सम्मेद शिखर जी से विवेक चंद्र की रिपोर्टः देशभर में सम्मेद शिखर को लेकर जैन समाज का प्रदर्शन चल रहा है। इसे पर्यटन क्षेत्र न बनाए जाने की मांग हो रही है। मौन जुलूस और आमरण अनशन हो रहे हैं। वहीं झारखंड के मधुबन और सम्मेद शिखर जी में सब कुछ सामान्य है। यहां कोई प्रदर्शन नहीं हो रहा है।
इस विरोध को लेकर यहां कोई खास चर्चा भी नहीं है। पूछने पर जैन तीर्थयात्री कहते हैं कि यह हमारा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसकी पावनता बनी रहनी चाहिए। तीर्थ यात्री यहां शांति के साथ यात्रा कर रहे हैं। यात्रा में हमेशा की तरह आसपास के गांव वाले उनकी सहायता कर रहे हैं।
जैन मुनि प्रमाण सागर ने रखे ये विचार
इस जैन समाज के आंदोलन को और करीब से समझने के लिए हम मधुबन स्थित गुणायतन पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात आंदोलन में काफी मुखर रहे मुनि श्री प्रमाण सागर से हुई। उनसे पूछा कि देश भर में जिस स्थान को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं, वहां इतनी शांति कैसे हैं? इस पर मुनि प्रमाण सागर कहते हैं कि हम शांति पसंद लोग है।
सम्मेद शिखर जी का मसला हमारी भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह धार्मिक आस्था का सवाल है। इसे तीर्थ क्षेत्र ही रहना चाहिए। पर्यटन और तीर्थाटन में काफी अंतर होता है। पर्यटन लोग मौज मस्ती के लिए आते हैं और तीर्थाटन आत्मिक शांति के लिए आते हैं। यहां हमारे 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मौक्ष प्राप्त किया है।
इसकी पवित्रता कायम रहनी चाहिए। देशभर में आंदोलन और यहां शांति के सवाल पर वे कहते हैं कि यह स्वत: स्फूर्त आंदोलन है। हमें विश्वास है कि सरकार हमारे हित में जल्द कदम उठाएगी।
सम्मेद शिखर जी के दर्शन
मुनि प्रमाण सागर ने जैन समाज की चिंताओं से अवगत कराया। लेकिन हम यहां सम्मेद शिखर जी के दर्शन की पूरी प्रक्रिया को निकट से जानना और समझना चाहते थे। फिर हम निकल पड़े मधुबन से पवित्र सम्मेद शिखर जी की ओर।
दो बजे भोर से शुरू हो जाती है चढ़ाई
4,490 फीट ऊंचे सम्मेद शिखर जी पर्वत पर तीर्थयात्री दो बजे रात्रि से चढ़ाई शुरू करते हैं। इस पवित्र पर्वत पर नंगे पांव चढ़ाई करनी होती है। चढ़ाई के लिए बेंत की छड़ी, टॉर्च और शिखर जी के दर्शन के लिए मन में भरे अदम्य उत्साह की जरूरत होती है। शिखर जी की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचने में लगभग 4 घंटे का वक्त लगता है। हम पवित्र पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ रहे थे और लोगों से इस विवाद को लेकर बात भी कर रहे थे।
स्थानीय लोग चाहते हैं, कायम रहे शांति
हमने इस विवाद को लेकर यहां के स्थानीय लोगों से भी बात की। इस मामले में स्थानीय लोगों की भी अलग-अलग राय है, लेकिन सभी चाहते हैं कि इस क्षेत्र में शांति बनी रहे। पवित्र पहाड़ी पर चाय की दुकान चलाने वाले दयाल मांझी कहते हैं कि इस विवाद का मिलजुल कर समाधान निकालने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम खुद ऐसे लोगों को यहां नहीं आने देते, जिनके मांसाहार या अन्य गतिविधियों में लिप्त होने की थोड़ी भी गुंजाइश रहती है।
