कानपुर से प्रांजुल मिश्रा की रिपोर्टः उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कानपुर (Kanpur) जिले में होली का पर्व एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस दौरान कानपुर में गंगा मेले (kanpur Holi) का भी महत्व है। बताया जाता है कि यह मेला देश की आजादी के दीवानों से जुड़ा है।
पूरे देश में होली का त्योहार भले ही बीत गया हो, लेकिन कानपुर में रंगों की खुमारी अभी भी लोगों के सिर चढ़ी है। दरअसल कानपुर में होली मेला (kanpur Holi) अंग्रेजी हुकुमत की हार का प्रतीक माना जाता है। उस वक्त क्रांतिकारियों के जिद के आगे ब्रिटिश शासन तक को झुकना पड़ गया था।
1942 में यहां हुआ थी बड़ी घटना
कानपुर में होली का पर्व गंगा किनारे मेला आयोजन के साथ समाप्त होगा। बात आजादी के वक्त की है। जब साल 1942 में होली के दिन यहां के नौजवानों ने रज्जन बाबू पार्क में लगे बिहारी भवन से भी ऊंचा तिरंगा फहराया था।
इसके बाद वे गुलाल उड़ाते और नाचते गाते चले। इसकी जानकारी जब अंग्रेजी हुक्मरानों को हुई तो फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए। अंग्रेज अधिकारियों ने झंडा उतारने का ओदश दिया। इसके बाद अंग्रेजी सिपाहियों और युवाओं की टोलियों में जंग हुई।
अंग्रेजों ने इन नौजवानों को जेल में डाला था
होली खेलने और झंडा फैराने के आरोप में अंग्रेजों ने हमीद खान, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, गुलाब चंद्र सेठ, विश्वनाथ टंडन, गिरिधर शर्मा समेत एक दर्जन से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज में डाल दिया। अंग्रेजों के इस कृत्य के बाद उनका विरोध शुरू हो गया।
गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। विरोध दर्शाते हुए लोगों ने अपने चेहरे का रंग तक नहीं साफ किए। शहर के हालात उस वक्त और ज्यादा बिगड़ गए, जब इसके विरोध में मिलों और फैक्टरियों के मजदूर भी शामिल हो गए और हड़ताल पर चले गए।
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देशभक्तों ने किया ऐसा विरो, हिल गई अंग्रेजी हकूमत
कानपुर पूरी तरह से बंद हो गया। पुराने लोगों की मानें तो इस बंदी और विरोध के स्वर की गूंज सात समंदर पार विक्टोरिया पैलेस तक सुनाई दी। कानपुर आंदोलन ने तीसरे दिन और तेजी पकड़ ली, जिसमें अंग्रेजों की जड़ें तक हिल गईं।
हड़ताल के चौथे दिन अंग्रेजों के एक बड़े अफसर ने यहां आकर लोगों से बात की। उस समय कुछ देशभक्त नौजवानों की एक टोली ने हटिया इलाके से निकल रहे अंग्रेज पुलिस अधिकारियों पर रंग डालकर ”टोडी बच्चा हाय हाय” के नारे लगाये थे।
पांचवें दिन सभी को जेल से रिहा किया गया
जनता के बढ़ते दबाव के बाद पांचवें दिन युवाओं की जब जेल से रिहाई हुई तो उस दिन अनुराधा नक्षत्र की तिथि थी। इस दौरान पूरे शहर के लोग जेल के बाहर इकट्ठा हुए। जेल में बंद युवकों ने भी अपने चेहरों से रंग नहीं छुड़ाया था। रिहाई के बाद जुलूस निकाल कर इन सबको सरसैया घाट स्नान के लिए ले जाया गया। इसके बाद सरसैया घाट के तट पर गुलाल लगाकर होली खेली गई।
यहां सप्ताहभर होती है होली, आखिरी दिन मटकी फोट प्रतियोगिता
तभी से यहां होली का कार्यक्रम उसी घटना को याद करते हुए मनाया जाता है। वर्तमान में कानपुर नगर के बिरहाना रोड में युवाओं द्वारा होली गंगा मेला के दिन मटकी फोड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन होता है। यहां पर सड़क के बीचोंबीच ऊंचाई पर रस्सी से एक मटकी बांधी जाती है। होली के रंग और गानों के बीच मटकी फोड़ का आयोजन होता है।