Delhi Vs Central Govt: केंद्र सरकार ने दिल्ली में नौकरशाहों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में शुक्रवार को एक अध्यादेश लेकर आई है। इस अध्यादेश के जरिए ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार उप राज्यपाल को दे दिए हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन करेगी, जो दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग और विजिलेंस का काम करेगी। जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और गृह सचिव होंगे। हालांकि आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही होगा।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नौकरशाहों के तबादलों और नियुक्तियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होना चाहिए। इस तरह केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया है। फिलहाल अब केंद्र सरकार को अध्यादेश संसद के दोनों सदनों में पारित कराना होगा। राज्यसभा में बीजेपी के पास संख्याबल कम है, जहां विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर एकजुट हो सकती हैं।
#WATCH | Delhi CM Arvind Kejriwal speaks about his meeting with LG VK Saxena regarding the Services Secretary and on the issue of the SC verdict on Delhi government control over services. pic.twitter.com/jRMkSgjfeh
— ANI (@ANI) May 19, 2023
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सच साबित हुई केजरीवाल की आशंका
इससे पहले सेवा सचिव आशीष मोरे के तबादले से संबंधित फाइल को मंजूरी देने में देरी को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया कि केंद्र सेवा मामलों में चुनी हुई सरकार को कार्यकारी अधिकार देने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले को अध्यादेश के जरिए उलटने की साजिश रच रहा है। सत्तारूढ़-आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की पूरी अवहेलना है।
पीडब्ल्यूडी मंत्री आतिशी ने कहा कि मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सर्वसम्मत फैसले के खिलाफ गई है। अदालत ने निर्देश दिया था कि चुनी हुई सरकार को लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की शक्ति दी जाए। लेकिन केंद्र का अध्यादेश (नरेंद्र) मोदी सरकार की हार का प्रतिबिंब है। इस अध्यादेश को लाने का केंद्र का एकमात्र मकसद केजरीवाल सरकार से शक्तियां छीनना है। आप के मुख्य प्रवक्ता और सेवा मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि केंद्र ने दिल्ली के लोगों को धोखा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए कहा था कि अगर एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अपने अधिकारियों को नियंत्रित करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने की अनुमति नहीं है, तो विधायिका और जनता के प्रति इसकी जिम्मेदारी कम हो जाती है। यदि कोई अधिकारी सरकार को जवाब नहीं दे रहा है, तो सामूहिक जिम्मेदारी कम हो जाती है। यदि कोई अधिकारी महसूस करता है वे चुनी हुई सरकार से अछूते हैं, उन्हें लगता है कि वे जवाबदेह नहीं हैं।