Uttarkashi tunnel Rescue Latest Updates : उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को अब बड़े चमत्कार की आस है। रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी अमेरिका की ऑगर मशीन भी फेल हो गई है और मलबे में फंसे उसके ब्लेड को काटकर निकाल लिया गया है। बचावकर्मियों ने बार-बार आ रही बाधाओं को देखते हुए चूहों की तरह खुदाई करने का फैसला लिया है। अब रैट होल माइनिंग के एक्सपर्ट हाथों से चलने वाले औजारों से पहाड़ों को खोद रहे हैं। इस कार्य में मदद के लिए झांसी के परसादी लोधी और झांसी के विपिन राजपूत पहुंच गए हैं. ये दोनों रैट होल माइनर हैं. आइये जानते हैं कि क्या है रैट होल माइनिंग, किस तरह की चुनौतियों का करना पड़ सकता है सामना?
क्या है रैट होल ड्रिलिंग?
मेघालय में रैट होल ड्रिलिंग काफी फेमस है। जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों से कोयला निकालने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। माइनर रस्सियों या बांस की सीढ़ियों की मदद से गड्ढों के अंदर जाते हैं। इसके बाद ये लोग हाथों के औजार जैसे गैंती, फावड़े और टोकरियों का इस्तेमाल करके कोयला को बाहर निकालते हैं। रैट होल ड्रिलिंग दो तरह से साइड कटिंग प्रोसिजर और बॉक्स कटिंग से की जाती है। साइड कटिंग प्रोसिजर के तहत संकरी सुरंग तैयार की जाती है, जबकि बॉक्स कटिंग के तहत वर्टिकल गड्ढा खोदा जाता है।
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जानें किस तरह की आती हैं बाधाएं
रैट-होल ड्रिलिंग से पर्यावरण को खतरा पैदा होने की संभावना ज्यादा रहती है। इस तरीके की माइनिंग से खदानें अनियमित होकर ढह जाती हैं, जिसमें फंसकर मजदूरों की जान भी चली जाती है। माइनिंग के लिए वनों की कटाई भी की जाती है और भूमि क्षरण एवं जल प्रदूषण जैसे भी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
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एनजीटी ने क्यों किया था बैन
साल 2014 में NGT ने मेघालय में रैट होल माइनिंग पर रोक लगा दी थी। साल 2015 में भी यह आदेश बरकरार रहा। इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एनजीटी के आदेश के खिलाफ अर्जी लगाई थी। एनजीटी ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया था कि बारिश के मौसम में रैट होल माइनिंग काफी खतरनाक है, क्योंकि इस दौरान खदानों में पानी भर जाता है, जिसमें फंसकर मजदूरों की मौत हो जाती है।
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