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Religion

इस बच्ची के रोने से आती है आपदा, राजा से लेकर राष्ट्रपति तक करते हैं पूजा!

Nepal Kumari Devi: दुनिया में एक ऐसी भी बच्ची भी है, जिसके रोना आपदा और हंसना सौभाग्य का संकेत माना जाता है। माना जाता है कि इस बच्ची के स्वरूप में स्वयं देवी विराजती हैं। इस बच्ची को कुमारी देवी के नाम से जाना जाता है। इनका पूजन नेपाल के काठमांडू, पाटन और भक्तपुर जैसे प्रमुख शहरों में होता है। आइए जानते हैं कि एक बच्ची कैसे देवी बनती हैं और इसका क्या प्रोसेस होता है?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Jun 10, 2025 22:09
Nepal Kumari Devi
बेहद खास हैं कुमारी देवी credit- Gfx

Nepal Kumari Devi: नेपाल की कुमारी देवी परंपरा विश्व की सबसे अनोखी और रहस्यमयी सांस्कृतिक परंपराओं में से एक है। यह प्रथा नेपाल के नेवारी समुदाय, विशेष रूप से शाक्य और वज्राचार्य जातियों से जुड़ी है, जो हिंदू और बौद्ध धर्म के मिश्रण को दर्शाती है। कुमारी देवी को महाकाली या तालेजू भवानी का जीवित अवतार माना जाता है, जो नेपाल के लोगों के लिए शक्ति और रक्षा का प्रतीक हैं।

कुमारी देवी की परंपरा 12वीं या 13वीं शताब्दी से मल्ल वंश के समय शुरू हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, मल्ल राजा जयप्रकाश मल्ला देवी तालेजू के साथ शतरंज खेला करते थे। एक बार राजा ने देवी को मानवीय भावनाओं से देखा, जिससे क्रोधित होकर देवी ने कहा कि वे अब उनकी पूजा स्वीकार नहीं करेंगी। इसके बाद में राजा को अपनी भूला का ज्ञान हुआ तब उन्होंने देवी से क्षमा मांगी। इस पर देवी ने सपने में राजा को निर्देश दिया कि वे शाक्य या वज्राचार्य समुदाय की एक बच्ची का चयन करें, जिसमें वे अवतरित होंगी तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें एक बच्ची को कुमारी के रूप में चुना जाता है और मासिक धर्म शुरू होने तक उसकी पूजा की जाती है।

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कुमारी को काठमांडू, पाटन और भक्तपुर जैसे प्रमुख शहरों में पूजा जाता है और वह तीन पूर्व शाही साम्राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। काठमांडू की रॉयल कुमारी सबसे प्रसिद्ध है, जिसे इंद्रजात्रा जैसे त्योहारों में विशेष सम्मान दिया जाता है।

कैसे होता कुमारी का चयन?

कुमारी देवी की चयन प्रक्रिया बेहद टफ होती है। कुमारी के लिए चुनी जाने वाली लड़की की उम्र आमतौर पर 2 से 4 वर्ष के बीच होती है। उसके शरीर पर कोई दाग, घाव या शारीरिक दोष नहीं होना चाहिए। परंपरागत रूप से, लड़की में 32 शारीरिक लक्षण होने चाहिए।
इनमें जैसे बरगद के पेड़ जैसा शरीर, गाय की तरह पलकें, हिरण जैसी जांघें, शेरनी जैसी छाती और बत्तख जैसी कोमल आवाज होनी चाहिए। लड़की की जन्म कुंडली का गहन अध्ययन किया जाता है। इसमें ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति भी देखी जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो कि वह देवी के अवतार के लिए उपयुक्त है।

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इसके साथ ही चयन प्रक्रिया का सबसे कठिन हिस्सा भय के प्रति लड़की की प्रतिक्रिया का परीक्षण है । इसके लिए बच्ची को अंधेरे कमरे में ले जाया जाता है, जहां कटे हुए भैंसों और बकरियों के सिर रखे जाते हैं और डरावने मुखौटे पहने पुरुष नाचते हैं। यदि बच्ची भयभीत नहीं होती और शांत रहती है तो उसे मां काली का रूप माना जाता है। चयन के बाद, गुथी संस्थान मैनेजमेंट कमिटी की सिफारिश पर लड़की को कुमारी घोषित किया जाता है। काठमांडू की रॉयल कुमारी के लिए राष्ट्रपति की औपचारिक मंजूरी भी आवश्यक होती है। चयनित लड़की को कुमारी घर (मंदिर) में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जहां वह देवी के रूप में पूजी जाती है।

बच्ची का हंसना और रोना है खास संकेत

कुमारी के भावों को नेपाल में विशेष महत्व दिया जाता है। माना जाता है कि उनके हंसने या रोने का विशेष संकेत होता है। यदि कुमारी किसी भक्त को देखकर हंसती है, तो इसे सौभाग्य और समृद्धि का संकेत माना जाता है। यह दर्शाता है कि देवी प्रसन्न हैं और भक्त को उनका आशीर्वाद प्राप्त है। यदि कुमारी रोती है तो इसे अशुभ माना जाता है। यह संकेत किसी कठिनाई या आपदा का हो सकता है।

कैसी होती है जीवनशैली?

कुमारी का जीवन सामान्य बच्चों से पूरी तरह अलग होता है। वह अपने परिवार और समाज से अलग और कुमारी घर में रहती हैं। यहां उसकी देखभाल शाक्य वंश के लोग करते हैं। उनकी दिनचर्या में धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-अर्चना और मंदिर में भक्तों के दर्शन शामिल होते हैं। कुमारी को लाल साड़ी, भारी आभूषण के साथ सजाया जाता है और उनके माथे पर विशेष तिलक लगाया जाता है, जो उनकी दिव्यता का प्रतीक है।

कुमारी को बाहर के लोगों से मिलने-जुलने की अनुमति नहीं होती है और वे साल में केवल 13 बार, विशेष रूप से इंद्रजात्रा जैसे त्योहारों के दौरान पालकी में बैठकर शहर में निकलती हैं। उनकी शिक्षा मंदिर के भीतर ही होती है। कुमारी की शिक्षा के लिए नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में आदेश दिया था।

हालांकि, यह जीवनशैली विवादों से मुक्त नहीं है। कई मानवाधिकार कार्यकर्ता इस प्रथा को बाल अधिकारों का हनन मानते हैं, क्योंकि यह बच्ची का बचपन छीन लेती है और उसे सामाजिक जीवन से वंचित रखती है। मासिक धर्म शुरू होने पर कुमारी की पदवी छिन जाती है, क्योंकि रक्त को अपवित्र माना जाता है। इसके बाद वह सामान्य जीवन में लौटती है, लेकिन उसे आजीवन पेंशन दी जाती है।

क्या होती हैं कुमारी देवी की जिम्मेदारियां?

कुमारी देवी का मुख्य कार्य भक्तों को आशीर्वाद देना और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना है। वह नेपाल के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इंद्रजात्रा त्योहार के दौरान कुमारी देवी की पालकी को शहर में घुमाया जाता है और माना जाता है कि उनके दर्शन से सौभाग्य प्राप्त होता है।

कुमारी को हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों द्वारा समान रूप से पूजा जाता है और वह काठमांडू घाटी की एकता का प्रतीक हैं। वह राजा और राष्ट्रपति जैसे उच्च अधिकारियों को भी आशीर्वाद देती हैं, जिससे उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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First published on: Jun 10, 2025 10:09 PM

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