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बिहार

बिहार में 99 फीसदी घरों तक पहुंचा नल का जल, मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना के तहत हो रहा काम

बिहार में सीएम नीतीश की सात निश्चय योजना में शामिल हर घर नल का जल योजना पूरी तरह कामयाब है। इस योजना के तहत 99 फीसदी घरों तक नल का जल पहुंच रहा है। वहीं, इससे जुड़े 98 फीसदी शिकायतों का समाधान हो रहा है। विभाग को सीजीआरजी प्रणाली के जरिए जलापूर्ति से जुड़ी 70 हजार 343 शिकायतें मिली थीं, जिसमें से 69 हजार 774 शिकायतें का समाधान विभाग ने कर दिया। शिकायतों के लिए टॉल-फ्री नंबर भी जारी किए गए हैं।

Author Edited By : Satyadev Kumar Updated: Mar 10, 2025 20:23
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हर घर नल का जल योजना।

बिहार के शहरी और ग्रामीण इलाकों में 99.20 प्रतिशत घरों को ‘हर घर नल का जल’ योजना के तहत स्वच्छ पेयजल मुहैया कराया जा रहा है। इस योजना का क्रियान्वयन सुचारू तरीके से करने के लिए पीएचईडी (लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग) ने शिकायतों का निपटारा कम से कम समय में कराने की व्यवस्था तय की है। विभिन्न जिलों से सीजीआरसी प्रणाली के जरिए विभाग को जलापूर्ति से जुड़ी 70 हजार 343 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिसमें से 69 हजार 774 शिकायतों का विभाग ने समाधान कर जलापूर्त्ति शुरू कर दी है।

98 फीसदी शिकायतों का हो रहा समाधान

योजना के निर्माण एवं संचालन से जुड़ी 31 हजार 585 शिकायतें प्राप्त हुई थी, जिसमें 31 हजार 292 का निवारण कर लिया गया है। वहीं, पंचायती राज विभाग से हस्तांतरित योजनाओं के तहत प्राप्त 38 हजार 758 शिकायतों में से 38 हजार 487 का निवारण किया जा चुका है।

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मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना के तहत हो रहा काम

मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना में शामिल ‘हर घर नल का जल’ योजना के अंतर्गत शहरी क्षेत्र में मौजूद सभी घरों को इससे जोड़ दिया गया है। सितंबर 2024 तक राज्य के 1 लाख 14 हजार 50 में से 1 लाख 13 हजार 874 ग्रामीण और 203 शहरी वार्डों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति शुरू कर दी गई है। 18.47 लाख परिवारों को पानी का कनेक्शन दिया गया है। जबकि 75 हजार परिवार कनेक्शन से वंचित हैं। 4 हजार परिवारों ने नल जल का कनेक्शन लेने इनकार कर दिया है। स्थानीय निकायों और बुडको के स्तर से 3 हजार 398 में से 3 हजार 370 वार्डों में नल जल कनेक्शन दिया गया है। वर्तमान में 1.74 करोड़ से अधिक घरों तक नल का जल पहुंचाया जा रहा है।

टॉल-फ्री नंबर पर कर सकते हैं शिकायत

पीएचईडी इस योजना से संबंधित शिकायतों पर तत्वरित कार्रवाई करने के लिए एक टॉल-फ्री नंबर भी जारी कर किया गया है। फरवरी 2025 तक आम नागरिकों के स्तर से टॉल-फ्री नंबर 1800-123-1121/1800-345-1121/155367 पर 4 हजार 511 शिकायतें दर्ज की गई हैं। इसके अलावा 2 हजार 237 शिकायतें व्हाट्स एप नंबर 8544429024/ 8544429082 के माध्यम से 128 शिकायतें स्वच्छ नीर एप पर सीधे प्राप्त हुई हैं। इसके अलावा 4 हजार 297 शिकायतें जिला नियंत्रण कक्ष, 4 हजार 083 शिकायतें वेब पोर्टल पर और 466 शिकायतें ई-मेल से प्राप्त की गई हैं। इन सभी को मिलाकर कुल 15 हजार 722 शिकायतों में 14 हजार 295 शिकायतों का समाधान कर संबंधित जलापूर्ति को सक्रिय कर दिया गया है।

