सनातन धर्म के लोगों के लिए मातंगी जयंती के दिन का खास महत्व है, जिस दिन देवी मातंगी की पूजा की जाती है। माता मातंगी को दस महाविद्याओं में नौंवी देवी माना गया है, जिनकी पूजा करने से वाणी, संगीत, ज्ञान, तंत्र-मंत्र और कलाओं की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा गुप्त नवरात्रि के नौवें दिन की जाती है। इसके अलावा मातंगी देवी को आदिवासी समाज की देवी भी माना जाता है। कुछ लोग प्रकृति की देवी मां मातंगी को माता सरस्वती का तांत्रिक रूप भी मानते हैं। देश के कई राज्यों में मातंगी माता को मां गिरी के नाम से भी जाना जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मातंगी जयंती मनाई जाती है। इस साल 30 अप्रैल को मातंगी जयंती का पर्व मनाया जाएगा। मातंगी जयंती के दिन मां को झूठे भोजन का भोग लगाया जाता है। चलिए धर्म की अच्छी खासी जानकारी रखने वाली नम्रता पुरोहित कांडपाल से जानते हैं मातंगी जयंती की उत्पत्ति कैसे हुई थी। साथ ही आपको ये भी पता चलेगा कि मां को क्यों झूठे भोजन का भोग लगाया जाता है।
मां का स्वरूप
मां का रंग गहरा नीला है। मां त्रिनेत्रधारी हैं, जिनकी चार भुजाएं हैं। माता की एक भुजा में कपाल है, उसके ऊपर वाणी और वाचन का प्रतीक हरे रंग का तोता है। दूसरी भुजा में वीणा, तीसरी में खड़ग और चौथी में वेद है।
शास्त्रों के अनुसार, मां मातंगी अंजनी पुत्र हनुमान और माता शबरी के गुरु ऋषि मतंग की पुत्री हैं। मतंग ऋषि ने कदंब वन में कठोर तपस्या करके वन के सभी जीवों को अपने वश में कर लिया था। ऋषि की इसी कठोर साधना से प्रसन्न होकर मां त्रिपुरा ने उन्हें दर्शन दिए थे। उसी समय मां त्रिपुरा के नेत्र से श्याम वर्ण की एक ज्योति प्रकट हुई, जिसे राज मातंगिनी कहा गया। राज मातंगिनी को मातंगेश्वरी, सुमुखी, श्यामल वर्ण, कर्ण मातंगी, वश्य मातंगी और चंड मातंगी के नाम से भी जाना जाता है।
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मातंगी जयंती की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जगत जननी मां अन्नपूर्णा और मां पार्वती पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए निकली थीं। इस दौरान मां एक आदिवासी गांव में पहुंची। वहां उन्होंने देखा कि गरीब आदिवासी महिलाएं भोजन कर रही हैं। माता को देखते ही वो महिलाएं प्रसन्न हुईं और उन्होंने मां को अपनी थाली से भोजन करने के लिए कहा। मां पार्वती ने महिलाओं की श्रद्धा और भक्ति को देखकर मातंगी रूप धारण किया। साथ ही उन्होंने उन महिलाओं का झूठा भोजन ग्रहण किया। इसी के बाद से आदिवासी समाज के लोग माता मातंगी की पूजा करने लगे। साथ ही उन्हें झूठे भोजन का भोग भी लगाया जाता है। हालांकि मातंगी जयंती के दिन उपवास नहीं रखा जाता है।
इसके अलावा एक कथा ये भी प्रचलित है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी को कैलाश पर्वत पर भोजन के लिए आमंत्रित किया था। भोजन करते समय अन्न के कुछ दाने पृथ्वी पर गिर गए। माना जाता है कि अन्न के उन्हीं दानों में से श्यामल वर्ण की कन्या का जन्म हुआ, जिन्होंने भोजन करने की इच्छा प्रकट की। फिर भगवान ने उन्हें भोजन का कुछ अंश दिया। इसी के बाद से देशभर में देवी मातंगी की पूजा होने लगी।
मातंगी जयंती की पूजा विधि
- मातंगी जयंती के दिन जल्दी उठें।
- स्नान आदि से निवृत्त होकर मां सरस्वती की पूजा करें।
- अपनी कलम, पुस्तक और संगीत संबंधी वस्तुओं की पूजा करें।
- मां को नीले और पीले रंग के पुष्प अर्पित करें।
- संभव हो तो घर में कन्या पूजन करें।
- कन्याओं को स्टेशनरी का सामान भेंट स्वरूप दें।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्याओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।