उन्होंने बताया कि कुछ असमाजिक तत्वों ने हाल में ही इस पवित्र पहाड़ी के पास कथित रूप से मांसाहार किया था। उसके बाद यहां काफी हंगामा हुआ था। डोली से लोगों को शिखर जी के दर्शन कराने वाले राजा मुर्मू भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे चाहते हैं कि जैन आस्था के साथ कोई खिलवाड़ न हो। वो इसके लिए विवाद की जगह विचार करने की बात कहते हैं।
अद्भुत है पवित्र पर्वत का वातावरण
सम्मेद शिखरजी पर्वत की चढ़ाई रोमांचित करने वाली है। उंचे-लंबे साल के पेड़ों के बीच से छन कर आती सूरज की रोशनी और पक्षियों का कलरव आपको एक अलग दुनिया में होने का एहसास कराती है। कल-कल कर बहते जल स्रोत इस वातावरण को और भी भक्तिमय बना देते हैं।
डोली से भी शिखरजी तक पहुंचते हैं भक्त
ऐसे भक्त जो शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं या फिर बढ़ती उम्र उनके लिए एक समस्या है, उन लोगों के यहां डोली के सहारे चढ़ाई करने की व्यवस्था है। इस डोली को चार लोग अपने कांधों पर उठाते हैं। डोली लेकर चलने वाले ज्यादातर लोग आदिवासी समुदाय से होते हैं।
यह उनकी आजीविका का भी मुख्य साधना है। एक डोली लेकर शिखरजी के दर्शन कराने और वापस मधुवन तक लाने का न्यूनतम किराया 5000 रुपये के आसपास होता है। सवार होने वाले व्यक्ति के वजन के हिसाब से यह कम या ज्यादा हो सकता है।
सबसे ऊंचे शिखर पर पार्श्वनाथ का मंदिर
सम्मेद शिखर जी के सबसे ऊंचे शिखर पर पार्श्वनाथ का मंदिर है। पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेइसवें तीर्थांकर थे। इन्होंने इसी पर्वत पर मौक्ष की प्राप्ति की थी। यह भी मान्यता है कि इन्हीं के नाम पर इस पर्वत का नाम पारसनाथ पड़ा। इनके साथ ही सभी 20 तीर्थंकरों के चरण चिह्न यहां प्रतिक स्वरूप मौजूद हैं, जिन्होंने यहां मौक्ष प्राप्त किया था। इसे टोंक कहते हैं।
इस पहाड़ी पर हेलीपैड भी
पहाड़ी पर छोटी-छोटी कई दुकानें हैं। इसके अलावा यहां हेलिपैड भी बनाया गया है। सम्मेद शिखर जी पर्वत की चढ़ाई के दौरान आपको नाश्ते और चाय की कई दूकाने मिल जाएंगी। मुख्य मंदिर से थोड़ा पहले एक हेलिपैड भी है।
इसका मकसद सम्मेद शिखर जी को विश्व पटल पर अलग पहचान दिलाने के साथ ही इस पवित्र पहाड़ी को नक्सलमुक्त और सुरक्षित करना है। जैन धर्म धर्मावलंबी चढ़ाई के दौरान भूखे रहना ही धार्मिक दृष्टिकोण से सही मानते हैं। जैन श्रद्धालु निर्जला रहकर मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं और यहां पूजा अर्चना करते हैं।
मंदिरों का शहर मधुबन
सम्मेद शिखर पहाड़ी की तलहटी में मधुबन बसा है। इसे आप मंदिरों का शहर भी कह सकते हैं। यहां कई जैन मंदिर और धर्मशालाएं हैं। देश और दुनिया से आने वाले पर्यटक इन्हीं धर्मशालाओं में ठहरते हैं। यहां भारत के कई प्रदेशों के नाम पर भी बनी धर्मशालाएं मिल जाएंगी।
लोगों को मिला है रोजगार
इस पवित्र पहाड़ी पर दर्शन के लिए आने वाले लोगों के कारण हजारों लोगों को रोजगार भी मिलता है। इनमें से ज्यादातर जैन धर्म से जुड़े नहीं है। इसमें यहां चाय-नाश्ते की दूकान चलाने वाले से लेकर डोली से शिखरजी के दर्शन कराने वाले लोग तक शामिल हैं। मधुबन में टैक्सी चलाने वाले शौकत कहते हैं कि इस विवाद को जल्द समाप्त होना चाहिए, नहीं तो सबका नुकसान हो सकता है।
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