बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हाईकमान से बड़ा बदलाव किया है। पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह की जगह राजेश कुमार को कमान सौंपी है। दलित समाज से आने वाले राजेश कुमार कुटुंबा सीट से विधायक हैं। ऐसे में कांग्रेस ने एक भूमिहार को हटाकर दलित चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। आइये जानते हैं राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के क्या मायने है?
अखिलेश प्रसाद सिंह और कन्हैया कुमार के बीच पिछले कुछ दिनों से लगातार अनबन की खबरें सामने आ रही थी। इसके अलावा नए प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावारु और कन्हैया कुमार से उनके टकराव की खबरें लगातार सामने आ रही थी। ऐसे में पार्टी ने उनको हटाकर दलित समुदाय से आने वाले राजेश राम को बिहार की कमान सौंप दी।
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लालू के करीबी थे अखिलेश प्रसाद सिंह
अखिलेश प्रसाद सिंह आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के करीबी रहे हैं। अखिलेश प्रसाद को हटाकर कांग्रेस ने आरजेडी को मैसेज दिया है कि उसे प्रदेश में कमतर आंकने की कोशिश आरजेडी नहीं करें। बिहार चुनाव में कांग्रेस नए सिरे पार्टी को रीबूस्ट करने की रणनीति पर काम कर रही है। इस क्रम में सबसे पहले उसने कन्हैया कुमार के जरिए युवाओं को साधने की रणनीति बनाई है। कन्हैया कुमार इन दिनों बिहार में रोजगार दो पदयात्रा निकाल रहे हैं। इसके जरिए वे युवाओं को लुभाना चाहते हैं। पार्टी के इस कैंपेन से आरजेडी ज्यादा खुश नहीं है। गठंबंधन में सहयोगी के तौर पर आरजेडी कभी नहीं चाहती कि बिहार में कांग्रेस बड़ी भूमिका में आएं।
पार्टी के निशाने पर 16 प्रतिशत दलित वोटर्स
राजेश राम को कमान सौंपकर पार्टी ने प्रदेश के दलित वोटर्स को साधने की कोशिश की है। दलित वोटर्स अब तक परंपरागत तौर पर एलजेपी को सपोर्ट करता आया है। प्रदेश में महादलित की कुल आबादी 16 प्रतिशत है। इसमें 6 प्रतिशत पासवान वोटर्स है। पार्टी की कोशिश है कि किसी भी तरह उसके पुराने कोर वोटर्स को फिर से पार्टी से जोड़ना। इसके लिए पार्टी जी तोड़ मेहनत कर रही है।
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