श्रीकृष्ण, जिनका सम्मोहन हजारों वर्षों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, आज भी भारतीय समाज के लिए प्रासंगिक और आवश्यक हैं। न्यूज़ 24 को दिए गए एक विशेष इंटरव्यू में, महाभारत सीरियल में श्री कृष्ण की भूमिका निभाने वाले और पूर्व लोकसभा सदस्य नितीश भारद्वाज ने श्रीकृष्ण के तत्व की आधुनिक भारत में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
तीन प्रकार के आंदोलनों का प्रतिनिधित्व करते हैं श्रीकृष्ण
नितीश भारद्वाज के अनुसार श्रीकृष्ण तीन प्रकार के आंदोलनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसमें पहला सामाजिक आंदोलन है। श्रीकृष्ण का सामाजिक दृष्टिकोण जाति और वर्ण भेदों को मिटाने पर केंद्रित है। वे कहते हैं कि समाज को व्यक्ति की योग्यता और कौशल के आधार पर मूल्यांकन करना चाहिए, न कि उनकी जाति या धर्म के आधार पर। नितीश जी ने कहा, ’80 वर्षों में हमने भारत को जातिवाद और भेदभाव में बांट दिया है। यह अगर नहीं खत्म होगा, तो हम कहीं नहीं जा सकते।’
राजनीतिक आंदोलन: श्रीकृष्ण ने मथुरा का त्याग कर द्वारिका में गणराज्य व्यवस्था की स्थापना की। उन्होंने जरासंध जैसे एकछत्र साम्राज्यवादी शक्तियों का विरोध किया और स्वावलंबन पर आधारित एक निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था का निर्माण किया। नितीश जी का मानना है, ‘140 करोड़ की जनसंख्या अपने आप में पर्याप्त है। हमें द्वारिका की तरह स्वावलंबन और निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए।’
आध्यात्मिक आंदोलन: श्री कृष्ण की आध्यात्मिक शिक्षाएं भगवद् गीता के माध्यम से कर्तव्य और निष्ठा पर जोर देती हैं। नितीश जी के अनुसार, ‘धर्म की परिभाषा ‘लिव एंड लेट लिव’ होनी चाहिए। सनातन संस्कृति और इस माटी की सभ्यता को बचाना हमारा अधिकार है।’
आधुनिक भारत का कैंसर है जातिवाद
नितीश भारद्वाज ने जातिवाद को भारत के लिए एक घातक कैंसर बताया। वे कहते हैं कि श्री कृष्ण ने भगवद् गीता में स्पष्ट किया है: चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः (चार वर्ण मेरे द्वारा गुण और कर्म के आधार पर बनाए गए हैं)। इसका अर्थ है कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके गुणों और कर्मों से होना चाहिए।
वे युवाओं से आह्वान करते हैं, ‘जाति व्यक्तिगत जीवन तक सीमित रहनी चाहिए, राष्ट्र के लिए नहीं। जिस दिन युवा यह समझ लेगा और अपने स्किल्स को डेवलप करेगा, भारत सही विकास की पटरी पर चलने लगेगा।’
राजनीति में श्रीकृष्ण से मिलती है ये प्रेरणा
श्रीकृष्ण ने कौरवों और पांडवों के बीच संवाद बनाए रखा, लेकिन धर्म (कर्तव्य) को सर्वोपरि रखा। नितीश जी कहते हैं, ‘कृष्ण ने मामा कंस का वध किया, क्योंकि वह अधर्म के पक्ष में था। आज संसद में भी कौरव-पांडव जैसे हालात हैं। विपक्ष को सकारात्मक आलोचना करनी चाहिए, न कि ओछी राजनीति।’
वे संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को रचनात्मक मानते हैं। वे कहते हैं, ‘विपक्ष को राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की तरह सकारात्मक टीका-टिप्पणी करनी चाहिए। मिमिक्री या सोशल मीडिया पर ओछी राजनीति से संसद की गरिमा कम होती है।’
वैश्विक चुनौतियों में श्रीकृष्ण का मार्ग
आज की वैश्विक चुनौतियों, जैसे आतंकवाद और व्यापारिक युद्ध, में श्री कृष्ण का दृष्टिकोण प्रासंगिक है। नितीश ने कहते हैं, ‘श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में धर्म के पक्ष में लोगों को एकत्रित किया। आज भारत भी यही कर रहा है।’ वे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों और ब्रिक्स जैसे मंचों को सशक्त बनाने की सराहना करते हैं। ‘2014 से भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत की है। ऑयल क्राइसिस में रूस से तेल खरीदना और ब्रिक्स को सशक्त करना इसका उदाहरण है।’
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में योगदान दें युवा
नितीश भारद्वाज ने युवाओं को प्रेरणा देने के लिए भगवद् गीता के श्लोक ‘चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः’ सुनाया। उन्होंने कहा कि, ‘जाति नहीं, गुण और कर्म महत्वपूर्ण हैं। युवा अपनी मेधा, बुद्धि और कौशल का उपयोग करें। सरकार की योजनाओं का लाभ उठाएं और भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने में योगदान दें।’