Temples of India: भारत विविधताओं का देश केवल भौगोलिक, खानपान और रहन-सहन के रूप में में ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से भी है। यहां देवी-देवताओं की ही नहीं बल्कि जानवरों की पूजा भी होती है। लेकिन कुत्तों के मंदिर में बारे में आपने शायद ही सुना होगा। लेकिन दक्षिण भारत के केरल में राज्य में एक ऐसे देवता हैं, जिनका मंदिर कुत्तों के लिए समर्पित है। इस देवता का नाम है, भगवान मुथप्पन। आइए जानते है, भगवान मुथप्पन के मंदिर में कुत्तों की पूजा क्यों होती है?
इस मंदिर में कांतारा करते हैं पपी का नामकरण
कुत्ता सदियों से इंसान का वफादार और दोस्त रहा है। इंसान को भी कुत्ते बहुत प्रिय होते हैं। इसे पालने वाले उन्हें घर का एक मेंबर ही मानते हैं। लेकिन केरल के कन्नूर जिले का मुथप्पन मंदिर मंदिर में बाकायदा कुत्तों की पूजा होती है और भगवान के प्रसाद का पहला भोग भी कुत्ते को ही खिलाया जाता है। साथ ही, यहां एक विशेष परंपरा काफी लोकप्रिय है, वह कुत्तों के बच्चों यानी पपी नामकरण।
कुत्ते के बच्चे का नामकरण मुथप्पन मंदिर मंदिर के कांतारा करते हैं, जिसके लिए यहां दूर-दूर से आते हैं। कुत्ते के बच्चे का नामकरण के दौरान बाकायदा कांतारा पुजारी कुत्ते के कान में मंत्र बोलते हैं और उसके बाद प्रसाद देते हैं।
भगवान मुथप्पन को लगता है ‘मछली’ और ‘ताड़ी’ का भोग
केरल के इस मुथप्पन मंदिर की अनेक परम्पराएं और रिवाज सामान्य हिन्दू मंदिरों से अलग हैं। भगवान मुथप्पन को प्रसन्न करने के लिए ‘थेय्यम’ नामक विशेष नृत्य किया जाता है। साथ ही, यहां भगवान मुथप्पन को मछली, मांस और टोडी का भोग अर्पित किया जाता है। टोडी ताड़ से बनीं स्थानीय शराब है, जो उत्तर भारत की ताड़ी जैसी होती है। केरल के अन्य मंदिर की अपेक्षा इस मंदिर में गैर-हिन्दुओं को भी प्रवेश दिया जाता है।
भगवान मुथप्पन की कथा
भगवान मुथप्पन की कथा, केरल की संस्कृति और धर्म को समझने में मदद करती है। ये एक ऐसे देवता है, जो हिन्दू, गैर-हिन्दू, आदिवासी और गैर-आदिवासी मुदायों द्वारा पूजे जाते हैं। कहते हैं कि एक निस्संतान दंपत्ति को नदी में स्नान करते समय एक बच्चा मिला, जिसे उन्होंने उसे गोद ले लिया। समय के साथ, बच्चा बड़ा हुआ जो बहुत दयालु था। लेकिन वह शिकार करता था और मांस खाता था, जो उसके परिवार के धर्म के खिलाफ था।
परिवार के लोगों ने उसे मांस-मछली खाने रोका तो वह घर से चला गया। वह केरल के मालाबार में गांव-गांव घूमने लगा। लोगों ने उसे मुथप्पन नाम दिया। कहते है, एक दिन चंतन नामक एक आदिवासी से उसने टोडी (ताड़ी) मांगी, तो चंतन ने मना कर दिया। इस बात पर मुथप्पन नाराज हो गए और चंतन को ‘पत्थर’ हो जाने का शाप दे दिया। बाद में चंतन की पत्नी ने मुथप्पन को प्रसन्न करने के लिए अनुष्ठान किए, तब चंतन वापस मानव रूप में आ गया।
इसलिए होती है कुत्तों की पूजा
इस घटना के बाद से लोग मुथप्पन की पूजा करने लगे और उन्हें देवता मानने लगे। कहते हैं, जब मुथप्पन गांव-गांव घूमा करते थे, तब उनके साथ हमेशा एक कुत्ता रहता था, इसलिए उनके मंदिरों में कुत्तों को पवित्र माना जाता है और कुत्ते की पूजा होती है। यहां कुत्तों का अनादर करना भगवान मुथप्पन का अनादर करने के बराबर माना जाता है।
एक बार नगरपालिका ने मुथप्पन मंदिर और उसके आसपास कुत्तों की संख्या के बढ़ जाने पर उन्हें पकड़ कर दूसरी जगह भेज दिया। कहते हैं कि इसके बाद मंदिर के थेय्यम नर्तक अपना नृत्य भूल गए थे। बहुत प्रयास के बाद उनसे नृत्य नहीं हो रहा था। तब नगरपालिका ने फिर उन कुत्तों फिर से लाकर वहां छोड़ा। इसके बाद थेय्यम नर्तक सहज हो पाए और फिर भगवान मुथप्पन को नृत्य सेवा दे पाए।
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