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Religion

गोत्र क्या है, विवाह के लिए क्यों जरूरी है गोत्र-मिलान? जानें विस्तार से

हिन्दू धर्म में गोत्र एक प्राचीन वंश परंपरा है। हिंदू धर्म में, गोत्र का उपयोग विवाह और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। आइए जानते हैं कि वास्तव में गोत्र क्या है, क्यों महत्वपूर्ण है और शादी-विवाह से पहले गोत्र मिलान क्यों किया जाता है?

Author Edited By : Shyam Nandan Updated: Mar 12, 2025 19:24
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आपने भी नोटिस किया होगा कि पूजा-पाठ से पहले या कोई विशेष धार्मिक रस्मो-रिवाज के समय पंडित पूछते हैं कि ‘आपका गोत्र क्या है’ या ‘अपने गोत्र का नाम लीजिए’। ऐसे जिन्हें अपने गोत्र का नाम मालूम नहीं होता है, वे अपने बड़े-बुजुर्गों से पूछते हैं कि उनका गोत्र क्या है। तब आपने यह भी नोटिस किया होगा कि जब वे इसका उत्तर देते हैं, तो उनके जवाब में एक गर्व का पुट होता है। तो क्या गोत्र से संबंधित होना, इतने गर्व की बात है?

अक्सर शादी-विवाह से पहले जब कुंडली मिलान किया जाता है, तो सबसे पहला सवाल होता है कि दूल्हा-दुल्हन किस गोत्र के हैं। जब यह मालूम होता है कि ये दोनों एक ही गोत्र से हैं, तो आगे कुंडली मिलान किया ही नहीं जाता है। रिश्ते की बात वहीं खत्म हो जाती है। आइए जानते हैं, गोत्र क्या है, हिन्दू धर्म में यह इतना महत्व क्यों रखता है और शादी-विवाह से पहले गोत्र मिलान क्यों किया जाता है?

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गोत्र का अर्थ

सनातन धर्म में गोत्र का विशेष महत्व है। यह शब्द दो अक्षरों ‘गो’ और ‘त्र’ से मिलकर बना है। ‘गो’ का अर्थ: इंद्रियां (हमारे शरीर की पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां) और ‘त्र’ का अर्थ: रक्षा करना। इस प्रकार, गोत्र का शाब्दिक अर्थ हुआ, ‘जो इंद्रियों की रक्षा करता है।’ इसका एक गहरा आध्यात्मिक संकेत यह है कि कोई शक्ति या परंपरा हमारी रक्षा कर रही है।

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कितने गोत्र हैं?

हिन्दू धर्म के वर्तमान गोत्र का संबंध ऋषि-मुनियों से जोड़ा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, पहले केवल 4 गोत्र थे, जो 4 ऋषियों से जुड़े थे। ये ऋषि थे- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भगु। कुछ समय के बाद इन ऋषियों के नाम की शृंखला में जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य भी जुड़ गए। इस प्रकार हिन्दू धर्म में व्यावहारिक रूप में ‘गोत्र’ से आशय ऋषिकुल की पहचान से है, जो वर्तमान में 8 मानी गई हैं।

जब गोत्र पता न हो तो क्या करें?

शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को अपने ‘गोत्र’ की जानकारी न हो, तो वह ‘कश्यप’ गोत्र का उच्चारण करना चाहिए। इसका कारण यह है कि महर्षि कश्यप के अनेक विवाह हुए थे और उनके कई पुत्र थे। चूंकि उनके वंशज व्यापक रूप से फैले हुए थे, इसलिए जिन व्यक्तियों को अपने गोत्र की जानकारी नहीं होती, उन्हें ‘कश्यप’ ऋषिकुल से संबंधित माना जाता है।

विवाह से पहले इसलिए करते हैं गोत्र मिलान

गोत्र का मुख्य रूप से उपयोग धार्मिक अनुष्ठान और विवाह के समय किया जाता है। हिन्दू धर्म में जब किसी लड़के और लड़की का विवाह तय किया जाता है, तो सबसे पहले उनके परिवार एक-दूसरे का गोत्र पूछते हैं। यदि दोनों का गोत्र एक ही होता है, तो आमतौर पर यह विवाह नहीं किया जाता। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है, लड़के और लड़की का गोत्र समान होने का मतलब यह है वे एक ही ऋषि के वंशज हैं और उनके बीच रक्त संबंध है। इस नियम का उद्देश्य आनुवंशिक विकारों को रोकना और परिवारों में स्वस्थ संतति सुनिश्चित करना होता है। इसलिए हिन्दू धर्म में सगोत्रीय विवाह वर्जित है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Shyam Nandan

First published on: Mar 12, 2025 07:24 PM

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