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Navratri Fifth Day: माता के पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की ये है विशेषता, जानें महात्म्य

डॉ. रीना रवि मालपानी: नवरात्रि का आज पांचवां दिन है। मां की स्तुति के क्रम में नवरात्रि के पांचवें दिन हम स्कन्दमाता का ध्यान करते हैं। ‘स्कन्द’ भगवान कार्तिकेय का नाम है और उनकी माता होने के कारण ही इन्हें स्कन्दमाता कहा जाता है। शक्ति एवं ज्ञान के प्रतीक स्कन्दमाता की गोद में उनके पुत्र […]

Edited By : Pankaj Mishra | Updated: Sep 30, 2022 11:48
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डॉ. रीना रवि मालपानी: नवरात्रि का आज पांचवां दिन है। मां की स्तुति के क्रम में नवरात्रि के पांचवें दिन हम स्कन्दमाता का ध्यान करते हैं। ‘स्कन्द’ भगवान कार्तिकेय का नाम है और उनकी माता होने के कारण ही इन्हें स्कन्दमाता कहा जाता है। शक्ति एवं ज्ञान के प्रतीक स्कन्दमाता की गोद में उनके पुत्र स्कन्द विराजमान है।

स्कन्द को देवताओं का सेनापति भी बोला जाता है। यदि राक्षस तम और अंधकार का रूप है, तो स्कन्द प्रकाश स्वरूप है। असुर अगर नाश है तो स्कन्द अमृत स्वरूप है। असुर असत्य का बोध है तो स्कन्द सत्य का साक्षात्कार है। स्कन्दमाता हमें आशीर्वाद देती है कि स्कन्द को अपना सेनापति बनाकर जीवन के युद्ध में विजय की ओर अग्रसर हों। माता ने अपनी दो भुजाओं में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है। उनके एक भुजा ऊपर की ओर आशीर्वाद मुद्रा में एवं अन्य भुजा से पुत्र स्कन्द को लिया हुआ है। उनका वाहन सिंह है।

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मां का स्वरूप इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति एवं क्रियाशक्ति का समन्वय है। स्कन्दमाता की आराधना से आदिशक्ति माता और उनके पुत्र दोनों का ही आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। इनकी कान्ति का अलौकिक आशीर्वाद साधक को इनकी उपासना से प्राप्त होता है। इनकी उपासना सुख-शांति प्रदायनी है। माता अपने भक्त की सर्वस्व इच्छाओं की पूर्ति करती है। उसकी कोई भी लौकिक कामना निष्फल नहीं होती। जब ब्रह्माण्ड में व्याप्त शिव-तत्व का मां की शक्ति से एकाकार होता है तब स्कन्द का जन्म होता है।

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मां स्कन्दमाता भक्त को ज्ञान की सही दिशा देकर उचित कर्मों द्वारा सफलता एवं समृद्धि प्रदान करती है। मां कमल के आसन पर विराजमान है इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मां वात्सल्य भाव से परिपूरित है इसलिए कोई शस्त्र धारण नहीं करती, क्योंकि स्कन्द स्वयं ही सबका रक्षक है। मां ज्ञान, क्रिया के स्त्रोत एवं आरंभ की प्रतीक स्वरूपा भी है। वे अपने भक्त को सदैव सही दिशा एवं सही आरंभ प्रदान करती है, क्योंकि जीवन में साधक यदि सही दिशा निर्धारित नहीं कर पाए तो वह असफलता की ओर अग्रसर होता है।

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वात्सल्य स्वरूपा मां अत्यंत दयालु है एवं भक्तों पर हमेशा स्नेह एवं प्रेम लुटाती है। नवरात्रि के प्रथम दिवस हमनें दृढ़ता, द्वितीय दिवस सद्चरित्रता, तृतीय दिवस मन की एकाग्रता, चतुर्थ दिवस असीमित ऊर्जाप्रवाह व तेज एवं पंचम दिवस वात्सल्य एवं प्रेम प्राप्त किया है। मां की आराधना हमारे भीतर व्याप्त बुराइयों का क्षय कर हमारी आध्यात्मिक पूँजी बढ़ाने में सहयोगी है। मां अपनी संतान पर सदैव कृपा ही बरसाती है इसलिए बिना संशय के पूर्ण समर्पण से भावों की माला से मां की स्तुति करने का प्रयास करें।

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Written By

Pankaj Mishra

First published on: Sep 30, 2022 05:34 AM

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