हैदराबाद: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोमवार को कहा कि ये मामला भी बाबरी मस्जिद मुद्दे के रास्ते पर जा रहा है।
हैदराबाद में ओवैसी ने कहा कि जब बाबरी मस्जिद पर फैसला दिया गया था, तो मैंने सभी को चेतावनी दी थी कि इससे देश में समस्याएं पैदा होंगी क्योंकि यह फैसला आस्था के आधार पर दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील होनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति इस आदेश के खिलाफ अपील करेगी। मेरा मानना है कि वाराणसी कोर्ट के इस फैसले के बाद पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
याचिका दायर कर मांगी थी नियमित पूजा की अनुमति
बता दें कि वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली पांच हिंदू महिलाओं की ओर से दायर मुकदमे की स्थिरता को चुनौती देने वाली अंजुमन इस्लामिया मस्जिद समिति की याचिका सोमवार को खारिज कर दी। ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी विवाद मामले में जिला जज एके विश्वेश ने फैसला सुनाते हुए मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर की तारीख तय की है।
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, “अदालत ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि मुकदमा चलने योग्य है। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को है।” वहीं, याचिकाकर्ता सोहन लाल आर्य ने कहा, “यह हिंदू समुदाय की जीत है। अगली सुनवाई 22 सितंबर को है। यह ज्ञानवापी मंदिर की आधारशिला है। लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की।”
फैसले से पहले हिंदू पक्ष ने दिया था ये बयान
इससे पहले, हिंदू पक्ष ने कहा था कि अगर फैसला उनके पक्ष में आता है तो वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सर्वेक्षण और ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की मांग करेंगे। बता दें कि पांच महिलाओं ने याचिका दायर की थी, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति मांगी गई थी, जिनकी मूर्तियां ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित है।
महिलाओं की ओर से दायर याचिका के बाद वाराणसी की एक अदालत ने मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था। इसके बाद वाराणसी की एक स्थानीय अदालत ने मई में परिसर के वीडियोग्राफी सर्वेक्षण का आदेश दिया। 16 मई को सर्वे का काम पूरा हुआ और 19 मई को कोर्ट में रिपोर्ट पेश की गई।
मस्जिद के अंदर मिली थी शिवलिंग जैसी संरचना
वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के बाद हिंदू पक्ष द्वारा दावा किया गया कि मस्जिद परिसर में एक शिवलिंग जैसी संरचना मिली थी, लेकिन मस्जिद समिति ने विरोध किया कि यह एक फव्वारा था, शिवलिंग नहीं। ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए वाराणसी कोर्ट की ओर से एडवोकेट अजय कुमार मिश्रा को कमिश्नर नियुक्त किया गया।
एडवोकेट अजय कुमार मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू मान्यता से संबंधित अन्य संरचनाओं के साथ देवी-देवताओं की कई मूर्तियां देखी गईं।” मिश्रा की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि सिंदूर के निशान वाली तीन-चार मूर्तियां और पत्थर की पटिया जैसी ‘चौखट’ को ‘श्रृंगार गौरी’ माना जाता है। हालांकि, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद एक वक्फ संपत्ति है और उसने याचिका के मेरिट पर सवाल उठाया है।
हिंदू पक्ष का दावा- मंदिर तोड़कर किया गया मस्जिद का निर्माण
हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने दावा किया था कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया था। याचिका दायर करने वालों के अनुसार काशी में भगवान विश्वनाथ का एक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग मस्जिद परिसर में है। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि 1669 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को नष्ट कर दिया था और ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया था।
याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि अदालत यह घोषित करे कि मुसलमानों को ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है और उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। इस बीच बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि ज्ञानवापी परिसर में कोई मंदिर नहीं था और मस्जिद शुरू से ही घटनास्थल पर खड़ी है।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सर्वोच्च अदालत ने 20 मई को मामले को एक सिविल जज (सीनियर डिवीजन) से जिला जज के पास स्थानांतरित कर दिया। पीठ ने यह भी कहा कि मुसलमानों के मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए प्रवेश करने पर किसी भी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की थी कि पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने की प्रक्रिया 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत प्रतिबंधित नहीं है।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी करने के लिए जिला अदालत द्वारा नियुक्त आयोग की ओर से 19 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। शीर्ष अदालत ने 17 मई को जहां शिवलिंग पाया गया था उस क्षेत्र की रक्षा के लिए नमाज पर रोक लगा दी थी।
सर्वेक्षण के बाद, हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने दावा किया था कि मस्जिद परिसर में एक शिवलिंग पाया गया था। उन्होंने शिवलिंग की सुरक्षा के लिए एक आवेदन दायर किया, जिस पर सिविल जज ने जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी को उस क्षेत्र को सील करने का निर्देश दिया जहां शिवलिंग देखा गया था। इसने सील किए गए क्षेत्र की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ की तैनाती का भी निर्देश दिया और लोगों को इसमें प्रवेश करने से रोक दिया।