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सभी जिलों में ऑन स्पॉट खाद्य पदार्थ टेस्टिंग की व्यवस्था जल्द

  • पहली माइक्रोबायोलॉजी लैब तैयार, आम लोग भी यहां करा सकते खाद्य पदार्थों की जांच।
  • पटना में स्थापित किया गया है माइक्रोबायोलॉजी लैब।
  • अब आम लोग भी इस लैब में किसी खाद्य सामाग्री की जांच करवा सकते हैं।

ऑन स्पॉट जांच की सुविधा शुरू

अब राज्य में सभी तरह के खाद्य एवं पेय पदार्थों की ऑन स्पॉट जांच की सुविधा शुरू होने जा रही है। इस लैब की मदद से ऑन स्पॉट टेस्टिंग पर भी काम कर चल रहा है। अभी राजधानी पटना, भागलपुर और पूर्णिया में फूड टेस्टिंग वैन चलाई गई है। ये वैन बाजार से सैंपल लेकर ऑन स्पॉट टेस्टिंग करते हैं। सरकार जल्द ही प्रदेश के हर जिले में चलंत टेस्टिंग वैन की सुविधा शुरू होने जा रही है। पटना में राज्य का पहला माइक्रोबायोलॉजी लैब सुचारू तरीके से काम करने लगा है। यहां दूध, दही, मिठाई, मांस, मछली और पानी समेत अन्य किसी तरह के खाद्य पदार्थों की जांच कराकर इसकी असलियत का पता लगाया जा सकता है। यहां आम लोग भी किसी तरह के खाद्य पदार्थ में मिलावट की जांच करवा सकते हैं।

45 साल पुराना है ये लैब

इस फूड और ड्रग टेस्टिंग लैब को शहर के अगमकुआं में बनाया गया है। ऐसे तो यह लैब 1980 से काम कर रहा है लेकिन अभी यहां माइक्रोबायोलॉजी और एडवांस टेक्नोलॉजी के उच्च स्तरीय उपकरण अनुभाग की शुरुआत की गई है। यह राज्य का एक मात्र आधुनिक तकनीकों से लैस विश्व स्तरीय खाद्य प्रयोगशाला है। इस प्रभाग के शुरू होने से पहले तक सिर्फ केमिकल टेस्टिंग होती थी। अब इसमें माइक्रोबायोलॉजी और एडवांस टेक्नोलॉजी आधारित जांच शुरू हो गई है। इसे नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड (NABL) और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) से भी मान्यता मिल चुकी है।

तीन तरह की होगी जांच

  • हाईटेक मशीनों से जांच: इसके अंतर्गत एडवांस मशीनों से खाने की चीजों में मिलावट और हानिकारक तत्वों की पहचान की जाती है।
  • बैक्टीरिया और माइक्रोब्स की जांच: इसके अंतर्गत दूध, मांस, मछली और पानी में मौजूद बैक्टीरिया की सही पहचान की जाती है।
  • केमिकल टेस्टिंग: खाने-पीने की चीजों में केमिकल और जहरीले पदार्थों की जांच।

6 करोड़ की लागत से तैयार हुई लैब

इस लैब को राज्य सरकार और FSSAI ने संयुक्त रूप से 6 करोड़ रुपये खर्च कर अपग्रेड किया है। लैब में गैस क्रोमॉटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेटरी (जीसी-एमएसएमएस) की मदद से खाने में कीटनाशकों और फैट की जांच होती है। लिक्विड क्रोमॉटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोमेटरी (एलसी-एमएसएमएस) खाने में एंटीबायोटिक्स, हानिकारक रंग और जहरीले पदार्थ की जांच कर सकते हैं। इंडक्टिवली कपल्ड प्लाजमा मास स्पेक्ट्रोमेटरी (आईसीपी-एमएस) की मदद से खाने में लेड, कैडमियम जैसे भारी धातुओं की पहचान की जा सकती है।

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Edited By

Satyadev Kumar

First published on: Mar 10, 2025 08:22 PM

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