---विज्ञापन---

Kavita path: उम्र का तकाज़ा, मां-बाप और औलाद

बैठा अकेला सोच रहा था। आंख से आंसू पोंछ रहा था। क्यों आंख में भर-भर आते हैं आंसू। खुद से यही सवाल पूछ रहा था। बैठा अकेला सोच रहा था। उम्र का तकाजा देख रहा था। पैदा हुआ तो मां-बाप की गोद में हंसना सीख रहा था। पैदल चलना सीखा तो, गलियारे में कौन है […]

Edited By : Siddharth Sharma | Updated: Apr 9, 2023 08:28
Share :
Kavita Path

बैठा अकेला सोच रहा था।
आंख से आंसू पोंछ रहा था।
क्यों आंख में भर-भर आते हैं आंसू।
खुद से यही सवाल पूछ रहा था।
बैठा अकेला सोच रहा था।
उम्र का तकाजा देख रहा था।

पैदा हुआ तो मां-बाप की गोद में हंसना सीख रहा था।
पैदल चलना सीखा तो, गलियारे में कौन है अपने यह पूछ रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

---विज्ञापन---

थोड़ा उम्र बढ़ी तो पाठशाला गया।
वहां क, ख, ग, A,B,C,D सीख रहा था।
पढ़ते-पढ़ते उम्र बढ़ रही थी।
वक्त के साए में कुछ तजुर्बे सीख रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

कभी सुख मिला,कभी दुख मिला।
दोनों स्थिति में आंखों में आए आंसू।
उन आंसुओं को बैठा अकेला पोंछ रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

---विज्ञापन---

पढ़ते-पढ़ते उम्र हुई नौकरी ओर शादी की।
मां-बाप के चेहरे पर चिंता देख रहा था।
रिश्ते आए बहुत मगर।
हर कोई यही पूछ रहा था।
मांग क्या है तुम्हारी, जमीन है कितनी तुम्हारे पास।

मांग कुछ नहीं है मेरी, ना है जमीन मेरे पास।
एक है प्राइवेट नौकरी और बूढ़े मां-बाप है मेरे पास।
जीवन संगिनी (पत्नी) करें मां-बाप की सेवा।
बस यही मेरी है आस।
बार-बार जवाब मैं यही दे रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

रिश्ता हुआ, जीवन संगिनी(पत्नी) आई।
मां-बाप की सेवा करना यही धर्म पत्नी को समझा रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

घर चलाने के लिये मैं, नौकरी पर ड्यूटी कर रहा था।
घर पर पत्नी कर रही है मां-बाप की सेवा।
इस ख्याल से ही मन खुश हो रहा था।
ड्यूटी करते-करते बस यही सोच रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

झूठे ख्याल में मैं जी रहा था।
वास्तव में घर पर नहीं हो रही थी मां-बाप की सेवा।
फिर भी मैं एक बेटा और एक पति का धर्म निभा रहा था।
यही है चक्की के वह दो पाठ।
जिनमें मैं अकेला पिस रहा था
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।

बढ़ गई मां-बाप की चिंता।
उस चिंता से मां-बाप के चेहरे पर पड़ती झुर्रियां देख रहा था।
कैसे सुधरे अब घर के हालात।
बैठा अकेला सोच रहा था।
आंख से आंसू पोंछ रहा था।

पत्नी और मां-बाप के रिश्ते को जोड़ने की हर कोशिश मैं कर रहा था।
ना पत्नी मान रही थी।
ना मां-बाप की अच्छी सेवा कर पा रहा था।
आंख से आंसू पोंछ रहा था।

पत्नी को मां-बाप से अलग रहना था।
उसके पास यही एक बहाना था।
मैं अकेला दो पाठो के बीच पिस रहा था।
पत्नी की जिद पर मैं माँ-बाप से अलग हो गया था।
बस यही से जीवन का अंत शुरू हो गया था।
आंख से आंसू पोंछ रहा था।

मैं ना घर का रहा, ना घाट का रहा।
पल-पल मां-बाप को तड़पता देख रहा था।
विरह की बेला में, मां-बाप की सांसे हो गयी पूरी।
कैसा बेटा हूं? खुद को अब बस कोस रहा था।
आंख से आंसू पोंछ रहा था

ज़िंदगी की इस कशमकश में हो गयी मां-बाप की मौत।
मरे बाद, पत्नी को खुद से, मां-बाप के लिए लिपटकर रोता देख रहा था।
उम्र का तकाज़ा देख रहा था।
आंख से आंसू पोंछ रहा था।
बैठा अकेला सोच रहा था।

लेखक- अमित शर्मा, संवादाता, News24

 

HISTORY

Edited By

Siddharth Sharma

First published on: Apr 09, 2023 08:28 AM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें