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Jivitputrika Vrat 2022: माताएं बच्चों की रक्षा के लिए करती हैं जितिया व्रत, जानिए महत्व और प्राचीण मान्यताएं

Jitiya Vrat 2022: इस साल जितिया का व्रत आज यानी 18 सितंबर को है। इसे जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, सेहत और सुखमयी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत […]

Edited By : Pankaj Mishra | Updated: Sep 19, 2022 12:44
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Jitiya Vrat

Jitiya Vrat 2022: इस साल जितिया का व्रत आज यानी 18 सितंबर को है। इसे जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, सेहत और सुखमयी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत की शुरुआत सप्तमी से नहाय-खाय के साथ हो जाती है और नवमी को पारण के साथ इसका समापन होता है।

तीज की तरह जितिया व्रत भी बिना आहार और निर्जला किया जाता है। छठ पर्व की तरह जितिया व्रत पर भी नहाय-खाय की परंपरा होती है। यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है। सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है यानी व्रत खोला जाता है।

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ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं जितिया व्रत को रखती हैं उनके बच्चों के जीवन में सुख शांति बनी रहती है और उन्हें संतान वियोग नहीं सहना पड़ता। इस दिन महिलाएं पितृों का पूजन कर उनकी लंबी आयु की भी कामना करती हैं। इस व्रत में माता जीवित्पुत्रिका और राजा जीमूतवाहन दोनों पूजा एवं पुत्रों की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना की जाती है। सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद ही कुछ खाया पिया जाता है। इस व्रत में तीसरे दिन भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग खाए जानें की परंपरा है।

जितिया व्रत की कथा के अनुसार यह माना जाता है कि इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। जब भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित किया था। तब से ही स्त्रियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण व्रती स्त्रियों की संतानों की रक्षा करते हैं।

जितिया व्रत का महत्व

एक समय की बात है, एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे, तभी उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा एवम कथा सुनी। उस समय चील ने इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक देखा, वहीं लोमड़ी का ध्यान इस ओर बहुत कम था। चील के संतानों और उनकी संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुंची, लेकिन लोमड़ी की संतान जीवित नहीं बची। इस प्रकार इस व्रत का महत्व बहुत अधिक बताया जाता हैं।

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प्राचीण मान्यता

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई हैं। महा भारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्व्थामा बहुत ही नाराज था और उसके अन्दर बदले की आग तीव्र थी, जिस कारण उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला था, लेकिन वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थी।

उसके इस अपराध के कारण उसे अर्जुन ने बंदी बना लिया और उसकी दिव्य मणि छीन ली, जिसके फलस्वरूप अश्व्थामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, जिसे निष्फल करना नामुमकिन था।

उत्तरा की संतान का जन्म लेना आवश्यक थी, जिस कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही राजा परीक्षित बना। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।

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First published on: Sep 18, 2022 06:11 AM

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