Cracks in NDA over Bharat Bandh: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण, एक ऐसा मुद्दा बन चुका है, जिसमें राजनीतिक पार्टियां पक्ष-विपक्ष में नहीं बल्कि अपने मतों के अनुसार बंट गई हैं। दरअसल भीम सेना प्रमुख ने फेसबुक लाइव के जरिए 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान कर दिया था। भारत बंद के समर्थन में जहाँ कई राजनीतिक पार्टियां है, वहीं विरोध में भी कई पार्टियां हैं। भारत बंद के समर्थन में मायावती की बीएसपी, चिराग पासवान की लोजपा और लालू यादव की आरजेडी, मुकेश सहनी की वीआईपी, चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी हैं, जबकि विरोध में जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा है।
चिराग और मांझी के बीच मतभेद की खबरें उस समय आई हैं जब एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण पर केंद्र की मोदी 3.0 सरकार ने अपना रुख क्लियर कर दिया है। सरकार ने कहा है कि वह एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण के पक्ष में नहीं है। इसके बाद भी चिराग और मांझी का भारत बंद पर अलग-अलग रुख देखने को मिला है।
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ऐसे में सवाल उठता है कि 21 अगस्त को भारत बंद के पीछे किसका हाथ है और कैसे माहौल बना? दलित, आदिवासी संगठनों के साथ-साथ बसपा भी समर्थन देने के लिए मजबूर है। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 1 अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में कोटे में कोटा का फैसला दिया। साथ ही एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने पर भी ज़ोर दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से मायावती ने एससी-एसटी के आरक्षण के वर्गीकरण के खिलाफ़ मोर्चा खोल रखा है। सोशल मीडिया से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस तक मायावती लगातार आवाज उठा रही हैं। आरक्षण में वर्गीकरण का मुद्दा बढ़ता जा रहा है। दलित और आदिवासी समाज के लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं है। इसलिए मोदी सरकार ने भी साफ कर दिया कि वह एससी-एसटी आरक्षण नहीं बांटेगी और ना ही क्रीमीलेयर को लागू करेगी। इसके बाद भी दलित संगठनों की मांग है कि एससी-एसटी आरक्षण को नौवीं सूची में डाला जाए। पूरा मामला समझने के लिए देखिए ये वीडियो –