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Sharad Yadav: 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी आंदोलन के बीच चमका था राजनीति का ये ‘सितारा’, जानें पूरी कहानी

Sharad Yadav: समाजवादी नेता शरद यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में कई बड़े उतार-चढ़ाव देखे। राजनीति में शरद यादव ने कई गठबंधन किए। राजनीतिक यात्रा के दौरान उन्होंने दोस्तों को दुश्मनों में बदलते देखा, लेकिन उनकी शख्सियत ऐसी थी कि वे ज्यादा दिन तक अपने राजनीतिक दुश्मनों से नाराज नहीं रहे। वे फिर से उन्हीं […]

Edited By : Om Pratap | Updated: Jan 13, 2023 13:07
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Sharad Yadav

Sharad Yadav: समाजवादी नेता शरद यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में कई बड़े उतार-चढ़ाव देखे। राजनीति में शरद यादव ने कई गठबंधन किए। राजनीतिक यात्रा के दौरान उन्होंने दोस्तों को दुश्मनों में बदलते देखा, लेकिन उनकी शख्सियत ऐसी थी कि वे ज्यादा दिन तक अपने राजनीतिक दुश्मनों से नाराज नहीं रहे। वे फिर से उन्हीं प्रतिद्वंदियों से फिर से गठबंधन भी किया।

लगभग पांच दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में शरद यादव ने केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के संयोजक और जनता दल-यूनाइटेड के अध्यक्ष के रूप में काम किया। बता दें कि दिग्गज नेता (Sharad Yadav) ने गुरुवार को गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में अंतिम सांस ली। शरद यादव अपने आवास पर गिर गए थे जिसके बाद उन्हें यहां लाया गया था। शरद यादव लंबे समय से गुर्दे से संबंधित समस्याओं से पीड़ित थे और नियमित रूप से डायलिसिस करवाते थे।

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मध्य प्रदेश के छोटे से गांव से दिल्ली तक ऐसे चमका सितारा

कद्दावर समाजवादी नेता शरद यादव का जन्म 1 जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बाबई गांव में हुआ था। वे दिवंगत मुलायम सिंह यादव और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे अन्य समाजवादी नेताओं के समानांतर समाजवादी ब्लॉक के एक प्रमुख नेता थे। 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी आंदोलन के दौरान शरद यादव के राजनीतिक करियर का उदय हुआ था।

साल 1974 में उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में मध्य प्रदेश के जबलपुर से लोकसभा उपचुनाव जीता। उनकी इस जीत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ अपनी राजनीतिक लड़ाई को बढ़ावा दिया। आपातकाल के बाद शरद यादव ने एक बार फिर से 1977 में जीत हासिल की और आपातकाल विरोधी आंदोलन से बाहर आने वाले कई नेताओं में खुद को शामिल किया।

दूसरी जीत के दो साल बाद 1979 में यादव लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव बने। आठ साल बाद 1987 में वे उन घटनाओं में शामिल थे, जिनके कारण 1988 में वी.पी. सिंह छोटे समय के लिए देश के प्रधानमंत्री बने। इस दौरान शरद यादव को कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय सौंपा गया और उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया।

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एक दशक बाद 1990 में लालू यादव को हराकर चौंकाया

वीपी सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने के करीब 1 दशक बाद उन्होंने एक बार फिर देश की राजनीति में अपना नाम प्रमुखता से उस वक्त दर्ज कराया जब उन्होंने लालू यादव को चुनावी मैदान में पटखनी दी। 1990 के दशक के अंत में उन्होंने मधेपुरा में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस संसदीय सीट पर जीत के बाद उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री पद मिला।

1997 में जनता दल के अध्यक्ष बने शरद यादव

1997 में शरद यादव जनता दल के अध्यक्ष बने। हालांकि, 1999 में पार्टी में एक फूट हो गई। शरद यादव ने जनता दल को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) गठबंधन सरकार का एक घटक बनाया। एच.डी. देवेगौड़ा ने इस कदम का कड़ा विरोध किया और जनता दल को छोड़कर एक नई पार्टी बनाई जो जनता दल (सेक्युलर) या जद (एस) के रूप में जानी गई।

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उधर, शरद यादव अपने गुट के प्रमुख बने रहे, जिसका नाम जनता दल-यूनाइटेड (जेडी-यू) रखा गया। इस दौरान शरद यादव ने एनडीए कैबिनेट में नागरिक उड्डयन, श्रम और उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री के रूप में कार्य किया। 2003 में छोटे दलों के विलय के बाद जद (यू) को एक नई पार्टी के रूप में पुनर्गठित किया गया।

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2014 में हार के बाद नीतीश के साथ संबंधों में दिखा बदलाव

2006 में यादव पार्टी अध्यक्ष चुने गए। 2009 में वे फिर से मधेपुरा से लोकसभा के लिए चुने गए। लेकिन 2014 के आम चुनावों में जद (यू) की हार के बाद, शरद यादव के नीतीश कुमार के साथ संबंधों में बदलाव देखा गया।

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2017 के बिहार विधानसभा चुनावों में, जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में जद (यू) ने भाजपा के साथ गठबंधन किया तो शरद यादव ने इसे मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी खुद की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल शुरू की थी, जिसका मार्च 2020 में लालू यादव के संगठन राजद में विलय हो गया।

HISTORY

Written By

Om Pratap

First published on: Jan 13, 2023 09:44 AM

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