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77 साल में पाकिस्तानियों को 23 पीएम और 5 तानाशाहों के अलावा कुछ नहीं मिला, जन्नत के ख़्वाब ने पहुंचा दिया जहन्नुम

Pakistan Election 2024: पाकिस्तान में आन चुनाव हो चुके हैं और जनता ने अपना फैसला सभी पार्टियों में थोड़ा-थोड़ा बांट दिया है। अब देखना होगा कि कौन सरकार बनाता है. हालांकि सरकार तो नई बनने जा रही है लेकिन पाकिस्तानी अवाम के हाथों में कुछ भी आना मुश्किल है.

Edited By : Raghvendra Tiwari | Updated: Feb 11, 2024 15:05
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जरूरी था कि हम दोनों तवाफ-ए-आरजू करते…’ गाना सभी ने सुना होगा। पाकिस्तान के मशहूर सिंगर राहत फतेह अली खान ने गाया है और खलीलुर्रहमान कमर ने लिखा है। खलीलुर्रहमान कमर पाकिस्तान के दिग्गज राइटर्स में शुमार किए जाते हैं। हाल ही में उन्होंने एक शेर पोस्ट किया था। जिसमें वो पाकिस्तानी कौम को कोस रहे थे। वो शेर था,’मेरी गिनती में अक्सर अब यही हासिल निकलता है, बेगैरत कौम बनने में 77 साल लगते हैं।’ इस शेर में शायर ने पाकिस्तान की पूरी कौम को ही बेगैरत करार दिया है। हालांकि ऐसा नहीं है, वक्त-वक्त पर अवाम ने विरोध भी किया है लेकिन गलती यहां पाकिस्तानी लीडरों की है। हां यह जरूर कहा जा सकता है कि पाकिस्तानी अवाम के हाथों में इन 77 वर्षों में 23 प्रधानमंत्री और 4 तानाशाहों के अलावा कुछ भी नहीं आया।

जन्नत से जहन्नम बन गया पाकिस्तान:
पाकिस्तान बनने के 77 साल बाद अवाम के हाथों में अगर कुछ है तो वो है भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी। इसके अलावा नेताओं ने जमकर जनता और देश को लूटा है। जिस वक्त पाकिस्तान बन रहा था उस वक्त मुसलमानों को कुछ ऐसे ख़्वाब दिखाए गए थे, मानो बस जन्नत की बात हो लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद अवाम ने अपनी खुली आंखों से अपने लीडरों द्वारा देश की इज्जत को लुटते देखा है। पाकिस्तान कभी संभल ही नहीं पाया। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज तक कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।

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कैसा रहा 77 साल का सफर:
77 साल के इतिहास में, 45 वर्षों में 23 प्रधानमंत्रियों और 32 वर्षों में 4 सैन्य तानाशाहों ने शासन किया। जैसे कि प्रत्येक प्रधानमंत्री का औसत कार्यकाल 2 वर्ष और 10 महीने था वहीं प्रत्येक तानाशाह का औसत कार्यकाल 8 वर्ष था। लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई, जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई, समय-समय पर किसी न किसी राजनीतिक नेता को जबरन या स्वैच्छिक निर्वासन में जाते देखा जाता है। 1951 में पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की रहस्यमय हत्या वास्तव में नए लोकतांत्रिक देश का ही कत्ल था।

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पाकिस्तान क़ौम का सब्र क़ाबिले तारीफ़:
अतीत की कड़वी यादों के बावजूद, पाकिस्तान के लोग संस्थाओं का सम्मान करते हैं, राजनेताओं की इज्जत करते हैं, इस हकीकत के बावजूद कि उसके पड़ोसी देश बहुत आगे निकल गए हैं, इस तथ्य के बावजूद कि कभी उसका हिस्सा रहा बांग्लादेश भी उनसे आगे निकल गया, इसके बावजूद कि उसके बाद जो देश आजाद हुए वे लोकतंत्र और खुशहाली की राह पर उनसे बहुत आगे हैं। तीन लंबे और बेहद भयावह सैन्य शासन के बावजूद पाकिस्तान के लोग आर्मी का दिल से सम्मान करते हैं। पाकिस्तानी अवाम का यह सब्र काबिले तारीफ है।

डूबती हुई कश्ती हैं इमरान खान:
अब अवाम को एक नई सरकार मिलने वाली है, हालांकि यह सिर्फ कहने भर को नई सरकार है। लोग वही हैं और उनकी सोच भी वही है। एक दूसरे से बदला लेने वाली। इमरान खान 2018 के चुनाव में लोगों के लिए उम्मीद बनकर आए थे लेकिन जनता को इमरान से भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ। 2024 के चुनाव में इमरान खान जेल में हैं और नवाज शरीफ ने सरकार बनाने का दावा कर दिया है। हालांकि सीटें इमरान खान के समर्थन वाले उम्मीदवारों के पास ज्यादा हैं लेकिन उनकी सरकार बनती दिखाई नहीं दे रही है। क्योंकि सरकार गठबंधन के बिना बननी ना मुमकिन है और अन्य पार्टियां इमरान खान का साथ नहीं देंगी। क्योंकि इमरान खान इन दिनों डूबती हुई कश्ती से कम नहीं है।

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इमरान का साथ क्यों नहीं देंगी अन्य पार्टियां?
इमरान खान तोशाखाना, सिफर और गैरइस्लामी तरीके से निकाह करने के मामले में कई वर्षों के लिए जेल में हैं। ना सिर्फ इमरान बल्कि उनकी पत्नी बुशरा और उनका दायां बाजू माने जाने वाले पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी भी सलाखों के पीछे हैं। इन सब के अलावा अन्य पार्टियां इसलिए भी इमरान खान का साथ नहीं देंगी क्योंकि पाकिस्तानी आर्मी भी यही चाहती है और पाकिस्तान में वही होता है जो वहाँ की आर्मी चाहती है। ऐसे में अवाम के लिए ज्यादा उम्मीदें रखना बेकार है, क्योंकि वो सब कुछ दिनों बाद काफूर साबित हो जाएंगी।

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Written By

Raghvendra Tiwari

First published on: Feb 10, 2024 02:13 PM

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