Science News: साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने भूगर्भ में होने वाली गतिविधियों पर एक शोध किया है। इस रिसर्च के नतीजे के आधार पर अब धरती में छिपी हीरे की खानों का आसानी से पता लगाया जा सकेगा और उन्हें निकाला जा सकेगा। माना जा रहा है कि आने वाले समय में यह खोज डायमंड इंडस्ट्री को पूरी तरह बदल कर रख देगी। इसके जरिए उन स्थानों का सटीक तरह से पता लगाया जा सकेगा जहां हीरे होने की सर्वाधिक संभावनाएं हैं।
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करोड़ों-अरबों साल पुराने होते हैं हीरे
हीरों का निर्माण जमीन में करोडो़ं-अरबों वर्षों में जाकर होता है। ये अक्सर किम्बरलाइट् रॉक्स में पाए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि किम्बरलाइट रॉक्स ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे से बनती है। जमीन में हजारों फुट की गहराई जहां पर बहुत ज्यादा प्रेशर और अत्यधिक तापमान होता है, वहीं पर कार्बन के परमाणु अत्यधिक प्रेशर और गर्मी के कारण हीरों में बदल जाते हैं।
किम्बरलाइट चट्टानें इस पृथ्वी पर सबसे पुरानी चट्टानों में एक हैं। ये अधिकतर दक्षिण अफ्रीका में पाई जाती हैं जहां पर 19वीं सदी में बहुत सारी हीरों की खान हुआ करती थीं। वैज्ञानिकों की इस रिसर्च में खुलासा हुआ है कि हीरे जमीन में करीब 150 किलोमीटर (करीब 4 लाख 91 हजार फीट) की गहराई पर बनते हैं। ये वहां पर काफी लंबे समय तक यूं ही पड़े रहते हैं। जब कभी ज्वालामुखी फटता है तो उसके लावा के साथ ये भी जमीन की सतह पर आ जाते हैं।
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शोध से यह भी पता चला है कि जमीन के अंदर के हीरे बाहर आने की प्रोसेस आज से करीब 20 से 30 मिलियन (2 से 3 करोड़) वर्ष पूर्व हुई थी। उस समय पृथ्वी में महाद्वीपों के टूटने और बनने की प्रक्रिया चल रही थी। इस शोध के नतीजों पर माना जा सकता है कि कभी अतीत में जहां ज्वालामुखी सक्रिय थे, वहां पर आसानी से और बहुतायत से हीरे मिल सकते हैं। इस तरह हीरे ढूंढने का काम आसान हो जाएगा। हालांकि अब आर्टिफिशियल डायमंड मार्केट में आने से प्राकृतिक हीरों की डिमांड कम हो रही है, लेकिन इनका क्रेज अभी भी पहले की ही तरह बना हुआ है।