UP News: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में वर्ष 1991 में फर्जी मुठभेड़ मामले में एक बड़ा फैसला आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लकनऊ बेंच ने सभी 43 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया है।
हाईकोर्ट ने सभी दोषियों को 7 साल के सश्रम कारावास और 10,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। बता दें कि पूर्व में इन सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
जानकारी के मुताबिक यह मामला खालिस्तानी गतिविधियों में कथित तौर पर संलिप्तता के लिए 10 सिखों की हत्या से संबंधित है। लखनऊ बेंच के जस्टिस रमेश सिंह और जस्टिस सरोज यादव की अदालत ने यूपी पुलिस के 43 पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई है।
पीलीभीत में तीन जगहों पर बताई थी मुठभेड़
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक वर्ष 1991 में 12-13 जुलाई की रात को पीलीभीत जिले के तीन अलग-अलग जगहों (निओरिया, बिलसंडा और पूरनपुर) में कथित तौर पर आतंकवादियों और पीलीभीत पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई। पुलिस का दावा था कि उन्होंने इस मुठभेड़ में दस कथित आतंकवादियों को मार गिराया है। इसके बाद पीलीभीत के थाना निओरिया, बिलसंडा और पूरनपुर में कुल मिलाकर 13 मुकदमे दर्ज कराए गए।
एजेंसी के मुताबिक ट्रायल कोर्ट ने एक दिया था। ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सभी पहलुओं को देखने के बाद विश्वास किया जाता है कि पुलिसकर्मियों ने तीर्थयात्रियों की बस से अपहरण किए जाने के बाद दस सिख युवकों को एक फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कही ये बातें
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कथित आतंकवादियों को गिरफ्तार किया जा सकता था और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता था। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे आरोपी को केवल इसलिए मार दें क्योंकि वह एक खूंखार अपराधी है। साथ ही कोर्ट ने यह बात भी कही कि ये मामला 304 आईपीसी यानी गैर इरादतन हत्या के तहत आता है।
जानकारी के मुताबिक मामले में शामिल आरोपियों ने वर्ष 2016 के आदेश को हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में चुनौती दी थी। इस पर आज उच्च न्यायालय ने सभी अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए 7 वर्ष की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।