Sawan 2025: हिंदू धर्म में सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष महत्व रखता है। साल 2025 में इसकी शुरुआत 11 मई से हो चुकी है और यह 9 अगस्त तक रहने वाला है। मान्यता है कि इस पवित्र महीने में भगवान शिव अपने निवास स्थान कैलाश पर्वत को छोड़कर पृथ्वी पर उत्तराखंड की एक नगरी में रहने आते हैं। इसके साथ ही वे पूरे सावन यहीं पर वास करते हैं। इस स्थान पर पूजा करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
कौन सा है ये स्थान?
यह स्थान उत्तराखंड के शहर हरिद्वार के कनखल में में है। इस जगह को भोलेनाथ का ससुराल माना जाता है। यहां वे दक्षेश्वर महादेव रूप में विराजमान होते हैं। शिव पुराण के अनुसार, माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार के कनखल में एक महायज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया था। माता सती ने शिव जी से यज्ञ में शामिल होने का आग्रह किया और बिना निमंत्रण के वहां पहुंचीं। यज्ञ स्थल पर दक्ष और अन्य देवताओं द्वारा भगवान शिव का अपमान किया गया, जिसे सती सहन न कर सकीं। क्रोध और अपमान से दुखी होकर, सती ने यज्ञ की अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए।
इस घटना से क्रुद्ध भगवान शिव ने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ का विध्वंस करवाया और दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद में, सभी देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने दक्ष को बकरे का सिर लगाकर पुनर्जन्म दिया। दक्ष ने अपने अभिमान के लिए क्षमा मांगी और इसके बाद राजा दक्ष की पत्नी ने उनसे वचन लिया कि वे प्रत्येक वर्ष सावन माह में कनखल में निवास करेंगे ताकि वह उनकी सेवा कर सकें। उस दिन से यह मान्यता है कि भगवान शिव सावन में कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में विराजमान रहते हैं। यहीं से प्रभु सृष्टि का संचालन करते हैं।
यहीं हुआ था सती का शिव से विवाह
हरिद्वार में स्थित कनखल को भगवान शिव का ससुराल माना जाता है क्योंकि यहीं दक्ष प्रजापति का निवास था और यहीं शिव और सती का विवाह हुआ था। दक्षेश्वर महादेव मंदिर इस क्षेत्र का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। सावन माह में देश भर से लाखों शिव भक्त इस मंदिर में जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने आते हैं। मान्यता है कि इस दौरान भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
शिव पुराण के अनुसार सावन में भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है। इस दौरान कनखल में उनकी उपस्थिति ब्रह्मांड के संचालन को और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
सावन में शिव पूजा है महत्वपूर्ण
सावन माह में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा, भांग और सफेद फूल चढ़ाने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक और रुद्राभिषेक की परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है। स्कंद पुराण में भगवान शिव ने सनत्कुमार को बताया था कि सावन माह उनकी प्रिय तिथियों और पर्वों से भरा होता है, और इस दौरान नियम-संयम के साथ उनकी पूजा करने से भक्तों को शक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है।
सावन के सोमवार को व्रत रखने और शिवलिंग पर दूध, घी, और शहद से अभिषेक करने की परंपरा भी है। यह माना जाता है कि इससे भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति और सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
कनखल में सावन में रहती है रौनक
सावन माह में कनखल का दक्षेश्वर महादेव मंदिर भक्तों की भीड़ से गुलजार रहता है। भक्त गंगा जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की कांवड़ यात्रा करते हैं और कनखल में शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। मंदिर में जयकारों की गूंज और भक्ति का माहौल इस स्थान को और भी पवित्र बनाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, कनखल में एक छोटा सा गड्ढा दक्ष के यज्ञ की निशानी है और पास ही माता सती की समाधि स्थल भी है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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