुरुआती हिस्सा है और रामसेतु के बाकी अवशेष समुद्र के गर्भ में हैं।
लंका, नुवारा एलिया की पहाड़ियां
रामसेतु पार करके राम-लक्ष्मण और उनकी सेना लंका पहुंची। यहां लंका के बीचों-बीच रावण का महल था, जिसकी अशोक वाटिका में माता सीता कैद थीं। नुवारा एलिया की पहाड़ियों में सुरंगों और गुफाओं के भंवरजाल में रावण की नगरी बसी थी। इसी पहाड़ पर रावण-राम युद्ध हुआ और रावण वध हुआ। इस तरह भारत से लंका तक कई जगहों पर श्रीराम के चरण पड़े।