अजीत सिंह, गोरखपुर
Tarkulha Devi Mata Mandir: नवरात्रि चल रहे हैं। इस मौके पर हम आपको मां के ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां कलयुग में भी मां ने खुद प्रकट होकर चमत्कार दिखाया था। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से 25 किलोमीटर दूर तरकुलहा माता मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जुटी है। शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। कहते हैं कि मां के दरबार में जो भी मुराद मांगी जाती, वह पूरी होती है। शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। यही वजह है कि यहां नवरात्रि पर हर दिन भक्तों का सैलाब उमड़ता है। शहीद बंधु सिंह ने पिंडी स्थापित करके आच्छादित जंगल और तरकुल के पेड़ के बीच मां तरकुलहा देवी की पूजा शुरू की थी।
तरकुलहा देवी मंदिर में उमड़ता भक्तों का सैलाब
गोरखपुर से 25 किलोमीटर पूरब दिशा में मां तरकुलहा देवी के मंदिर में मुराद मांगने और पूरी होने पर दूरदराज से लोग आते हैं। भक्त और श्रद्धालुजन मनोकामना पूरी होने की मन्नत मांगते हैं और मां सबकी मनोकामना पूरी करती हैं। इस मंदिर का स्वतंत्रता आंदोलन में भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने जंगल में तरकुल के पेड़ों के बीच में पिंडी स्थापित की। अंग्रेजी हुकूमत में शहीद क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह इस मंदिर पर गोरिल्ला युद्ध करके कई अंग्रेज अफसरों की बलि देते रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन में मंदिर के योगदान की कहानी
तरकुलहा मंदिर में कई वर्षों से आ रहे श्रद्धालु रमेश त्रिपाठी बताते हैं कि अंग्रेजों ने बाबू बंधु सिंह को पकड़ा और फांसी की सजा सुनाई। अंग्रेजों ने उन्हें 7 बार फांसी देने की कोशिश की, लेकिन हर बार फांसी टूट गई। 8वीं बार जब फांसी लगी तो बाबू बंधु सिंह ने मां का आह्वान किया कि हे मां! अब उन्हें अपने चरणों में जगह दें। उधर फांसी हुई, इधर तरकुल का पेड़ टूटा और रक्त की धारा बहने लगी। तब से इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ गई और श्रद्धालुओं की भीड़ माता रानी के दरबार में जुटने लगी। वर्तमान में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और यह भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र बन गया।
1857 की क्रांति के समय स्थापित हुई थी पिंडी
मां दुर्गा का आशीर्वाद भक्तों को हमेशा से मिल रहा है। शहीद बंधु सिंह के योगदान की वजह से मंदिर पर लोगों की आस्था बढ़ती चली जा रही है। श्रद्धालु दिनेश कहते हैं कि वे कई बरसों से तरकुलहा माता मंदिर में दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। यहां पर जो भी मुराद श्रद्धालु माता से मांगते हैं, वह उसे पूरा करती हैं। श्रद्धालु रमेश जायसवाल बताते हैं कि यह ऐतिहासिक मंदिर है। 1857 की क्रांति के बाद शहीद बाबू बंधु सिंह यहां पर पूजा-अर्चना करते रहे। यह मंदिर देश और विदेश में काफी प्रसिद्ध है। शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर यहां भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।