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बिहार

रजाई में शहर, खेतों में पहरा: बिहार में नीलगाय के आतंक से जूझ रहे किसान

स्थानीय लोग बताते हैं कि काले रंग के नर नीलगाय, जिन्हें 'घोड़ा परस' कहा जाता है वो ज्यादा उग्र होते हैं. जबकि भूरे रंग की मादाएं झुंड बनाकर खेतों पर धावा बोलती हैं. पढ़ें नीलगाय के आतंक से जूझ रहे बिहार के किसानों की आपबीती पर न्यूज 24 के संवाददाता अमिताभ ओझा की खास रिपोर्ट.

Author Edited By : Akarsh Shukla
Updated: Dec 26, 2025 22:14

अमिताभ ओझा
पूस की सर्द रात, जब लोग रजाई में दुबके नींद के आलम में होते हैं, तब भोजपुर जिले के कई गांवों में किसान अलाव के पास चौकन्ने बैठे रहते हैं. उनकी आंखें अंधेरे में चमकतीं नीलगायों की हर हलचल पर टिकी रहती है. ठंड की परवाह किए बिना वे खेतों में डटे रहते हैं, क्योंकि हल्की सी लापरवाही उनकी पूरी फसल मिट्टी में मिला सकती है. भोजपुर के कसाप पंचायत समेत कई इलाकों में रात का यह मंजर रोज का बन गया है. किसान के हाथ में डंडा या फरसा, और नजरें खेत की मेड़ पर रहती हैं.

नीलगायों को मारने का आदेश


स्थानीय लोग बताते हैं कि काले रंग के नर नीलगाय, जिन्हें ‘घोड़ा परस’ कहा जाता है वो ज्यादा उग्र होते हैं. जबकि भूरे रंग की मादाएं झुंड बनाकर खेतों पर धावा बोलती हैं. कई बार ये जानवर किसानों पर भी हमला कर देते हैं, जिससे रात का यह पहरा न सिर्फ खेती का बल्कि जान का भी सवाल बन गया है. हालात इतने बिगड़े कि नवादा जिले के महुली पंचायत में प्रशासन को नीलगायों को मारने के आदेश देने पड़े. पंचायत के मुखिया विपिन सिंह ने बताया कि किसानों को हर साल करीब 2 से 3 लाख रुपये की फसल का नुकसान होता है.

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शिकायतों के बाद वन विभाग ने मगध के शूटर क्यूम अख्तर को बुलाया, जिन्होंने अपनी टीम के साथ नीलगायों को नियंत्रित करने की कार्रवाई की. अख्तर बताते हैं, ‘सरकार की ओर से प्रति नीलगाय पर 750 रुपये और दफनाने पर 1250 रुपये का भुगतान तय है. हम आदेश के अनुसार काम करते हैं.’ राज्य के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि फरवरी 2025 तक 4,279 नीलगायों को मारा जा चुका था. मार्च 2025 में विधानसभा में तत्कालीन वन मंत्री सुनील कुमार ने यह जानकारी दी थी. जिला-वार आंकड़ों पर नजर डालें तो सिर्फ वैशाली में 3,057 नीलगाय मारी गईं, गोपालगंज में 685, समस्तीपुर में 256 और मुजफ्फरपुर में 124.

गंगा किनारे बेचैन किसान


अधिकारियों के अनुसार, यह कार्रवाई किसानों की सुरक्षा और फसलों की रक्षा के लिए की गई, जबकि भुगतान पंचायती राज विभाग के जरिए जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है. बक्सर और बेगूसराय में भी नीलगाय का आतंक कम नहीं. बक्सर में किसान बबलू उपाध्याय कहते हैं, ‘दिन भर खेत में काम, रातभर पहरा—अब यही दिनचर्या बन गई है.’ वहीं बेगूसराय के टाल क्षेत्र में ईख और मक्का की खेती करने वाले किसानों के लिए नीलगायें सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी हैं. स्थानीय किसान जीवेश तरुण बताते हैं, ‘नीलगाय झुंड में आती हैं और कुछ ही मिनटों में पूरी फसल खत्म कर जाती हैं.’

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सरकार का पक्ष


किसानों की परेशानी पर जब न्यूज 24 ने बिहार के कृषि मंत्री रामकृपाल यादव से बात की, तो उन्होंने कहा, ‘यह समस्या बेहद गंभीर है. कुछ इलाकों में शूटिंग कराई जा रही है, साथ ही अन्य वैकल्पिक उपायों पर भी मंथन चल रहा है.’ नीलगाय के आतंक से प्रभावित जिलों में पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, वैशाली, नवादा, नालंदा, गया, गोपालगंज, बक्सर, कैमूर, रोहतास, अरवल, मुजफ्फरपुर, सीवान, बेगूसराय, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सारण, मधुबनी, दरभंगा, खगड़िया, मधेपुरा, सहरसा, औरंगाबाद, मुंगेर शामिल है.

First published on: Dec 26, 2025 09:47 PM

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