भोपाल: मध्यप्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने एक ऐतिहासिक फैसला किया है। मामला जबलपुर स्थित आयुष्मान चिल्ड्रन हॉस्पिटल का है। जहां इनक्यूबेटर ऑपरेटिंग में लापरवाही के चलते एक मासूम की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई। इस मामले में आयोग ने अस्पताल को 85 लाख रुपए चुकाने के आदेश दिए हैं। यह फैसला राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के सदस्य एके तिवारी, श्रीकांत पांडे और डीके श्रीवास्तव की बैंच ने सुनाया। अभी तक इतनी बड़ी कंपनसेशन राशि किसी भी हॉस्पिटल पर लापरवाही के चलते नहीं लगाई गई है।
आयोग में अस्पताल की लापरवाही की दर्ज कराई थी शिकायत
मासूम के पिता शैलेंद्र जैन के वकील दीपेश जोशी ने बताया कि साल 2004 में शैलेंद्र जैन की बेटी साक्षी जब एक साल की थी, तब उन्होंने आयोग में अस्पताल की लापरवाही को लेकर शिकायत की थी। साक्षी जन्म के समय प्रीमेच्योर बच्ची थी, जिसके कारण उसे डॉक्टर्स की सलाह पर आयुष्मान चिल्ड्रन अस्पताल में इनक्यूबेटर में रखा गया था। हालांकि, कुछ दिनों बाद बच्ची ठीक हो गई और उसे घर ले गए। जिसके बाद बच्ची के हाव-भाव से कुछ समय बाद समझ आया कि उसे कुछ दिखाई नहीं देता है। इसे लेकर उन्होंने कई आंख के डॉक्टर को दिखाया।
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दीपेश जोशी ने बताया कि बच्ची के सभी परीक्षण करवाए गए तो जानकारी मिली कि बच्ची को रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी है। यह इनक्यूबेटर में ऑक्सीजन के अत्याधिक डोज के कारण हुई। इसको लेकर अस्पताल की लापरवाही सामने आई। बता दें कि रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी में आंख (रेटिना) के पीछे छोटी रक्त वाहिकाएं असामान्य रूप से बढ़ जाती हैं।
आयोग ने सुनाया फैसला
इस मामले में आयोग ने कहा कि पीड़ित बच्ची साक्षी जैन को अस्पताल एवं चिकित्सकों की लापरवाही के कारण ही, उसकी दृष्टि आजीवन समाप्त हो जाने का निष्कर्ष निकाला गया है तथा वह अंधी हो गई है। उसके भावी जीवन पर कथित रूप से प्रभाव पड़ने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से भी उसे, उस रूप में स्थान व सम्मान प्राप्त नहीं हो पाएगा, जिस प्रकार की वह सामान्य दृष्टि रखते हुए समाज में अपना स्थान बना पाती, इसलिए उसे बहुत से कार्यों के लिए सहयोगी की जरूरत भी पड़ती रहेगी तथा उसकी आजीविका अर्जित करने की क्षमता भी, आंखों की कमी के कारण प्रभावित रहेगी।
85 लाख का करना होगा भुगतान
इसके लिए आयोग ने 60 दिन के अंदर 40 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करने को कहा है। इस रकम पर 12 अप्रैल 2004 से भुगतान दिनांक तक 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का चुकाने को भी कहा गया है, साथ ही यह भी चेतावनी दी है कि 60 दिन के भीतर अगर राशि नहीं चुकाई गई तो, इस पर आदेश से भुगतान दिनांक तक 8% का ब्याज भी देना होगा।