Kabir Das Jayanti 2024: कबीरदास जी न केवल एक महान संत बल्कि एक बेजोड़ कवि और समाज सुधारक थे। माना जाता है कि उनका जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन 1398 में काशी में हुआ था। वे हिन्दू थे या मुसलमान, इस पर विवाद है, लेकिन उनकी शिक्षाओं को दोनों धर्मों के लोग मानते हैं। हालांकि कबीरदास जी निरक्षर थे, लेकिन उन्हें विभिन्न धर्मों और दर्शनों का ज्ञान था। उनके उपदेश और बानी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संग्रहीत हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों, जातिवाद, धार्मिक कट्टरपंथ और पाखंड की कड़ी आलोचना की गई है। वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का महान स्रोत हैं।
अंधविश्वास पर तीखा प्रहार
कबीरदास जी ने अंधविश्वास पर सबसे अधिक प्रहार किया था। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के रीति-रिवाजों पर सवाल उठाए हैं। ‘कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय, ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय’ और ‘पाहन पूजै हरि मिलै, तो मैं पूजू पहार, ऐसे तो चाकी भलै, कूट पीस खाय संसार’ दोहों के माध्यम से उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों में व्याप्त अन्धविश्वास पर तीखी चोट की है।
कबीरदासजी का ‘ढाई आखर’
कबीरदास जी ने केवल ‘ढाई आखर’ यानी ढाई अक्षर के संदेश में पूरी दुनिया को महान संदेश दिया है। उनके ढाई आखर में दो बातों पर सबसे अधिक जोर दिया गया है, वे हैं- सत्य और प्रेम। कबीरदासजी की सत्य और प्रेम से जुड़ी ये दो बातें हमेशा गांठ बांधकर याद रखनी चाहिए।
सत्य ही जीवन का आधार: कबीरदास जी ने सदैव सत्य बोलने और सत्य के मार्ग पर चलने पर बल दिया। उनका कहना था कि सत्य ही जीवन का आधार है और जो सत्य बोलता है वो सदैव सुखी रहता है। वे कहते हैं:
“सत्य बोलिए सब जग में, जाहिं रहो सदा सुखी।”
सभी जीव एक समान: कबीरदास जी सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा रखने की शिक्षा देते थे। उनका मानना था कि सभी जीव समान हैं और हमें किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना चाहिए। उन्होंने कहा है:
“प्रेम प्रीत सब जग में, मोहि माया मोह न आवे।”
ये दो बातें कबीरदासजी की शिक्षाओं का सार हैं। इन बातों को जीवन में उतारकर कोई भी व्यक्ति एक सच्चा और सुखी जीवन जी सकते हैं। कबीरदास जी भक्ति और आत्मज्ञान के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि भक्ति के माध्यम से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
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