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पाकिस्तान की मेडिकल फैसिलिटी के हाल कैसे? सेना की मलहम-पट्टी के लिए भी नहीं है दवा

Operation Sindoor: भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। जब भी दो देशों में युद्ध होता है, तो वहां की मेडिकल फैसिलिटी पर लोगों का ध्यान सबसे पहले जाता है। भारत ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कितना विकास किया है, यह कोविड के दौरान पूरी दुनिया ने देखा था। मगर पाकिस्तान की बात करें, तो वहां पोलियो जैसी बीमारी भी काल बनी हुई है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

Author Edited By : Namrata Mohanty Updated: May 9, 2025 14:33

Operation Sindoor: भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात पैदा हो चुके हैं। पहलगाम में आतंकी हमले का जवाब देते हुए ऑपरेशन सिंदूर चलाया गया था। इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर डाला था, जो जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकाने थे। पाकिस्तान, जो परमाणु के दम पर हर बार भारत को आंख दिखाता आया है, वह स्वास्थ्य के लिहाज से कहां खड़ा है? कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान आज भी पोलियो वायरस से जूझ रहा है। ऐसे में गौर करने की बात यह है कि क्या पाकिस्तान जंग होने पर सिर्फ अपने सैनिकों का भी इलाज कर पाएगा? पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट।

पोलियो से जूझ रहा पाकिस्तान!

पाकिस्तान एक ऐसा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था काफी समय से खराब है। हालांकि, यहां के लोग 2 टाइम का खाना सही से खा लें, यह भी गनीमत है। अंदरुनी राजनीति से ग्रसित यहां के नागरिक सही इलाज भी नहीं पा सकते हैं। ARY न्यूज के अनुसार, पाकिस्तान के 18 जिलों के सीवेज पाइप से लिए गए सैंपल्स में पोलियो वायरस मिला है। इसका मतलब है कि इस मुल्क में अब भी पोलियो एक्टिव है। वहीं, भारत को साल 2014 में ही पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया था। अपने देश में पोलियो का आखिरी मरीज साल 2011 में मिला था।

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कोरोना से कैसे निपटा पाकिस्तान?

एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो पाकिस्तान में कोरोना वायरस ने खूब कोहराम मचाया था। नेशनल कमांड एंड ऑपरेशन सेंटर (एनसीओसी) ने एक बयान में कहा था कि पाकिस्तान में कोरोना पॉजिटिविटी रेट औसत पॉजिटिव दर 40 % अधिक था और कोविड-19 से होने वाली मौतें भी अधिक थीं।

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WHO की रिपोर्ट की साल 2021 में जारी एक रिपोर्ट में पाया गया कि पाकिस्तान में कोरोना से होने वाली मौतों का वास्तविक आंकड़ा 14.9 मिलियन (1.49 करोड़) तक रहा था। यह आंकड़ा आधिकारिक रिपोर्ट से कहीं अधिक था, जिससे यह संकेत मिलता है कि मौतों की संख्या भी अधिक हो सकती है। हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने इन आंकड़ों को खारिज किया और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट का खंडन किया था।

दवाओं के लिए तरसता पाकिस्तान!

एक प्राइवेट मीडिया वेबसाइट की रिपोर्ट की मानें तो पाकिस्तान में लगभग 80,000 दवाएं पंजीकृत हैं, जिनमें से अधिकांश जेनेरिक दवाएं हैं। हालांकि, अच्छी क्वालिटी वाली दवाओं की उपलब्धता में भारी कमी है और कई स्थानों पर आवश्यक दवाएं उपलब्ध भी नहीं होती हैं। ऐसे में आम जनता तो दूर, पाकिस्तान का स्वास्थ्य विभाग अपने जवानों का इलाज करने में भी पूरी तरह सक्षम नहीं है।

पाकिस्तान में आर्मी अस्पताल की भी खस्ता

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के आर्मी अस्पतालों के हालात भी पस्त हैं। यहां गंदगी, इलाज का अभाव, नई और आधुनिक ट्रीटमेंट के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें भी नहीं हैं। अगर आर्मी अस्पतालों के हालात ऐसे हैं, तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति उससे भी ज्यादा बदतर हो सकती है। यहां शवों को भी सही तरीके से रखने की सुविधा नहीं है। नवजातों को टीकाकरण के लिए भी सही और पर्याप्त इलाज नहीं मिलता है।

इलाज के लिए भारत का लेते हैं सहारा

बता दें कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद से ही पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाएं निलंबित कर दी गई है। सभी आपातकालीन वीजा को भी रद्द कर दिए गए हैं। पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए भारत का रुख करते हैं। असल में भारत की तरह पाकिस्तान में एम्स जैसे अस्पताल नहीं हैं।

भारत अरसे से उन पाकिस्तानी मरीजों को वीजा देता है, जिन्हें तत्काल मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है। पाकिस्तान स्वास्थ्य सेवाओं के मामले इस कदर भारत से पीछे हैं कि लिवर, किडनी से लेकर ओपन हार्ट सर्जरी जैसी सुविधाएं भी वहां मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा, पाकिस्तानियों का भारत में इलाज के लिए आने के पीछे सबसे बड़ा कारण लागत है। भारत में वर्ल्ड क्लास मेडिकल फैसिलिटी कम खर्च में मिल जाती है। वहीं, चीन, अमेरिका और यूरोप में इलाज का खर्च बहुत अधिक होता है।

6 सालों में इतने पाकिस्तानियों का हुआ इलाज

पुलवामा आतंकी हमले के बाद से इलाज के लिए पाकिस्तान से आने वाले मरीजों के वीजा में कटौती की गई है। सरकारी डाटा के मुताबिक, साल 2019 से 2024 के बीच सिर्फ 1228 पाकिस्तानियों का इलाज भारत में हुआ है। इनमें साल 2019 में 554, 2020 में 97, 2021 में 96, 2022 में 145, 2023 में 111 और साल 2024 में 225 मरीज शामिल हैं।

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First published on: May 09, 2025 02:33 PM

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