बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस बार का बिहार चुनाव बहुत ही खास है क्योंकि इस बार पारंपरिक जातीय समीकरण और जनसभाओं की तैयारी के साथ-साथ पार्टियां अब मोबाइल स्क्रीन पर भी जंग लड़ रही हैं। इस बार चुनाव में सभी राजनीतिक दल सोशल मीडिया के वर्चुअल मंच पर सियासत के दांव खेल रहे हैं। अब राजनीतिक पार्टियों ने फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब को अपना रणक्षेत्र बना लिया है। जहां तीर की जगह वे मीम्स और बयानों के बाण चला रहे हैं।
घोटाले के लिए होड़
परिवार है बेजोड़ ।।---विज्ञापन---चारा घोटाले से लालू जी ने दिखाया रास्ता।
जमीन घोटाला तेजस्वी करें, आम जनता की बेहतरी से क्या वास्ता।#Corrupt_Lalu_Family#ShameOnRJD#ShameOnLalu pic.twitter.com/u9uZsruBSZ— BJP Bihar (@BJP4Bihar) May 14, 2025
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राजनीतिक कार्टूनों और शब्दों की जंग
इस बार चुनाव में सिर्फ वादों और नारों की नहीं, बल्कि नए-नए विशेषणों और व्यंग्यात्मक शब्दों की भी भरमार है। कार्टूनिस्ट हायर किए गए हैं, सोशल मीडिया कंटेंट बनाने के लिए विशेषज्ञ तैनात हैं। विरोधियों पर कटाक्ष करने के लिए नए-नए वीडियो बनाए जा रहे हैं और पोस्टरों से लेकर रील्स तक, हर माध्यम का सियासी इस्तेमाल किया जा रहा है।
नीतीश जी का काम बोलता है..
जो लोग आज नीतीश जी के कामों पर सवाल उठाते हैं, उन्हें एक बार 90 के दशक का बिहार भी याद कर लेना चाहिए।@RJDforIndia #JDU #NitishKumar #KaamBoltaHai #BadalteBiharKiPehchaan #90sKaBiharYaadKaro #VikasKaNayaYug #NitishModel #SushasanKaPramaan pic.twitter.com/zV8dK8RMwm
— Janata Dal (United) (@Jduonline) May 22, 2025
डिजिटल के महान योद्धा
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा कि अब तीर के जवाब में तीर नहीं, ट्वीट के जवाब में ट्वीट है। वहीं, राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि आईटी-वाईटी को कभी हल्के में लेने वाले नेता अब सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय हैं।
इस डिजिटल लड़ाई में जेडीयू भी पीछे नहीं है। सीएम नीतीश कुमार, जो एक समय ट्विटर को ‘चीं-चीं चें-चें’ कहकर खारिज कर चुके थे, अब उसी सोशल मीडिया पर अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं। जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार बताते हैं कि राजगीर में पार्टी कार्यकर्ताओं को बाकायदा सोशल मीडिया ट्रेनिंग दी गई है।
डिजिटल खाई या अवसर?
बिहार में इंटरनेट की पहुँच आज भी सीमित है। कई ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की समस्या आज भी बनी हुई है, लेकिन चुनावी मौसम में यह ‘डिजिटल खाई’ मानो भर गई है। हर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक लाइव और शॉर्ट वीडियो से लैस कर चुकी है।
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क्या निकला परिणाम?
बिहार का यह चुनाव न केवल जातीय समीकरणों का टेस्ट है, बल्कि डिजिटल प्रभाव की भी परीक्षा है। अब सियासी लड़ाई सिर्फ सड़कों और रैलियों में नहीं, बल्कि स्क्रीन और सोशल मीडिया ट्रेंड्स पर भी लड़ी जा रही है। यह चुनाव तय करेगा कि बिहार की सियासत कितनी डिजिटल हो चुकी है और यह तकनीकी ताकत किसके पक्ष में जाएगी।