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बिहार में भूचाल की अग्रिम सूचना, बस JDU की अगली चाल का इंतजार, चौधरी-त्यागी की कहानी में छिपा है राज

Bihar News: तेजस्वी यादव ने अपने चुनावी एजेंडा का संकेत दे दिया है। स्वाभाविक है कि जातीय जनगणना और आरक्षण के सवाल पर बिहार में आरजेडी को खुला मैदान देना जेडीयू की सियासत की प्राथमिकता कतई नहीं होगी।

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Sep 2, 2024 14:29
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संजीव त्रिवेदी की स्पेशल रिपोर्ट
Bihar News: बिहार की सियासत में दो दिनों के अंतर पर ध्यान खींचने वाले घटनाक्रम ने आने वाले भूचाल की पहली तस्वीर पेश कर दी है। इन दोनों को आइसोलेशन में न देखते हुए अगर बिंदुओं को जोड़ा जाये तो गज़ब की बात सामने आ रही है। दोनों घटनाक्रम में ऐसे पात्र मुख्य नायक हैं, जो राजनीति की बारीकियों को दशकों से समझ रहे हैं और भावातिरेक में कुछ भी बोल जाते हों, ऐसा नहीं है।

बिहार में भूमिहार समाज एनडीए का कोर वोटर है। जातीय गुणा गणित में संख्याबल के लिहाज से कम, लेकिन राज्य कि सियासत पर इसका प्रभाव संख्या बल से बहुत ज्यादा है। लिहाजा नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के एक सदस्य द्वारा पूरे भूमिहार समाज को इसलिए टारगेट पर लिया जाना क्योंकि जहानाबाद के भूमिहारों ने उस लोक सभा क्षेत्र के अति पिछड़ा उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था – सियासत में अदूरदर्शिता मानी जाएगी। खासकर तब –

– जब जहानाबाद की एक सीट की हार का केंद्र सरकार में जेडीयू की रसूख पर कोई अंतर नहीं पड़ा।

– जब बिहार में बाकी सभी लोक सभा क्षेत्रों में भूमिहार समाज एनडीए के साथ रहा, जिनमें वैशाली लोकसभा क्षेत्र भी है, जहाँ आरजेडी ने भूमिहार उम्मीदवार उतार दिया था।

लेकिन नीतीश के मंत्री अशोक चौधरी ने जहानाबाद जाकर भूमिहारों को नाराज़ किया। और यहीं प्रश्न खड़ा होता है कि ‘अति पिछड़ा के पक्ष’ में ‘भूमिहार की टारगेटिंग’ के पीछे उनका असली मकसद क्या है। इस टारगेटिंग के लिए ऐसे पात्र (अशोक चौधरी) को चुना गया, जिनकी भूमिहारों में रिश्तेदारी है।

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अब आइए केसी त्यागी के सवाल पर।

गठबंधन में मेल और बेमेल की परस्पर धाराओं को समय की ज़रूरत के अनुसार उभारा जाता है। गठबंधन को मजबूत करना है तो बेमेल धारायें नेपथ्य में रहती हैं। मसलन 370 की वापसी पर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की अलग-अलग राय है, लेकिन गठबंधन करने वक़्त राहुल गाँधी और फारूक़ अब्दुल्ला ने उस पक्ष को तवज्जो ही नहीं दिया, क्योंकि मक़सद गठबंधन करना था।

बेमेल मुद्दों को आप तभी उभारते हैं, ज़ब मौजूदा गठबंधन की अहमियत आपकी नज़रों में घट जाती है। ऐसे में एक अरसे से इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध पर अपने फिलिस्तीन-परस्त व्यूपॉइंट को अचानक जेडीयू ने अगर उठा दिया तो क्यों? एक फायदा तो सीधा है कि मुस्लिम वोट बैंक में जेडीयू का ग्राफ बढ़ गया होगा।

लेकिन ग्राफ कि फिलवक़्त बढ़ोत्तरी का मक़सद क्या है?

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दोनों घटनाक्रम में कॉमन बात ये है कि दोनों एक निश्चित वोट बैंक की सहानुभूति प्राप्त करने की गरज से एक के बाद एक घटित होते दिख रहे हैं। सवाल ये है कि जिस वोट बैंक को टारगेट किया जा रहा है, वो स्वाभाविक तौर पर किसके वोट बैंक हैं। आप कह देंगे कि ये उनके वोट बैंक हैं जो बिहार में पिछड़ा-अतिपिछड़ा और अल्पसंख्यक वोटों की राजनीति करते हैं। इसमें पहला नाम RJD और दूसरा JDU का है।

विधानसभा चुनाव में जीत का पक्का फॉर्मूला

तो क्या जेडीयू का ये कोर्स करेक्शन किसी खास उद्देश्य की तरफ पार्टी के बढ़ने का संकेत नहीं है। क्या ये उस राजनीतिक भूचाल की अग्रिम सूचना है, जो आपको अगले कुछ महीनों में बिहार की राजनीति में प्ले-आउट होता दिखेगा। आरजेडी और जेडीयू की राजनीति में पिछड़ा-अतिपिछड़ा के साथ अल्पसंख्यक वोट की दरकार होती है। साल 2015 का अनुभव कहता है कि भूमिहार जैसे सवर्ण समाज को छोड़ते हुए जेडीयू अगर पिछड़ा-अतिपिछड़ा-अल्पसंख्यक वोट बैंक को आरजेडी के साथ मिलकर एकजुट कर लेती है तो ये बिहार विधानसभा चुनाव में जीत का पक्का फॉर्मूला है।

तो क्या बिसात बिछ चुकी है और अशोक चौधरी का बयान उसकी पहली चाल है, दूसरी चाल क्या केसी त्यागी हैं? क्या उनकी कुर्सी का जाना ये संदेश देने के लिए था कि अल्पसंख्यक हितों के लिए बीजेपी के दबाव में त्यागी का त्याग किया गया है।

राज्यों के आगामी चुनाव बनेंगे निर्णायक

देश में दो राज्यों के चुनाव सामने हैं। चमत्कार नहीं हुआ तो हरियाणा और जम्मू-कश्मीर दोनों बीजेपी के पाले में आते ज़रा कम ही दिख रहे हैं। थोड़े ही दिन बाद होने वाले महाराष्ट्र और झारखंड में से अगर कोई एक चुनाव भी बीजेपी हार जाती है तो जातीय जनगणना और आरक्षण के आसपास की गोलबंदी अगले राउंड की सियासत का आधार बनेगी। कहना न होगा कि इन मुद्दों कि राजनीति में बीजेपी बैकफुट पर दिखती है।

तेजस्वी यादव ने अपने चुनावी एजेंडा का संकेत दे दिया है। स्वाभाविक है कि जातीय जनगणना और आरक्षण के सवाल पर बिहार में आरजेडी को खुला मैदान देना जेडीयू की सियासत की प्राथमिकता कतई नहीं होगी। बीजेपी इस मुद्दे पर उसके साथ नहीं है। ऐसे में जेडीयू के अगले कदम में बस समय का इंतज़ार भर बाकी है।

पलटू कहने वाला अगर लाभार्थी होगा तो पलटू कहेगा कौन?

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News24 हिंदी

First published on: Sep 02, 2024 09:34 AM

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