हर महत्वपूर्ण बात से पहले और हर महत्वपूर्ण बात के बाद ‘नारायण-नारायण’ बोलने वाले देवर्षि नारद की जयंती मंगलवार, 13 मई को मनाई जाएगी। सभी ऋषियों में नारद ही एकमात्र ऐसे ऋषि हैं, जिन्हें देवर्षि की उपाधि प्राप्त है, जिसका अर्थ है, वैसे ऋषि जिन्हें देवता के समकक्ष हैं। उनका जीवन संदेशों, ज्ञान और भक्ति से भरा हुआ है, जो आज के युग में भी हमें कई प्रेरणाएं देता है। आइए जानते हैं, कौन हैं देवर्षि नारद और उनसे जुड़ी रोचक बातें?
कौन हैं देवर्षि नारद?
देवर्षि नारद एक अद्वितीय और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्हें ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है और वे हमेशा अपने हाथ में वीणा लेकर नारायण-नारायण का कीर्तन करते रहते हैं।
वे त्रिलोक यानी स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में स्वतंत्र रूप से बेरोक-टोक भ्रमण करते हैं। ऐसा करने वाले वे एकमात्र ऋषि हैं। हर स्थान पर समाचार, संदेश और ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। यही कारण है कि देवर्षि नारद को पृथ्वी के प्रथम पत्रकार और देवताओं के दूत के रूप में जाना जाता है।
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बातें विवाद की और उद्देश्य महाकल्याण!
पौराणिक कथाओं में यह देखा गया है नारद जी की बातें अक्सर विवादों, संघर्षों और युद्धों का कारण बनती हैं। हालांकि, उनकी वाणी कभी-कभी संघर्ष और घटनाओं की शुरुआत करती है, लेकिन उसका उद्देश्य सदा सकारात्मक और कल्याणकारी होता है।
आपको बता दें कि नारद जी वे केवल संदेशवाहक ही नहीं, बल्कि ज्ञान और सत्य के अग्रदूत माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार, ईश्वर के कार्यों में सहायता करने वाले महत्वपूर्ण पात्र हैं। वे एक तरह से ब्रह्मांडीय संवाददाता हैं, जो घटनाओं को जोड़ते हैं, धर्म को दिशा देते हैं और भक्ति का प्रसार करते हैं।
नारद मुनि और भगवान नारायण
नारद मुनि भगवान नारायण यानी भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। वे निरंतर ‘नारायण-नारायण’ का जाप करते हुए वीणा बजाते हैं। उनकी भक्ति अटूट है और वे हर क्षण अपने आराध्य की महिमा का गुणगान करते हैं। उनके माध्यम से ही कई बार भक्तों को प्रभु के दर्शन और मार्गदर्शन मिलता है।
नारद जयंती का महत्व
नारद जयंती केवल एक ऋषि की जयंती नहीं है, बल्कि यह सत्य, संवाद, भक्ति और धर्म के महत्व को पहचानने का दिन है। यह दिन हमें सिखाता है कि संवाद केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह परिवर्तन, जागरूकता और आत्मविकास का माध्यम हो सकता है। नारद मुनि के जीवन से हम ये सूत्र सीख सकते हैं:
सत्य बोलने का साहस रखें, भले ही वह अप्रिय क्यों न हो। वे जहां भी जाते थे, वहीं कोई न कोई बड़ा परिवर्तन या कथा जन्म लेती थी- जैसे भक्त प्रह्लाद की कथा, महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिवर्तन, और नारद भक्ति सूत्र की रचना।
सूचना और संवाद समाज और धर्म को दिशा देने में सक्षम हैं। उन्होंने ही कृष्ण-उद्धव संवाद और नारद पुराण जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में योगदान दिया।
नारद जी का जीवन बताता है कि भक्ति में निरंतरता और समर्पण जरूरी है। जीवन में विवेक और विनम्रता बनाए रखें, क्योंकि ज्ञान के साथ अहंकार नहीं होना चाहिए।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।