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क्या बदलती जीवनशैली समय से पहले लोगों को मौत के मुंह में धकेल रही है?

Bharat Ek Soch: साल 2019 के World Health Organization के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की संख्या 18 करोड़ 80 लाख है। पिछले तीस वर्षों में बीपी के मरीजों की संख्या डबल हो चुकी है। दुनिया में हर तीन में से एक व्यक्ति बीपी का मरीज है। बीपी के हर दो में से एक मरीज को पता नहीं है कि उसे इस तरह की कोई बीमारी भी है।

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Mar 2, 2024 21:25
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Anurradha Prasad

Bharat Ek Soch: गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस में एक चौपाई है – दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहू नहीं व्यापा। मतलब, त्रेतायुग में श्रीराम के राज्य में लोगों को दैहिक यानी बीमारी, दैविक यानी प्राकृतिक आपदा और भौतिक यानी आर्थिक परेशानियां नहीं थीं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि जिंदगी जीने का वो कौन सा सलीका था, जिसमें इंसान बीमारियों से आजाद था। इतिहास के किसी कालखंड में कभी ऐसा दौर था भी या नहीं। ये एक रिसर्च का विषय है- लेकिन, हजारों साल पहले लिखा गया आयुर्वेद इस बात का सबूत है कि भारत एक बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली को लेकर कितना सचेत और कितनी आगे की सोच रखता था।

लोग बीमारियों को अपने शरीर में पाल-पोस रहे 

चुनावी माहौल को देखते हुए राजनेता बात जाति के जोड़-तोड़ की कर रहे हैं। हिंदू-मुस्लिम की कर रहे हैं। राष्ट्रवाद की कर रहे हैं। फ्रीबीज की कर रहे हैं। मुफ्त दवाई की बात कर रहे हैं। लेकिन इस बात पर ईमानदारी से मंथन नहीं हो रहा है कि भारत के लोग तेजी से बीमार होते जा रहे हैं। कोई ज्यादा नमक खाने से बीमार हो रहा है। किसी की खुशियां चीनी छीन रही है। किसी की आंखों से दिनों-दिन नींद कम होती जा रही है। कोई स्मार्टफोन में इतना घुसा है कि परिवार और दोस्तों के बीच भी तन्हा है। भारत में करोड़ों लोग कई ऐसी गंभीर बीमारियों को अपने शरीर में पाल-पोस रहे हैं- जो उनकी उम्र तेजी से कम कर रही हैं। जो अकाल मृत्यु की भी बड़ी वजह बन रही हैं।

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Written By

Anurradha Prasad

First published on: Mar 02, 2024 09:23 PM

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