Prayagraj News: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जोड़े को अलग (तलाक) करते हुए कठोर टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी उचित कारण अपने पति या पत्नी को लंबे समय तक यौन संबंध बनाने से मना करना मानसिक क्रूरता है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी के रहने वाले रवींद्र प्रताप यादव ने 28 नवंबर 2005 को उनकी तलाक याचिका को खारिज करने के फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट में दायर अपील में उन्होंने कोर्ट में कहा कि मेरी पत्नी ने वैवाहिक दायित्वों (शारीरिक संबंध) का निर्वहन करने से इनकार कर दिया। पत्नी द्वारा की गई मानसिक क्रूरता के आधार पर उन्होंने तलाक मांगा था।
हाईकोर्ट ने कहा, जबरन साथ रखना कोई समाधान नहीं
जस्टिस सुनीत कुमार और राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने 16 मई को अपने आदेश में कहा कि फैमिली कोर्ट ने अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया और वादी की याचिका को इस तथ्य के बावजूद खारिज कर दिया कि उसके द्वारा दायर सबूतों का खंडन करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था।
हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, चूंकि ऐसा कोई स्वीकार्य दृष्टिकोण नहीं है, जिसमें पति या पत्नी को जबरन एक साथ रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है, इसलिए पार्टियों (पक्ष) को शादी के बंधन में बांधने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है।
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1979 में हुई थी दोनों की शादी
याचिकाकर्ता के मुताबिक, मई 1979 में दोनों की शादी हुई थी। कुछ समय बाद उसकी पत्नी का व्यवहार बदल गया और उसने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया। बाद में वह अपने माता-पिता के घर रहने लगी। शादी के छह महीने बाद उसने अपनी पत्नी को वापस आने की कोशिश की, लेकिन उसने मना कर दिया।
फैमिली कोर्ट ने खारिज की थी याचिका
इसके बाद जुलाई 1994 में गांव में एक पंचायत हुई और दोनों पक्षों में समझौता हुआ। आपसी सहमति से तलाक हो गया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने अपनी पत्नी को 22,000 रुपये गुजारा भत्ता दिया। हालांकि जब पति ने मानसिक क्रूरता, परित्याग और तलाक के समझौते के आधार पर तलाक की डिक्री मांगी, तो पत्नी कोर्ट में पेश नहीं हुई। एकपक्षीय कार्यवाही करते हुए वाराणसी परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी।
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