Pakistan military coup 1977: भारत से अलग होकर 14 अगस्त 1947 को एक नया देश बना जिसका नाम पाकिस्तान था। दुनिया में धर्म के नाम पर यह पहला बंटवारा था। भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान को लगा कि वह खुद के लोकतंत्र के जरिए देश में शांति और समृद्धि ला सकेगा लेकिन हुआ कुछ उल्टा। जो कुछ हो रहा है वह दुनिया और हमारे सामने है। पाकिस्तान में पिछले 77 सालों में कई बार तख्तापलट हो चुके हैं। तख्तापलट की यह कहानी 1958 में शुरू होती है जो कि 2012 तक अनवरत चलती है। इतिहास में आज के दिन भी पाकिस्तान में तख्तापलट हुआ था। ऐसे में आइये जानते हैं सेना के सामने क्यों बौनी पड़ जाती है पाकिस्तान सरकार?
1977 में पाकिस्तान में आज के ही दिन सैन्य तख्तापलट हुआ था। इसका कोडनाम ऑपरेशन फेयर प्ले था। 5 जुलाई 1977 को तत्कालीन सेना प्रमुख मुहम्मद जिया उल हक ने पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को उखाड़ फेंका था। इस घटना से पहले पाकिस्तान में बहुत कुछ हो रहा था। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान नेशनल अलायंस के बीच राजनीतिक उठापटक हुई। नेशनल अलायंस ने भुट्टो पर 1977 में हुए आम चुनावों में धांधली का आरोप लगाया। इसके बाद सेना प्रमुख जिया उल हक ने तख्तापलट की घोषणा करते हुए 90 दिनों में निष्पक्ष चुनाव का वादा करते हुए सत्ता में काबिज हो गए। इसके बाद समय-समय पर उन्होंने चुनाव कराने का वादा किया लेकिन वे चुनाव नहीं करा पाए। जिया उल हक 1988 तक बिना चुनाव कराए ही सत्ता में बने रहे।
तख्तापलट से पहले क्या हुआ?
1976 में पाकिस्तान में नौ धार्मिक और रूढिवादी दलों ने एक अलायंस बनाया जिसे पाकिस्तान नेशनल अलायंस कहा गया। इसके बाद जनवरी 1977 में प्रधानमंत्री जुल्फिाकार अली भुट्टो ने आम चुनाव कराने का ऐलान किया। इसके बाद पीएनए धार्मिक नारों के जरिए पाकिस्तान को एकजुट करने लगा। आम चुनावों में पीपीपी को 200 में से 155 सीटों पर जीत मिली। पीएनए ने चुनावों में धांधली का आरोप भुट्टो पर लगाया।
तत्कालीन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पीएनए ने आरोप लगाया कि पुलिस की वर्दी में पीपीपी कर्मियों ने घंटों तक वोटिंग रोक दी। वोटिंग के बाद इन्हीं पुलिसकर्मियों ने मतपेटियां भी गायब कर दी। इसके बाद पीएनए ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया और पीएम भुट्टो से इस्तीफे की मांग की। सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों में कम से कम 200 लोग मारे गए। इसके बाद पीएनए के नेता ने आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ को राजनीतिक संघर्ष खत्म करने के लिए पत्र लिखा। यानी मॉर्शल लॉ लागू करने का निवेदन किया। इसके बाद सेना ने पीएनए और पीपीपी के बीच समझौता कराने की कोशिश की। इसके बाद जिया उल हक ने तख्तापलट का आदेश सेना को दिया।
1979 में भुट्टो को दी गई फांसी
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सैन्य प्रतिक्रिया को वैध ठहराया। इसके बाद अक्टूबर 1977 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नवाब मुहम्मद खान कसूरी की हत्या की साजिश के आरोप में भुट्टो के खिलाफ मुकदमा चलाया गया। 1977 में भुट्टो ने सुप्रीम कोर्ट में हत्या के आरोप में उनको दोषी पाया और मौत की सजा सुनाई गई। 1979 में भुट्टो को फांसी दे दी गई। ऐसे में पाकिस्तान में 1977 के अलावा 1958, 1999 में भी तख्तापलट हुआ। ये तीनों तख्तापलट सेना के आदेश पर ही हुए।
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