राजस्थान में ACB (Anti Corruption Bureau) लगातार घूसखोर अधिकारियों को रंगे हाथों पकड़ रही है। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले भी दर्ज किया जा रहे हैं। इसके बाद भी अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलने के चलते ही चंद ही महीनों में ये अधिकारी जमानत पर बाहर आ रहे हैं। इतना ही नहीं, विभागीय निलंबन की सूची से भी बाहर आकर फिर से फील्ड पोस्टिंग लेने में कामयाब हो रहे हैं। ऐसे में अब ऐसीबी चाहती है कि उनके खिलाफ चार महीने में अभियोजन स्वीकृति के कानून में संशोधन कर उसे कम किया जाए और मामला आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं देने वाले विभाग प्रमुख की भूमिका भी तय की जाए।
ACB की फाइलें सरकार की मंजूरी के जाल में फंसी
राजस्थान में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रही एंटी करप्शन ब्यूरो यानी ACB की फाइलें अब खुद सरकारी मंजूरी के जाल में फंस गई है। पिछले दो साल में ACB ने 403 मामलों में कार्रवाई की है। जिनमें 180 केस तो ऐसे हैं, जहां आरोपी अफसरों को रिश्वत लेते हुए ट्रैप किया गया। लेकिन अभियोजन की स्वीकृति आज तक नहीं मिली। इस पर एसीबी DGP रवि मेहरडा का कहना है ”चार महीने में स्वीकृति मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। उनका कहना है कि कानून में बदलाव जरूरी है, जो मंजूरी नहीं दे रहे, उनकी भूमिका भी तय हो।”
रिश्वत लेने वालों में बड़े नाम
BAP विधायक जयकृष्ण पटेल, संभागीय आयुक्त राजेन्द्र विजय, खुद ACB के एएसपी जगराम मीणा और सुरेन्द्र शर्मा जैसे बड़े अफसरों के के नाम इस लिस्ट में शामिल है। ACP दिव्या मित्तल पर 2 करोड़ की रिश्वत का मामला हो या सचिवालय से पकड़े गए IT ज्वाइंट डायरेक्टर वेद प्रकाश यादव का केस हो। ये सभी केस कोर्ट में जाने से पहले ही अटक गए।
सबसे ज्यादा इन विभागों के केस
बताया जा रहा है कि सबसे ज्यादा स्वायत्त शासन और पंचायती राज में मंजूरी के केस फंसे हैं। सवाल ये भी है कि जिन विभागों के अफसर आरोपी हैं, वही मंजूरी रोक रहे हैं। जब तक मंजूरी नहीं मिलेगी, तब तक ACB कोर्ट में चालान पेश नहीं कर सकती। ये सिस्टम खुद अपने ही खिलाफ जांच रोक रहा है। विधानसभा में भी ये मामला उठा था। सरकार ने माना कि 182 मामलों में कार्रवाई हुई, लेकिन अभियोजन की मंजूरी नहीं मिली। कई आरोपी अब सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं।
सिस्टम की मंजूरी से न्याय की रफ्तार धीमी
ACB की मेहनत कागजों में दब रही है। जब खुद सरकार की मंजूरी के बिना भ्रष्टाचार के खिलाफ केस आगे न बढ़े। अब सवाल ये है कि क्या सच में किसी को सजा मिलेगी? कहा जाता है कि इंसाफ जब सिस्टम की मंजूरी से चले तो न्याय की रफ्तार धीमी हो जाती है।