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Uttarakhand Tunnel Collapse:’खिचड़ी, एंटी-डिप्रेशन दवाइयां और योग’; सुरंग के अंदर कैसे जी रहे 41 लोग?

Uttarakhand Tunnel Collapse: 10 दिन से 41 जिंदगियां दांव पर लगी हैं। बचेंगे या मरेंगे, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन सुरंग के अंदर वे लोग कैसे जी रहे हैं, आइए जानते हैं...

Edited By : Khushbu Goyal | Updated: Nov 21, 2023 07:34
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Uttarakhand Tunnel Rescue Operation
Uttarakhand Tunnel Rescue Operation

Uttarakhand Tunnel Rescue Operation Latest Update: पिछले 10 दिन से 41 मजदूरों की जान दांव पर लगी है। सुरंग में आगे से निकलने से रास्ता नहीं, पीछे आने का रास्ता बड़े-बड़े पत्थरों और मलबे से ब्लॉक, घना अंधेरा, सांस लेने के लिए हवा नहीं, ऊपर से पता नहीं कब मौत बनकर गिर जाएं पहाड़, इनके बीच फंसे 41 लोग, जिन्हें नहीं पता कि बच पाएंगे या नहीं, फिर भी उम्मीद की एक किरण बाकी है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 10 दिन से सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए, उनकी जिंदगी बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। आखिर ‘जिंदगी’ और ‘मौत’ के बीच किस तरह 41 मजदूर जीने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, इसके बारे में हम आपको बताते हैं…

 

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उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में चल रहे बचाव अभियान के तहत एजेंसियों को सोमवार को तब सफलता मिली, जब 10 दिन बाद मजदूरों तक एक 6 इंच की पाइपलाइन पहुंची। इससे मजदूरों को दलिया, खिचड़ी, फल, मल्टीविटामिन, एंट्री डिप्रेशन की दवाइंया भेजी गईं। दूसरी ओर मजदूरों को किसी दुर्घटना से बचाने के लिए रेस्क्यू टनल बनाई जा चुकी है। मजदूरों को खिचड़ी बोतलों में भरकर भेजी गई। अभी तक मजदूरों के पास सूखे मेवे, मुरमुरे और चिप्स के पैकेट ही भेजे जा रहे थे लेकिन अब उन्हें खाना, पानी और दवाइयां मिल रही हैं। हालांकि मजदूरों का कहना है कि जहां वे फंसे हैं, वहां रोशनी है, लेकिन फिर भी जीने के लिए कई मूलभूत सुविधाओं की जरूरत होती है, जो उनके पास नहीं है। मजदूरों को एक्सरसाइज, सैर और योग करने को कहा गया है।

 

वहीं सुरंग में फंसे मजदूरों से अब तक जितनी बात हो पाई है, उसके अनुसार वे लोग खुद को शारीरिक रूप से ठीक रखने के लिए योग कर रहे हैं। आपस में हंसी मजाक करके खुद को मानसिक तनाव से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार द्वारा मजदूरों से बातचीत करने के लिए डॉ अभिषेक शर्मा को नियुक्त किया गया है, जो लगातार उनसे बात करके उनकी मानसिक देखभा कर रहे हैं। जल्द ही मजदूरों तक मोबाइल फोन और चार्जर पहुंचाने की भी कोशिश है। पाइप के जरिए मजदूरों को लाइव देखने के लिए एंडोस्कोपी में उपयोग किए जाने वाले कैमरे भी मंगाए गए हैं। अब तक श्रमिकों को जो आहार दिया गया था, उससे पाचन संबंधी परेशानी और चक्कर आने की शिकायत हुई थी, जिसके लिए डॉ अभिषेक ने उन्हें दवाइयां उपलब्ध कराईं।

 

चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद, मजदूरों की किस्मत है कि उनके पास सुरंग के अंदर एक प्राकृतिक जल स्रोत है। डॉ. शर्मा ने कहा कि मुश्किलों में भी वे साधन संपन्न हैं, क्योंकि झरने के पानी को वे पीने और अन्य आवश्यकताओं के लिए स्टोर-उपयोग कर सकते हैं। उस पानी को साफ रखने के लिए उन्हें क्लोरीन की गोलियां भेज दी गई हैं। मजदूर उस 2 किलोमीटर के बफर स्पेस का पूरी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें वे फंसे हुए हैं। हर आधे घंटे में खाना-पानी भेजा जा रहा है। हर 2-3 घंटे में उनसे बातचीत की जा रही है। बंद जगह होने के कारण ठंडे तापमान या मच्छरों से संबंधित कोई समस्या नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या उनके पास नहाने या कपड़े बदलने का कोई विकल्प है, एक अधिकारी ने कहा कि नहाना या कपड़े बदलना शायद उनके दिमाग में होगा।

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Written By

Khushbu Goyal

First published on: Nov 21, 2023 07:30 AM

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