Pushkar Kumbh 2025: भारत में कुंभ मेला आस्था और संस्कृति का अनूठा संगम है। इस साल जनवरी-फरवरी में प्रयागराज के महाकुंभ में करीब 66 करोड़ लोगों ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई थी। अब उत्तराखंड के माणा गांव में पुष्कर कुंभ 2025 शुरू हो चुका है, जो 12 साल बाद आयोजित हो रहा है।
यह पवित्र मेला 15 मई से शुरू हुआ है और 26 मई 2025 तक चलेगा। हजारों श्रद्धालु केशव प्रयाग में अलकनंदा और सरस्वती नदियों के संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं।
कब लगता है पुष्कर कुंभ?
पुष्कर कुंभ उत्तराखंड के चमोली जिले में माणा गांव के केशव प्रयाग में आयोजित होने वाला एक पवित्र हिंदू मेला है। यह बद्रीनाथ धाम से केवल 3 किलोमीटर दूर है, जहां अलकनंदा और सरस्वती नदी का पवित्र संगम है। यहां स्नान को मोक्षदायी माना जाता है, क्योंकि यह पापों का नाश करता है और माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह मेला हर 12 साल में तब होता है, जब देवगुरु बृहस्पति मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं। हालांकि यह प्रयागराज के महाकुंभ से छोटा है, लेकिन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इसका महत्व कम नहीं है।
कब तक चलेगा यह मेला?
जानकारी के अनुसार, पुष्कर कुंभ 2025 की शुरुआत 15 मई 2025 को हुई है और यह 26 मई 2025 तक चलेगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, बृहस्पति ने 14 मई 2025 को रात 11:20 बजे मिथुन राशि में प्रवेश किया था, जिसके बाद मेला शुरू हुआ।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मेले का उद्घाटन किया था और इसे भारत की पवित्र तीर्थयात्राओं में से एक बताया है। अनुमान है कि करीब 1.5 लाख श्रद्धालु इस 12-दिवसीय मेले में शामिल होंगे। हजारों लोग रोजाना केशव प्रयाग में स्नान और पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
स्वर्ग का द्वार है यह जगह?
पुष्कर कुंभ का धार्मिक महत्व हिंदू पौराणिक कथाओं से गहरा जुड़ा है। केशव प्रयाग वह पवित्र स्थल है, जहां महर्षि वेदव्यास ने तपस्या की और महाभारत की रचना की। दक्षिण भारत के महान आचार्य रामानुजाचार्य और माधवाचार्य ने भी यहां माता सरस्वती से ज्ञान प्राप्त किया।
हिंदू मान्यताओं में केशव प्रयाग को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है, क्योंकि पांडव यहां से ही स्वर्ग की ओर गए थे। सरस्वती नदी, जो ज्ञान और बुद्धि की प्रतीक है, इस मेले को आध्यात्मिक रूप से खास बनाती है। दक्षिण भारत के लोग बड़ी संख्या में यहां डुबकी लगाने आते हैं।
भारत का पहला गांव है माणा
माणा गांव, जो भारत-चीन सीमा पर स्थित है, भारत का अंतिम गांव है और इसे पहला गांव भी कहा जाता है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण, और सांस्कृतिक धरोहर इसे खास बनाती है। यहां व्यास गुफा, भीम पुल, और भोटिया समुदाय की हस्तशिल्प परंपराएं पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। पुष्कर कुंभ के दौरान माणा आस्था और संस्कृति का केंद्र बन जाता है।
कैसे पहुंचे यहां?
माणा गांव दिल्ली से 546 किमी दूर है, और सड़क मार्ग से 12-13 घंटे में पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश, जोशीमठ, और बद्रीनाथ होते हुए NH-58 के रास्ते माणा पहुंचें। ट्रेन से हरिद्वार या देहरादून और फिर बस या टैक्सी ले सकते हैं। निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून (लगभग 300 किमी) है। मेले के बाद व्यास गुफा, भीम पुल, और बद्रीनाथ के दर्शन भी करें।
पुराना है इसका महत्व
पुष्कर कुंभ का इतिहास प्राचीन है, लेकिन इसका भव्य आयोजन हाल के दशकों में लोकप्रिय हुआ है। माणा गांव के प्रधान पीतांबर मोल्फा के अनुसार, पहले यह मेला स्थानीय स्तर पर होता था, और वैष्णव भक्त स्नान कर लौट जाते थे। 2013 में इसकी महत्ता को समझकर इसे भव्य रूप दिया गया। तब से हर 12 साल में यह मेला उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक एकता को मजबूत करता है।
सुरक्षा के हैं व्यापक इंतजाम
उत्तराखंड प्रशासन और बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने मेले के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं। सड़कों को दुरुस्त किया गया है, अस्थायी शिविर, चेंजिंग रूम और शौचालय बनाए गए हैं। एसडीआरएफ और पुलिस सुरक्षा के लिए तैनात हैं। ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है। प्रशासन का लक्ष्य है कि श्रद्धालुओं को किसी असुविधा का सामना न करना पड़े।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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