प्राइवेट पार्ट को टच करना और नाड़ा तोड़ना रेप नहीं है, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह माना है। इस खबर को लेकर सोशल मीडिया पर व्यापक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं और आनी भी चाहिए। अगर यह मामला रेप की कोशिश का नहीं तो अदालत को क्या सबूत चाहिए? हाई कोर्ट के इस फैसले में निश्चित रूप से कमियां हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट चाहे तो सुधार सकता है। HC ने नाबालिग के ब्रेस्ट को स्पर्श करना और वस्त्र के नाड़े तोड़ने को रेप के प्रयास की जगह ‘गंभीर यौन उत्पीड़न’ माना है। अदालत ने मौजूदा केस में रेप की परिभाषा और आईपीसी के प्रावधानों की तकनीकी व्याख्या के आधार पर फैसला लिखा है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास का आरोप नहीं बनता है। HC ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों और मामले के तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि रेप का प्रयास हुआ, लेकिन संभव नहीं हुआ। इसके लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना पड़ता है कि आरोपियों की कार्रवाई अपराध करने की तैयारी से आगे बढ़ चुकी थी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बलात्कार के प्रयास और अपराध की तैयारी के बीच अंतर को सही तरीके से समझना चाहिए। आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 354-बी और पॉक्सो की धारा 9 और 10 के तहत मुकदमा चलाया जाए।
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किस धारा में आरोपियों को क्या मिलेगी सजा
आईपीसी की धारा 354-बी के मुताबिक, किसी महिला को निर्वस्त्र करने या नग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से उस पर हमला करने या आपराधिक बल प्रयोग करने से संबंधित है, जिसके लिए 3 से 7 साल तक की सजा हो सकती है। पॉक्सो की धारा 9 के मुताबिक, 18 वर्ष से कम आयु की मासूम से यौन शोषण करता है, आरोपियों को 7 साल तक की सजा हो सकती है।
जानें क्या है पूरा मामला?
कासगंज में तीन लोगों ने 11 साल की मासूम के साथ दरिंदगी की कोशिश की। पहले तो पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की। कोर्ट के हस्तक्षेप से मामला दर्ज हुआ। पुलिस के मुताबिक, आरोपियों ने पीड़िता के ब्रेस्ट स्पर्श किए और पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। साथ ही मासूम को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की गई। हालांकि, इस बीच लोगों के आने से आरोपी पीड़िता को छोड़कर भाग गए।
आरोपियों को HC से मिली राहत
ट्रायल कोर्ट ने इसे पॉक्सो एक्ट के दायरे में रेप की कोशिश या यौन उत्पीड़न के प्रयास का मामला पाते हुए एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के साथ आईपीसी की धारा 376 को लागू किया और इन धाराओं के तहत समन जारी करने आदेश दिया। आरोपियों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट के जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने इस केस के तथ्यों को तकनीकी आधार पर परखते हुए अपने आदेश में कहा कि नाबालिग पीड़िता के ब्रेस्ट को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने आरोपियों से रेप की कोशिश की धारा को हटाने का फैसला सुनाया है। अब सवाल ये कि अगर घटना के समय कुछ लोग वहां नहीं पहुंचे होते तो क्या हुआ होता। घटना के तथ्य बताते हैं कि आरोपियों के इरादे नेक नहीं थे।
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