Sawan 2024: भगवान शिव के सभी 12 ज्योतिर्लिंग मंदिर का अपना महत्व और विशेषताएं हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग मंत्र में दिए गए क्रम के अनुसार, सोमनाथ, मल्लिकार्जुन और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया जाता है। सावन माह के शुरू होने के उपलक्ष्य में आइए जानते हैं, इस ज्योतिर्लिंग और भगवान शिव से जुड़ी उपयोगी, अनूठी और रोचक जानकारियां।
ओंकारेश्वर में बना है प्राकृतिक ॐ
भगवान शिव का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ॐ के आकार में बने द्वीप पर नर्मदा नदी के मध्य में स्थित है। पवित्र नर्मदा नदी के घुमाव से यह द्वीप एक प्राकृतिक ॐ आकृति में बन गया है। इस द्वीप को शिवपुरी कहते हैं। इस द्वीप को मांधाता द्वीप भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम के पूर्वज राजा मांधाता ने यहां अपने तप से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तब महादेव यहां ज्योति स्वरूप प्रकट हुए और राजा मांधाता ने वरदान के रूप में मांगा कि महादेव अब से यहीं वास करें।
ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है, जो नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है और ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। कहते हैं, धरती पर गंगा नदी के आने से पहले शिवपुरी द्वीप पर ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी। मान्यता है कि महादेव की कृपा से ॐ शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से यहीं हुई थी।
यहां रात में सोते हैं भगवान शिव
पौराणिक मान्यता है कि पूरा दिन भ्रमण करने के बाद भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में रात्रि विश्राम के लिए आते हैं। उनके विश्राम से पहले भगवान ओंकारेश्वर शिव की विशेष शयन आरती की जाती है। जिस प्रकार ज्योतिर्लिंग मंदिरों में उज्जैन में भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती का महत्व है, वही महत्व ओंकारेश्वर की शयन आरती का है। कहते हैं, इस शयन आरती के दर्शन मात्र से चिंताओं का अंत हो जाता है।
मां पार्वती संग खेलते हैं चौसर
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव रात्रि विश्राम के समय मां पार्वती के संग प्राचीन काल में खेले जाने वाले गोटियों और पासे का खेल चौसर खेलते हैं। भगवान शंकर और मां पार्वती के लिए शयन आरती से पहले यहां चौसर बिछाई जाती है। रात में मंदिर के कपाट ही नहीं बल्कि हर दरवाजा, खिड़की और झरोखा बंद कर दिया जाता है, ताकि परिंदा भी पर नहीं मार सके। लेकिन जब सुबह में मंदिर खोला जाता है, तो चौसर के पासे बिखरे हुए मिलते हैं, जैसे किसी ने उसे रात में खेला हो।
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