रांची से विवेक चंद्र की रिपोर्ट : झारखंड सरकार ने हाल ही में नई खेल नीति बनाई है। सरकार का दावा है कि वह सूबे के खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारने में जुटी है। इन सब के बावजूद राज्य की राजधानी रांची में ही एक राष्ट्रीय तीरंदाज सड़क के किनारे चाय बेचने पर मजबूर हैं। मजबूरी यह कि उसे धनुष खरीदने में लिए रुपयों का कर्ज चुकाना है। इस राष्ट्रीय तीरंदाज का नाम दीप्ति कुमारी है। दीप्ति रांची के अरगोड़ा चौक के पास फुटपाथ पर दुकान लगा चाय बेचा करती है। दीप्ति का परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर है। दीप्ति बताती है कि उसके तीरंदाजी के लिए धनुष खरीदने को मां ने महिला समिति से पैसे उधार ले साढ़े चार लाख में धनुष खरीदा था। इसके बाद तीर और अन्य जरूरतों के लिए भी साढ़े तीन लाख का कर्ज मां को लेना पड़ा।
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वर्ल्ड कप कैडेट ट्रायल में टूटा धनुष और सपना
दीप्ति बताती है कि वो जिस भी तीरंदाजी प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेती थी उसमें वो जीत कर आती थी। इसी के तहत उसे 2013 में वर्ल्ड कप कैडेट ट्रायल में हिस्सा लेने का मौका मिला। यह दीप्ति के सपने सच होने जैसा था। दीप्ति के इस सपने के लिए उसकी मां ने कर्ज लेकर दीप्ति के लिए धनुष खरीदा था। तय वक्त पर वर्ल्ड कप कैडेट ट्रायल के लिए दीप्ति हौसलों से लबरेज हो कोलकाता के साई सेंटर पहुंची पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। ऐन वक्त पर दीप्ति का धनुष टूट गया और वह वर्ल्ड कप का ट्रायल पूरा नहीं कर सकी।
चाय बेच चुका रही धनुष का लोन
दीप्ति ने आगे खेलने की कोशिश की पर उसे कहीं से आर्थिक मदद नहीं मिल सकी। इधर धनुष के लिए कर्ज का ब्याज भी बढ़ रहा था। घर की माली हालत भी अच्छी नहीं थी। खेती कर घर चलाने वाले पिता की तबीयत भी नासाज रहने लगी। इसके बाद मां को भी बीमारी ने जकड़ लिया। इन सब के बाद भी दीप्ति ने हौसले का दामन नहीं छोड़ा और रांची आकर चाय की दुकान शुरू करने का फैसला किया। इसी दुकान से वह धनुष के लिए लोन का किस्त भी चुकाती है और घर चलाने में आर्थिक मदद भी करती है।
दीप्ति के नाम पचास से अधिक मेडल
दीप्ति ने दर्जनों राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रतिस्पर्धाओं में पदक हासिल कर झारखंड का मान बढ़ाया है। उसके पास पचास से अधिक मेडल है जो उसके उत्कृष्ट प्रदर्शन को बताने के लिए काफी है। दीप्ति स्कूल से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हैं। आगे भी वह इसे जारी रखना चाहती है।
बांस के धनुष से कर रही पर अभ्यास
दीप्ति के पास इतना पैसा नहीं है कि वह तीरंदाजी में उपयोग होने वाला उपयुक्त धनुष खरीद सकें। उसने मणिपुर से बांस का धनुष कई बार प्रैक्टिस के लिए मंगवाया है। दीप्ति बताती है कि बांस का धनुष मणिपुर से मंगवाना पड़ता है और इसकी कीमत भी 15 हजार से तीस हजार तक होती है। यह ज्यादा दिन तक टिकता भी नहीं।
बहनों को भी बनाया तीरंदाज़
दीप्ति ने अपनी बहनों को भी तीरंदाजी का गुर सीखाया है। दीप्ति की बहनें डोली कुमारी और मोनिका कुमारी भी तीरंदाज हैं। डाली तीरंदाजी में नेशनल भी खेल चुकी हैं। मोनिका ने भी कई राज्यस्तरीय स्पर्धाओं में पदक जीता है।
अब सरकार से उम्मीद
दीप्ति चाहती है कि राज्य सरकार उसकी मदद करें जिससे वह फिर से तीरंदाजी का अपना सपना पूरा कर राज्य का नाम ऊंचा कर सके। वह कहती हैं कि अगर सरकार उसे खेल कोटे से नौकरी दे तो उसे परिवार की माली हालत सुधारने में मदद मिलेगी।
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