Krishna Story: महाभारत का युद्ध समाप्त हुए वर्षों बीत चुके थे। पांडव सहित भगवान श्रीकृष्ण अपने-अपने राज्यों में शांतिपूर्वक राजकाज में मग्न थे। उन्हीं दिनों की बात है… एक दिन महर्षि गालव प्रातः काल स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दे रहे थे। तभी संयोगवश वायु मार्ग से वहां से गुजर रहे चित्रसेन नामक एक गंधर्व जाने-अनजाने आकाश में थूक देते हैं। उनका वह थूक पूजा कर रहे महर्षि गालव की अंजलि में गिर जाता है।
इससे महर्षि गालव बहुत क्रोधित होते हैं। वे चाहते तो गंधर्व को खुद श्राप दे सकते थे, लेकिन उन्होंने इसका दंड भगवान श्रीकृष्ण से दिलवाने का निश्चय किया और श्रीकृष्ण के दरबार में पहुंचे। महर्षि का आदर कर और उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा, “हे महर्षि, निश्चय ही यह एक निंदनीय कृत्य है। मैं आपको 24 घंटे के अंदर चित्रसेन को इसका मृत्युदंड देने का वचन देता हूं।”
घबराए चित्रसेन तीनों लोक में शरण मांगने लगे
यह बात जब नारद मुनि को पता चला तो वे चित्रसेन के पास पहुंचे और बोले, “हे गंधर्व श्रेष्ठ, जो भी दान-पुण्य करना चाहते हो कर लो, क्योंकि स्वयं श्रीकृष्ण कुछ ही घंटों में तुम्हें मृत्युदंड देने वाले हैं।” यह सुनकर चित्रसेन घबरा गए और तीनों लोक में शरण मांगने लगे। लेकिन किसी ने उन्हें अपने यहां शरण नहीं दी। आखिर भगवान श्रीकृष्ण से दुश्मनी कौन मोल लेता?
यमुना के किनारे विलाप…!
अंत में गंधर्व अपने परिवार सहित फिर से नारदजी की शरण में लौटे और उन्हीं से कोई समाधान देने की विनती की। गंधर्व की विनती पर नारदजी को दया आई और उन्होंने चित्रसेन से कहा, “तुम अपने परिवार सहित आधी रात को इस जगह पर यमुना के किनारे विलाप करना। वहां एक राज-महिला आएगी, जो तुम्हें विलाप करता देख तुमसे कारण पूछेगी, लेकिन जब तक वह तुम्हारी सहायता का वचन ने दे, तुम उसे अपनी समस्या मत बताना।” चित्रसेन तैयार हो गए।
नारद जी ने सुभद्रा से कही ये बात…
उधर नारदजी अर्जुन की पत्नी और भगवान श्रीकृष्ण की बहन और देवी सुभद्रा के पास पहुंचे। उनसे कहा, “हे सुभद्रे, आज बहुत ही पुण्यदायी शुभ तिथि है। आज आधी रात में यमुना में स्नान करने और दीन-दुखियों का दुख दूर करने पर अक्षय लाभ की प्राप्ति हो सकती है। सो आप देखो और उपाय करो।”
इस पर सुभद्रा रात को अपनी दो सखियों के साथ यमुना में स्नान के लिए पहुंची। वहां उन्होंने विलाप करते गंधर्व और उसके परिवार को देखा। तो उन्होंने अक्षय लाभ की इच्छा और मानवता के नाते उनके दुख का कारण पूछा। लेकिन गंधर्व ने तब तक कुछ नहीं बताया, जब तक सुभद्रा ने सहायता का वचन नहीं किया। जैसे ही सुभद्रा ने वचन दिया, तब गंधर्व ने श्रीकृष्ण के प्रण की बात बताई, सुभद्रा धर्म-संकट में पड़ गईं। उन्हें कुछ नहीं सूझा तो वह गंधर्व को अपने साथ महल ले गईं और जाकर अर्जुन को पूरी बात बताई।
श्रीकृष्ण के शत्रु को अर्जुन ने दी शरण
अर्जुन ने कहा, “हे प्राणप्रिय सुभद्रे! चिंता मत करो, अब चित्रसेन हमारी शरण में हैं, तो इनकी रक्षा हमारा कर्तव्य है।” उधर देवर्षि नारद भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंच गए और उन्हें बताया, “हे प्रभु! आप गंधर्व चित्रसेन को मारने की तैयारी में तो हैं, लेकिन स्वयं आपके प्रिय अर्जुन ने उसे अपने संरक्षण में रखा है।”
इस पर लीलाधर श्रीकृष्ण ने नारद मुनि से कहा कि आप जाकर अर्जुन को समझाने का प्रयत्न करें। नारद जी अर्जुन के पास आते हैं और श्रीकृष्ण का संदेश देते हैं। इस पर अर्जुन ने कहा, “हे मुनिश्रेष्ठ! मैं स्वयं श्रीकृष्ण का भक्त हूं और उन्होंने ही मुझे क्षत्रिय का धर्म सिखाया है। मैं उनमें समर्पित रहकर ही अपनी शरण में आए व्यक्ति की रक्षा करूंगा।” नारद मुनि समझ गए अब इन दोनों के बीच युद्ध होने को कोई नहीं टाल सकता है।
स्वयं महादेव शिव को होना पड़ा प्रकट
अर्जुन और श्रीकृष्ण युद्ध भूमि में आमने-सामने थे। दोनों के बीच भीषण युद्ध आरंभ हो गया। श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र छोड़ा तो अर्जुन ने पाशुपातास्त्र छोड़ दिया। इस तरह विष्णु और शिव के अमोघ अस्त्र आमने-सामने हो गए। अर्जुन ने पाशुपातास्त्र शिवजी की तपस्या करके प्राप्त किया था। प्रलय और धरती के विनाश को भांप महादेव वहां तत्काल प्रकट हुए और उन्होंने दोनों अस्त्रों के वार को रोक लिया।
फिर शिवजी भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और बोले, “प्रभु! आप तो भक्तों के रखवाले हैं। अपने भक्तों की खुशी के लिए वेद, पुराण और शास्त्र के साथ अपनी प्रतिज्ञा को भी भूल जाते हैं। ऐसा तो हजारों बार हुआ है, भगवन अब तो इस लीला का समापन कीजिए।” तब श्रीकृष्ण भी परिस्थिति समझ गए और युद्ध विराम कर दिया। उन्होंने कर्तव्यपरायणता और क्षत्रिय धर्म निभाने के लिए अर्जुन को गले लगा लिया
सुभद्रा की शक्ति से लज्जित हुए महर्षि गालव
इधर गंधर्व चित्रसेन को उसकी गलती की सजा न मिलने से महर्षि गालव क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने तपोबल से चित्रसेन सहित भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन और देवी सुभद्रा को जलाकर भस्म करने के लिए अंजुलि में जल ले लिया। यह देख देवी सुभद्रा बोलीं, “यदि श्रीकृष्ण के प्रति मेरी भक्ति और अर्जुन के प्रति मेरा प्रेम सत्य है तो यह जल ऋषि के हाथ से पृथ्वी पर गिरेगा ही नहीं।” ऐसा ही हुआ, महर्षि के हाथ से जल पृथ्वी पर नहीं गिरा। सुभद्रा की निष्ठा और समर्पण की शक्ति देख महर्षि गालव ने स्वयं को बहुत लज्जित अनुभव किया। उन्होंने चित्रसेन को क्षमा कर दिया, फिर प्रभु को प्रणाम कर वह अपने स्थान को लौट गए। और इस प्रकार एक महान अनिष्ट होते-होते रुक गया।
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