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Pitru Paksha 2024: श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि देव को भोजन कराने की है खास वजह, जानें पिंडदान का सही तरीका

Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष की शुरुआत क्या सीता माता ने की थी? क्या महाभारत काल से श्राद्ध का रिवाज है? पिंडदान का सही तरीका क्या है? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

Edited By : Simran Singh | Updated: Sep 25, 2024 09:20
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Pitru Paksha 2024
पितृपक्ष

Pitru Paksha 2024: हमारे पूर्वजों की पूजा करने के लिए एक विशेष तिथि महीना और वर्ष भी निश्चित किया गया है, जो हमारे प्रियजन हमें छोड़कर देवलोक गमन कर गए हैं उन्हें याद करने के लिए सनातन धर्म में श्राद्ध, पितृ पक्ष या जिसे महालया कहा जाता है और मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होती है। इसकी समाप्ति आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होती है।

इन पूरे 15-16 दिनों में ईश्वर हमें ये मौका देते हैं कि पूर्वजों के प्रति हम से जो भी गलती हुई है हम उनसे क्षमा मांग सके और उनकी सेवा कर सके। धर्म-ज्योतिष पर अच्छी जानकारी रखने वालीं नम्रता पुरोहित ने श्राद्ध पक्ष की शुरुआत कहां से हुई थी? आइए विस्तार से जानते हैं।

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कब से हुई पितृपक्ष की शुरुआत

त्रेता युग में सीता माता द्वारा श्राद्ध करने का उल्लेख मिलता है। कहा ये भी जाता है कि द्वापर युग से पितृपक्ष की शुरुआत हुई। महाभारत काल में इसकी जानकारी भी मिलती है। किंवदंतियों के अनुसार भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के बीच श्राद्ध को लेकर बातचीत हुई है तो वहीं ये भी कहां जाता है कि दानवीर कर्ण जब मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक को गए तो उन्हें भोजन के रूप में सोना-चांदी दिया गया, जब कर्ण ने ये पूछा कि “मैं यह कैसे खा सकता हूं मुझे भोजन क्यों नहीं दिया गया” तो उनसे बोला गया कि “तुमने जीवित रहते हुए अपने पितरों के लिए कुछ नहीं किया लेकिन तुमने सोना चांदी बहुत दान दिया।”

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इसके बाद भगवान ने कर्ण को दोबारा से पृथ्वी लोक भेजा। यहां आकर कर्ण ने पूरे 15 दिन रहकर अपने पूर्वजों के लिए दान-पुण्य का काम किया। इस दौरान भोजन करवाया और सभी पूर्वजों का तर्पण भी किया जिसे पितृपक्ष कहा गया। महाभारत काल में ही उल्लेख मिलता है कि मुनि अत्री ने महर्षि निमि को उपदेश दिया और उसके बाद ऋषि निमि ने श्राद्ध की शुरुआत की सभी महर्षियों और चार वर्णों के लोगों ने भी श्राद्ध करना शुरू किया।

श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अपच

सालों तक भोजन करने के बाद जब हमारे पितर देव पूरी तरह से तृप्त हुए तो ऐसा भी कहा जाता है कि श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अपच यानी अजीर्ण की बीमारी हो गई, जिससे वो परेशान होने लगे तब पितृ देवता ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी ने उन्हें अग्नि देव के पास भेजा।

अग्नि देव को भोजन कराने की है खास वजह

अग्निदेव ने पितरों को कहा कि “अब मैं स्वयं आपके साथ भोजन करूंगा” और तब से ही श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि देव के लिए भोजन का भाग निकाला जाता है। अग्नि में हवन करने के बाद पितरों के लिए दिए जाने वाले पिंडदान को ब्रह्म राक्षस भी दूषित नहीं कर सकते हैं।

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पिंडदान का सही तरीका

सबसे पहले पिता उसके बाद दादा और फिर परदादा के लिए पिंडदान किया जाता है। पूरे श्राद्ध पक्ष में हर दिन किसी न किसी व्यक्ति के लिए होता है मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। तो आप भी अपने परिवार के साथ मिलकर अपने पितरों को इन 15 दिनों में प्रसन्न कर दीजिए। सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को दान दीजिए। जीव-जंतुओं को भोजन कराएं और सभी का पेट भरे जिससे हमारे पितृ तृप्त होकर हमें आशीर्वाद दें।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Simran Singh

First published on: Sep 25, 2024 09:20 AM

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